पिछले दिनों रायपुर की एक कॉलोनी झमेले में आ गई थी . जिन लोगों ने प्लॉट्स खरीदे थे , उन्हें भी निगम को लाखों रुपये में विकास शुल्क व पेनाल्टी पटानी पड़ी वर्ना उन प्लॉट्स के राजसात होने के अलावा उन लोगों पर एफआईआर भी हो सकती थी . उन खरीददारों ने शुरुआत से अच्छी तरह से कागज़ों का मुआयना किया होता तो उनका पैसा झमेले में नहीं पड़ता . हांलाकि कई बार कागज़ात इतने कूट–रचित होते हैं कि एक -दो कागज़ों के देखने पर प्रोजेक्ट सही शॉट दिखता है परन्तु गहराई
में जाने पर गड़बड़ियां सामने आ जाती है और पैसे फंसने से बचा जा सकता है
अगर आप प्रॉपर्टी खरीदना चाहते है तो आपको पहले उसके बारे में पूरी जानकारी हांसिल करनी
होगी। अगर आप जल्दी में प्रॉपर्टी बुक करा लेते है और उसमें कोई कमी रह जाती है तो
आपको इसका खामियाजा पूरी जिंदगी भुगतना पड़ सकता है। इसलिए अगर आप प्रॉपर्टी
खरीदने के बारे में विचार कर रहे है तो आप पहले इन अहम दस्तावेजों की जांच जरूर कर
लें। इसके बाद ही टेंशन फ्री होकर प्रॉपर्टी खरीदें।
भूमि रिकार्ड की जानकारी –
अगर, आप खेती की जमीन, कॉमर्शियल प्लॉट ले रहे हैं तो इसके भी दस्तावेजों को जांच जरूर करें। खेती की जमीन के दस्तावेजों की जानकारी राज्य सरकार के राजस्व विभाग से मिल जाएगी। जमीन के वर्तमान खसरा नंबर से जमीन के पुराने से लेकर आज तक के रिकार्ड की प्रतिलिपियां तहसील ऑफिस और जिला रिकार्ड रूम से प्राप्त की जा सकती हैं। वहीं, कॉमर्शियल प्लॉट के पेपरों की जानकारी लोकल अथॉरिटी से मिल जाएगी।
मल्टी स्टोरी प्रोजेक्ट में प्रॉपर्टी-
मल्टी स्टोरी प्रोजेक्ट में खरीददारी करने जा रहे हैं तो उसके पहले यह जांच लें कि उस डेवलपर को वहां पर कंस्ट्रक्शन की इजाजत मिली है या नहीं ? रेरा में रजिस्ट्रेशन करवाया है या नहीं ? सभी क्लियरेंस के दस्तावेज की मांग डेवलपर्स से करें। यदि डेवलपर जानकारी देने से मना करता है तो संबंधित विभागों से इसकी जानकारी एकत्र करें। प्रॉपर्टी का नक्शा पास हुआ है या नहीं, इसकी भी जानकारी बहुत जरूरी होती है। कंस्ट्रक्शन शुरू करने के लिए सभी विभागों से क्लियरेंस जरूरी होती है। यदि डेवलपर जानकारी देने से मना करता है तो प्रॉपर्टी में निवेश नहीं करें। ग्राहक को इस बात की छानबीन भी करनी चाहिए कि जिस प्रोजेक्ट में वे निवेश करने जा रहे हैं, उसे टाउन प्लानिंग अप्रूवल दिया गया है या नहीं।अगर, प्रोजेक्ट पूरा हो चुका है तो डेवलपर से कंप्लीशन सर्टिफिकेट और ऑक्यूपेंसी सर्टिफिकेट की मांग करें। अगर, डेवलपर ऑक्यूपेंसी सर्टिफिकेट देने से मना करता है तो इस बात की ओर इशारा करता है कि वह प्रोजेक्ट अप्रूव्ड प्लान के अनुसार निर्माण नहीं किया गया है।इस तरह के प्रोजेक्ट में अनधिकृत निर्माण की गिराने की संभावना बहुत ज़्यादा होती है। इस तरह की प्रॉपर्टी में निवेश नहीं करें।
सेल डीड-
प्रॉपर्टी खरीदते वक्त पुरानी सेल डीड की जांच अवश्य करें, इससे आपको प्रॉपर्टी की वैधता के बारे में पता चल जाएगा। सेल डीड देखने से प्रॉपर्टी के मालिकाना हक और विवादों कीजानकारी मिल जाती है। प्रॉपर्टी फ्रॉड के अधिकतर मामले फर्जी कागजात के जरिए किए जाते हैं, इसलिए असली सेल डीडी देखकर प्रॉपर्टी लेने में कोई समस्या नहीं आती है। डेवलपर से प्रॉपर्टी ट्रांसफर के दस्तावेज भी जरूर जांच लें।
एनओसी-
सोसाइटी में प्रॉपर्टी खरीदने में एनओसी काफी अहम होता है। इससे पता चलता है कि प्रॉपर्टी
की ट्रांसफर में कोई समस्या नहीं है।एनओसी सर्टिफिकेट से यह भी पता चलता है कि प्रॉपर्टी बेचने वाला किसी तरह का डिफॉल्टर नहीं है। अगर, सेलर कहता है कि एनओसी वह बाद में देगा तो प्रॉपर्टी नहीं खरीदें।
शहरी क्षेत्रों में दस्तावेजों की जांच-
शहरी इलाकों में लैंड का रेगुलेशन जोन वाइज, ग्राम तथा नगर निवेश विभाग द्वारा किया जाता है। इसलिए प्रॉपर्टी लेने से पहले ग्राम तथा नगर निवेश विभाग व लोकल विकास प्राधिकरण में जाकर उसके लैंड यूज़ सर्टिफिकेट के लिए आवेदन करें। यह सुनिश्चित करें कि जिस प्रॉपर्टी को आप खरीदने जा रहे हैं, वह रेजिडेंशियल जोन में है। अगर, प्रॉपर्टी कॉमर्शियल या इंडस्ट्रियल जोन में है तो उसमें निवेश बिल्कुल नहीं करें क्योंकि ऐसे इलाकों में रेजिडेंशियल इमारत बनाना अवैध होता है।
लैंड यूज में बदलाव-
कई बार कृषि जमीन का यूज बदल कर उसे गैर कृषि इस्तेमाल के लिए कर दिया जाता है। अगर जमीन
इस तरह की है तो तहसीलदार या अन्य संबंधित अधिकारी के यहां फीस के साथ आवेदन कर
इसका एंडोर्समेंट ऑर्डर हासिल करें।
इनके अलावा आप आस-पास के लोगों से उस प्रॉपर्टी के बारे में
पूछें. यदि कोई विवाद हुआ होगा तो उसकी जानकारी आपको हो पाएगी. उस विवाद के
निराकरण का पता लगने पर ही उस प्रॉपर्टी की तरफ नज़र डालें .
इंजी. मधुर चितलांग्या , संपादक
दैनिक पूरब टाइम्स