2030 तक इस डैम पर लगभग 1.2 ट्रिलियन युआन (151,46,52,00,00,000 भारतीय रुपये) का खर्च आएगा। इससे हर साल 300 बिलियन किलोवाट घंटे बिजली बनेगी। इस इलाके की निगरानी करने वाले साइंटिस्ट ताइगांग झांग हैं, जो बीजिंग में तिब्बती पठार रिसर्च इंस्टीट्यूट (ITPCAS) में काम करते हैं। उनका काम बर्फ और ग्लेशियर से जुड़े खतरों पर फोकस करता है।
इस प्रोजेक्ट का मकसद क्या है? चीनी सरकार ने इस डैम के कंस्ट्रक्शन और आगे के डेवलपमेंट की देखरेख के लिए एक नई सरकारी कंपनी, चाइना याजियांग ग्रुप बनाई है। इस डैम से बनने वाली ज़्यादातर बिजली कोस्ट के पास की फैक्ट्रियों और शहरों में भेजी जाएगी। प्रधानमंत्री ली केकियांग ने इस प्रोजेक्ट की तारीफ़ करते हुए कहा कि ऐसे बड़े काम हर 100 साल में सिर्फ़ एक बार होते हैं। उन्होंने इंजीनियरों से पर्यावरण सुरक्षा को प्राथमिकता देने की भी अपील की।
चीनी अधिकारियों का कहना है कि यह डैम नीचे के इलाकों में पानी की सप्लाई या पर्यावरण को नुकसान नहीं पहुँचाएगा। भारत और बांग्लादेश इस दावे की पूरी तरह से जाँच करना चाहते हैं। यहीं पर यारलुंग ज़ंगबो नदी, जो तिब्बत से निकलती है, भारत में ब्रह्मपुत्र बन जाती है। फिर यह बांग्लादेश में बहती है, जहाँ यह दुनिया के सबसे बड़े नदी डेल्टा में से एक को बनाए रखने में मदद करती है। यह नदी पीने का पानी, चावल और दूसरी फसलों के लिए सिंचाई, मछली पालन और नदी के किनारे के शहरों को पानी देती है।


