समय कितना बदल गया है . ऐसा लगता है कि कुछ समय में ही ऐसे व्यक्ति को अनपढ़ मान लिया जाएगा जिसको कम्प्यूटर चलाना नहीं आता हो . उस समय समझ आएगा कि आपने समय रहते क्यों मेरी बात मान कर कंप्यूटर नहीं सीखा , आगे वेब मीडिया का ज़माना आ रहा है ? मैं अपने साथ कार्य करने वाले एक साथी सीनियर पत्रकार को समझा रहा था .
वे मुझसे रुखाई से बोले ,’ ऐसा कुछ नहीं होगा . पहले कहा जाता था कि टीवी आ जाएगा तो अखबार ख़त्म हो जाएगा , पर कुछ हुआ ? अब कहते हो कि वेब मीडिया आने से प्रिंट मीडिया को ख़तरा है . क्या कभी भैंस आने से गाय का महत्व खत्म हुआ है . मेरी इन बातों से अनेक सीनियर जर्नलिस्ट सहमत हैं ‘.
मैंने दूसरा उदाहरण देकर उन्हें समझाने की कोशिश जारी रखी. मैंने कहा, कहते हैं कि अंग्रेजों ने जब रेलवे लाइनें बिछा कर उस पर ट्रेनें चलाई तो देश के अनेक लोग उस पर चढ़ने से यह सोच कर डरते थे कि मशीनी चीज का क्या भरोसा, कुछ दूर चले और भरभरा कर गिर पड़े. हमने बचपन में सुना था कि गांव में ऐसे कई बुजुर्ग थे जिनके बारे में कहा जाता था कि उन्होंने जीवन में कभी ट्रेन में पैर नहीं रखा था . नाती – पोते उन्हें यह कर चिढ़ाते थे कि फलां के यहां शादी आयी है , जहां जाना ज़रूरी है , इस बार तो आपको ट्रेन में बैठना ही पड़ेगा. इस पर बेचारे बुजुर्ग रोने लगते, दलीलें देते कि अब तक यह गांव – कस्बा ही हमारी दुनिया थी… अब बुढ़ापे में यह फजीहत क्यों करा रहे हो…. अब तो बुजुर्ग लंबा सफर बस में चलना बिलकुल पसंद नहीं करते हैं बल्कि ट्रेन पर बैठना चाहते हैं .
वे सर झटक कर मेरे पास से चले गए . कितनी अजीब बात है यह . सभी परिवर्तन सामने दिखाई देते हैं पर व्यक्ति अपने बदगुमान में यह सब नहीं देख पाता है . ऐसा उस व्यक्ति के साथ ज़्यादा होता है जिसने कडा संघर्ष कर , अनुभव प्राप्त कर सफलता पाई है . आज परिस्थितियां इतनी तेज़ी से बदल रही हैं कि यदि उनपर नज़र रख , खुद को उसके हिसाब से नहीं ढालेंगे तो आगे बड़ी परेशानियां आ सकती हैं. आपका ओब्ज़र्वेशन (पारखी नज़र ) बेहतर हो ताकि आप अपने क्षेत्र के परिवर्तन को भांपकर उसके अनुसार अपने को ढालें , इन्हीं शुभकामनाओं के साथ आज का यह अंक समर्पित ..
इंजी.मधुर चितलांग्या , संपादक ,
दैनिक पूरब टाइम्स