छत्तीसगढ़ की रायपुर से बिलासपुर हाइवे पर करीब 80 किलोमीटर दूर बेतलपुर गांव है। यहां से कुछ ही दूर पर चारों ओर नदी से घिरा प्राकृतिक सौंदर्य से भरपूर एक द्वीप है, जिसे मडकू, मदकू या मदकू द्वीप के नाम से भी जाना जाता है। पुरातत्वविद मदकू द्वीप में छिपे रहस्यों को सुलझाने में आज भी जुटे हैं। शिवनाथ नदी के पानी से घिरा मदकू द्वीप आम तौर पर जंगल जैसा ही है। शिवनाथ नदी के बहाव ने मदकू द्वीप को दो हिस्सों में बांट दिया है। एक हिस्सा लगभग 35 एकड़ में है, जो अलग-थलग हो गया है। दूसरा करीब 50 एकड़ का है, जहां 2011 में उत्खनन से पुरावशेष मिले हैं।
नदी किनारे से पुरावशेष के मूल अकूत खजाने तक पहुंचने की पगडंडी के दोनों पेड़ों के घने झुरमुट हैं। यहां नदी से बहते पानी की कलकल आती आवाज रोमांचित करती है। मुख्य द्वार से अंदर पहुंचते ही दायीं तरफ पहले धूमेश्वर महादेव मंदिर और फिर श्रीराम केवट मंदिर आता है। थोड़ी दूर पर ही श्री राधा कृष्ण, श्री गणेश और श्री हनुमान के प्राचीन मंदिर भी हैं।

यहीं हुई थी माण्डूक्योपनिषद् की रचना
यहां 19 मंदिरों के समूह को देखने दूर-दूर से लोग आते हैं, जो 11वीं सदी के कल्चुरी कालीन पुरावैभव की कहानी बयां करते हैं। इसे मांडूक्य ऋषि की तपो स्थली के रूप में भी चिन्हित किया गया है। संभवत: यहीं पर ऋषि ने माण्डूक्योपनिषद् की रचना की। संविधान में समाहित किए गए सत्यमेव जयते भी इसी महाकृति के प्रथम खंड का छठवां मंत्र है।
यहां है 19 मंदिरों का समूह
जानकारों के अनुसार पुरा मंदिरों के समूह वाला गर्भगृह पहले समतल था। जब खुदाई हुई तो वहां 19 मंदिरों के भग्नावशेष और कई प्रतिमाएं बाहर आईं। इसमें 6 शिव मंदिर, 11 स्पार्तलिंग और एक-एक मंदिर क्रमश: उमा-महेश्वर और गरुड़ारूढ़ लक्ष्मी-नारायण मंदिर मिले हैं। खुदाई के बाद वहां बिखरे पत्थरों को मिलाकर मंदिरों का रूप दिया गया। शिवनाथ नदी के किनारों को रेत माफिया जिस तरह आसपास की जगहों को खोखला कर रहा है, वह इस मदकू द्वीप के लिए बड़ा खतरा बना हुआ है। छत्तीसगढ़ के इस मोहनजोदड़ो खजाने के जमीन में छिपे अनमोल रहस्यों को बाहर लाने के लिए गहन शोध के साथ ही राजकीय संरक्षण भी जरुरी है।