अष्टभुजा माता मंदिर छत्तीसगढ़ के सक्ती जिले के मालखरौदा तहसील के अड़भार गांव में स्थित है। यह मंदिर न केवल ऐतिहासिक है, बल्कि अपनी अद्वितीय स्थापत्य शैली और धार्मिक महत्व के लिए प्रसिद्ध है। इस मंदिर को भारत के चुनिंदा दक्षिणमुखी काली मंदिरों में से एक माना जाता है।
मां अष्टभुजी: दक्षिणमुखी देवी की अद्वितीयता
अड़भार गांव में विराजमान मां अष्टभुजा को आठ भुजाओं वाली देवी के रूप में पूजा जाता है। उनकी दक्षिणमुखी मूर्ति इस मंदिर को विशेष बनाती है। देवी के दाहिने ओर योग मुद्रा में देगुन गुरु की प्रतिमा स्थापित है, जो इस स्थान की आध्यात्मिक शक्ति को और बढ़ा देती है।
अष्टभुजा माता मंदिर का इतिहास
अड़भार का उल्लेख ऐतिहासिक रूप से “अष्टद्वार” के रूप में मिलता है। कहा जाता है कि यह क्षेत्र लगभग 6-7 किलोमीटर की परिधि में फैला हुआ है और यहां हर 100-200 मीटर की खुदाई में देवी-देवताओं की खंडित मूर्तियां मिलती हैं। यह मंदिर दो विशाल इमली के पेड़ों के नीचे स्थित है, जो इसकी प्राचीनता और प्राकृतिक सौंदर्य को और भी अधिक बढ़ा देता है।
खुदाई में मिलते हैं प्राचीन अवशेष
यहां के लोगों का कहना है कि भवन या घर निर्माण के दौरान अक्सर प्राचीन मूर्तियां, खंडित अवशेष, और पुराने समय के सोने-चांदी के सिक्के मिलते हैं। यह इस बात का प्रमाण है कि यह क्षेत्र ऐतिहासिक और सांस्कृतिक रूप से कितना समृद्ध रहा है।
धार्मिक और ऐतिहासिक महत्व
अष्टभुजा माता का यह मंदिर न केवल एक पूजा स्थल है, बल्कि यह छत्तीसगढ़ की समृद्ध सांस्कृतिक धरोहर और धार्मिक परंपराओं का जीता-जागता उदाहरण है। मां अष्टभुजा की पूजा से श्रद्धालुओं को मनोकामना पूर्ति और जीवन में सुख-समृद्धि प्राप्त होने की मान्यता है।
यहां कैसे पहुंचे?
अड़भार गांव जांजगीर-चांपा जिले से करीब 30 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यह स्थान सड़क मार्ग से जुड़ा हुआ है और यहां तक पहुंचने के लिए निजी वाहन या स्थानीय परिवहन का उपयोग किया जा सकता है।
निष्कर्ष
अष्टभुजा माता मंदिर न केवल छत्तीसगढ़, बल्कि पूरे भारत के लिए एक सांस्कृतिक और धार्मिक धरोहर है। इसकी प्राचीनता और यहां की ऐतिहासिक मूर्तियां इसे एक खास पहचान देती हैं। अगर आप इतिहास और आध्यात्म का संगम देखना चाहते हैं, तो अड़भार स्थित अष्टभुजा माता मंदिर की यात्रा अवश्य करें।