fbpx

Total Users- 594,829

Total Users- 594,829

Sunday, December 22, 2024

व्यंग गुस्ताखी माफ : जैसा गुरु वैसा चेला, चतुर गुरु चालाक चेला 

गुरु गुड रह गये और चेला शक्कर हो गया
जिंदगी में देखिये क्या घनचक्कर हो गया


नमस्कार साथियों , मेरे व्यंग्य ‘ गुस्ताखी माफ’ के नाम से प्रकाशित होते हैं . जिसमें एक कैरेक्टर होता है पत्रकार माधो , जोकि किसी के भी भीतर रहने वाल एक चरित्र है जोकि व्यंग मज़ाक़ में बहुत गहरी बात कह देता है. शिक्षक दिवस के अवसर पर ऐसी ही एक पेशकश

एक नेताजी अपने भाषण में बोले, शिक्षक दिवस पर मैं अपने सभी गुरुओं को तहे दिल से शुक्रिया अदा करता हूं । आज उनकी बदौलत ही मैं इस मुकाम पर पहुंचा हूं। फिर वे अपने जीवन में आये गुरुओं की कथा विस्तार से बताने लगे। मेरी आंखों के सामने नेताजी की जीवनी फिल्म की भांति चलने लगी ।

जब वह आठवीं कक्षा में अपने साथी को बेदम मरते हुए पकड़ा गए थे इसलिए गुरूजी के द्वारा स्कूल से निकाल दिए गए थे । गुरूजी की इस मेहरबानी से वे आवारा टोली में शामिल हो गए और गुंडागर्दी करने लगे। इस बात से उनमे दबंगाई के गुण कूट-कूट कर भर गए। फिर अपने घर वालों के दबाव में मैट्रिक की परीक्षा में बैठे , वहां भी उन्हें अन्य गुरूजी ने नक़ल मारते पकड़ लिया।

बाहर निकल कर उन्होंने पकड़वाने वाले गुरूजी से मारपीट की तो गुरूजी के कारण उन्हें बाल सुधार गृह भेज दिया गया । वहां उपस्थित बाल सुधार गृह के गुरूजी से इतने डंडे खाए कि उनका डंडे खाने से डर समाप्त हो गया।

बदमाशों से दोस्ती और निडरता के कारण उन्हें एक लोकल नेता ने अपना चेला बना लिया (या कहें इन्होने उसे गुरु बना लिया)। गुरु-नेता की आज्ञा से विरोधियों के हाथ-पैर तोडऩा , उग्र हड़ताल प्रदर्शन में पुलिस से डंडे खाना और जेल जाने की महारथ ने उन्हें छुटभैया नेता बना दिया ।

फिर अपने राजनैतिक गुरु-नेता से सीखी अवसरवादिता के चलते चुनाव में अपने गुरु-नेता के विरुद्ध भीतरघात कर , इन्होने उन्हें चुनाव हरवा दिया । फिर गुरु-नेता के विरोध व उस पार्टी के दूसरे दूसरे गुटों का समर्थन पाकर वे अगला चुनाव जीत गए। सचमुच श्रद्धा से भरे नेताजी द्वारा गुरु महिमा बखान सुनकर मेरी आंखें नम हो गयीं।

यह कथा उन्हें सुनाते हुए , शिक्षक दिवस पर अपने व्यंगकार गुरु, पत्रकार माधो को मैंने बधाई दी तो वे बोले, अच्छा है कि कम से कम शिक्षक दिवस पर लोग अपनी सफलता का श्रेय गुरुओं को देते हैं वर्ना ओहदे, पैसे और पहुंच के कारण साल भर उन्हें अपमानित करते हैं। पुराने ज़माने में गुरु और शिष्य एक नैतिकता के दायरे में रहते थे इसलिए उनके मन में एक दूसरे के लिए सचमुच प्रेम और श्रद्धा होती थी पर अब रिश्ते कमर्शियल हो गए हैं।

शिक्षकों का मनोबल बनाये रखने के लिए , शिक्षक दिवस का कार्यक्रम आयोजित करने वाले सभी आयोजनकर्ताओं को, मैं साधुवाद देता हूं क्योंकि इस एक दिन वे , शिक्षकों को स्वयं को महान मानने का मुगालता पलवा देते हैं । शिष्यों द्वारा इस प्रयास में साथ देना बेहद पुण्य का कार्य है। मैं शिष्यों को भी तहेदिल से धन्यवाद देता हूं क्योंकि आज के बेदर्द शिष्य अपनी किसी भी असफलता का सारा दोष, गुरुओं के मत्थे मढ़ सकते हैं ।

इंजी. मधुर चितलांग्या, संपादक
दैनिक पूरब टाइम्स


 

More Topics

वो ख्वाबों के दिन (भाग – 22)

वो ख्वाबों के दिन  ( पिछले 21 अंकों में...

जानिए एनडीए का पेपर कैसा होता है और कैसे आप इसे पास कर सकते हैं

एनडीए (नेशनल डिफेंस एकेडमी) परीक्षा भारतीय सशस्त्र बलों में...

“समझिए खिलाफत आंदोलन के ऐतिहासिक कारण और प्रभाव”

खिलाफत आंदोलन (Khilafat Movement) भारतीय इतिहास का एक महत्वपूर्ण...

Follow us on Whatsapp

Stay informed with the latest news! Follow our WhatsApp channel to get instant updates directly on your phone.

इसे भी पढ़े