79 ईस्वी में माउंट वेसुवियस के विनाशकारी विस्फोट में मरने वाले एक व्यक्ति का मस्तिष्क एक दुर्लभ प्रक्रिया में कांच में बदल गया। वैज्ञानिक लंबे समय से इस रहस्य पर बहस कर रहे थे कि ऐसा कैसे हुआ, क्योंकि पायरोक्लास्टिक प्रवाह (गर्म राख, गैस और चट्टानों का मिश्रण) इतना गर्म नहीं था कि यह परिवर्तन संभव हो सके।
अब, एक नए अध्ययन में शोधकर्ताओं ने इसका संभावित कारण खोज निकाला है। उनका मानना है कि विस्फोट से पहले एक अति-गर्म राख का बादल व्यक्ति के शरीर से टकराया, जिससे उसका मस्तिष्क तेजी से गर्म हुआ और फिर अचानक ठंडा हो गया, जिससे वह कांच जैसा हो गया।
वैज्ञानिकों की खोज और प्रमाण
रोमा ट्रे विश्वविद्यालय के वैज्ञानिक गुइडो गियोर्डानो और उनकी टीम ने हरकुलेनियम (पोम्पेई के पास स्थित एक प्राचीन शहर) में पाए गए चारकोल के टुकड़ों का अध्ययन किया। उन्होंने पाया कि ये टुकड़े अत्यधिक गर्मी के संपर्क में आए थे, जो संकेत देता है कि वहां एक शुरुआती राख का बादल मौजूद था।
यह खोज 2020 में प्रकाशित एक अध्ययन को और मजबूत करती है, जिसमें दावा किया गया था कि व्यक्ति के अवशेषों में पाया गया कांच जैसा पदार्थ वास्तव में मस्तिष्क ऊतक हो सकता है। हालांकि, तब कुछ वैज्ञानिकों ने इस दावे पर सवाल उठाए थे।
अन्य ज्वालामुखी विस्फोटों में भी देखे गए ऐसे राख के बादल
शोधकर्ताओं का कहना है कि इसी तरह के अति-गर्म राख के बादल हाल के ज्वालामुखीय विस्फोटों के दौरान भी देखे गए हैं, जैसे 1991 में जापान के माउंट अनजेन और 2018 में ग्वाटेमाला के फ्यूगो ज्वालामुखी के विस्फोट के दौरान।
शोधकर्ताओं का अनुमान है कि हरकुलेनियम में इस राख के बादल का तापमान 510 डिग्री सेल्सियस (950 डिग्री फारेनहाइट) से अधिक था। इतनी गर्मी ने पहले मस्तिष्क के ऊतकों को जलाया और फिर तेजी से ठंडा करके उन्हें कांच में बदल दिया।
निष्कर्ष
इस खोज से यह स्पष्ट होता है कि ज्वालामुखी विस्फोटों के दौरान न केवल लावा और राख खतरनाक होते हैं, बल्कि गर्म गैसों और राख के बादलों का प्रभाव भी उतना ही विनाशकारी हो सकता है। यह अध्ययन प्राचीन इतिहास के एक रहस्य को हल करने के साथ-साथ भविष्य के ज्वालामुखी खतरों को समझने में भी मदद करेगा।