सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश के मदरसा बोर्ड अधिनियम को लेकर बड़ा और अच्छा फैसला सुनाया। सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के उस फैसले को रद्द कर दिया जिसमें हाईकोर्ट ने यूपी के मदरसा एक्ट को असंवैधानिक करार दिया था। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि मदरसा बोर्ड अधिनियम संविधान के किसी प्रावधान का उल्लंघन नहीं करता। इसका मतलब है कि मदरसों के चलने पर अब किसी तरह का कोई ख़तरा नहीं है। सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में ये भी कहा है कि सरकार मदरसों के प्रबंधन में दखल नहीं दे सकती, लेकिन मदरसों में क्या पढ़ाया जाए, शिक्षा का स्तर बेहतर कैसे हो, मदरसों में बच्चों को अच्छी सुविधाएं कैसे मिलें, इन विषयों पर सरकार नियम बना सकती है। सुप्रीम कोर्ट ने ये भी साफ किया है कि मदरसों में जो गैर मुस्लिम बच्चे पढ़ते हैं, उन्हें इस्लामिक साहित्य पढ़ने और इस्लामिक रीति रिवाजों का पालन करने पर मजबूर नहीं किया जा सकता। साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने मदरसों में मिलने वाली ग्रेजुएशन और पोस्ट ग्रेजुएशन की डिग्री को गैरकानूनी घोषित कर दिया।
चीफ जस्टिस डी वाई चन्द्रचूड़ के नेतृत्व वाली तीन जजों की बेंच ने कहा कि मदरसों को मान्यता देने और उन्हें आर्थिक सहायता देने के लिए राज्य सरकार अच्छी गुणवत्ता वाली शिक्षा की शर्तें रख सकती हैं। राज्य सरकार मदरसों के कोर्स, शिक्षकों की योग्यता के स्तर और डिग्री के मानदंड तय कर सकती है। राज्य सरकार को मदरसों में शिक्षकों की नियुक्ति, बच्चों की सेहत और साफ़-सफ़ाई और पुस्तकालय जैसी सुविधाओं के नियम बनाने का पूरा अधिकार है। सुप्रीम कोर्ट ने ये भी कहा कि मदरसा बोर्ड फ़ाज़िल और कामिल की डिग्री नहीं दे सकता क्योंकि ये UGC अधिनियम के ख़िलाफ़ है। मदरसों को केवल आलिम तक की डिग्री देने का अधिकार है। आलिम की डिग्री 12वीं क्लास पास करने के बराबर मानी जाती है जिसके आधार पर कॉलेज और विश्वविद्यालय में प्रवेश मिलता है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि मदरसे, ग्रेजुएशन और पोस्ट ग्रेजुएशन के लिए जो फ़ाज़िल और कामिल की डिग्री देते हैं, उसकी कोई मान्यता नहीं है और इसके लिए मदरसों को पहले UGC से अनुमति लेनी होगी। सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले का लगभग सारे बड़े मुस्लिम संगठनों ने स्वागत किया है। जमीयत उलमा ए हिंद और अखिल भारतीय शिया पसर्नल लॉ बोर्ड ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट की ग़लती सुधार दी है।
यूपी में 16 हज़ार 500 मदरसे चल रहे हैं। इनमें 17 लाख से ज़्यादा बच्चे पढ़ते हैं। 2017 में मुख्यमंत्री बनने के बाद योगी आदित्यनाथ ने मदरसों के आधुनिकीकरण की कोशिश शुरू की। मदरसा पोर्टल बनाया, जहां यूपी के सारे मदरसों को अपना पंजीयन कराना था। नतीजा ये हुआ कि गैरकानूनी तरीक़े से चल रहे पांच हज़ार से ज़्यादा मदरसे बंद हो गए। मदरसों में बच्चों को नक़ल से रोकने के लिए वेबकैम लगवाए गए। ग़ैर मान्यता प्राप्त मदरसों का सर्वे कराया। जिन मदरसों ने सरकारी सहायता की मांग की, ऐसे 558 मदरसों को योगी सरकार मदद देती है। इन मदरसों को सरकार की तरफ़ से शिक्षकों और स्टाफ का वेतन दिया जाता है। बच्चों को NCERT की किताबें और मिड-डे मील मिलता है। मदरसों को लेकर दो तरह के मसले थे। एक, राज्य सरकारों को लगता था कि मदरसों में आधुनिक शिक्षा नहीं दी जाती, वहां सिर्फ इस्लामिक ग्रंथों की पढाई पर ज्यादा जोर दिया जाता है। दूसरी तरफ मदरसा चलाने वालों को लगता था कि सरकारें मदरसों पर कब्जा करना चाहती हैं, उनके काम काज में दखल देना चाहती हैं। सुप्रीम कोर्ट ने दोनों का जवाब दे दिया।
सरकारें मदरसों के प्रबंध में दखलंदाजी नहीं कर पाएंगी, पर मदरसों में क्या पढ़ाया जाए, पाठ्यक्रम क्या हो, विषय क्या हो, इस बाबत सरकारें फैसला कर सकती हैं। इस फैसले का स्वागत होना चाहिए। मदरसे चलाने वालों को इस मौके का इस्तेमाल आधुनिक शिक्षा की शुरुआत के लिए करना चाहिए ताकि मदरसों में पढ़ने वाले बच्चे आगे चलकर, अच्छे कालेजों में प्रवेश पा सकें, डॉक्टर्स, इंजीनियर्स, वकील और आईटी प्रोफेशनल्स बन सकें। दूसरी तरफ ये प्रचार खत्म होना चाहिए कि मदरसों में आतंकवादी तैयार किए जाते हैं। दो-चार जगह किसी मौलाना, मौलवी के मदरसों की मिसाल देकर सारे मदरसों को बदनाम नहीं करना चाहिए। दुख की बात ये है कि राजनैतिक दलों ने इसमें भी सियासी मुद्दा ढूंढ लिया। इसको मदरसों में पढ़ाने वाले शिक्षकों की तनख्वाह तक सीमित कर दिया, जबकि असली जरूरत मदरसों की शिक्षा प्रणाली को, वहां पढ़ाने वाले शिक्षकों की योग्यता को और मदरसों में पुस्तकालय जैसी सुविधाओं को बेहतर बनाने की है। इसकी कोशिश सब को मिलकर करनी चाहिए। (रजत शर्मा)
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