नई दिल्ली: वैज्ञानिकों ने एक नए अध्ययन में खुलासा किया है कि पृथ्वी के झुकाव में बदलाव ने पिछले 800,000 वर्षों में हिमयुगों की शुरुआत और समाप्ति को नियंत्रित किया है। यू.के. के कार्डिफ़ विश्वविद्यालय के प्रोफेसर स्टीफन बार्कर और उनकी टीम ने शोध में पाया कि सूर्य के सापेक्ष पृथ्वी की स्थिति और कोण बर्फ की चादरों के बनने और पिघलने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
अगला हिमयुग 11,000 वर्षों में संभावित
शोधकर्ताओं के अनुसार, पृथ्वी का झुकाव लगभग 41,000 वर्षों के चक्र में बदलता रहता है, जिससे बर्फ की चादरों के विस्तार और संकुचन पर प्रभाव पड़ता है। अध्ययन में अनुमान लगाया गया कि अगला हिमयुग लगभग 11,000 वर्षों में आ सकता है, लेकिन मानव-जनित ग्लोबल वार्मिंग इसे रोक सकती है। बार्कर ने बताया कि ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन के कारण पृथ्वी इतनी गर्म हो रही है कि यह प्राकृतिक हिमयुग चक्र को बाधित कर सकता है।
झुकाव और डगमगाहट का प्रभाव
पृथ्वी की धुरी वर्तमान में 23.5 डिग्री के कोण पर झुकी हुई है, लेकिन यह झुकाव समय के साथ बदलता रहता है। वैज्ञानिक मिलुटिन मिलनकोविच ने 1920 के दशक में प्रस्तावित किया था कि पृथ्वी की कक्षा और झुकाव में मामूली बदलाव बड़े पैमाने पर हिमयुग को ट्रिगर कर सकते हैं। बार्कर और उनकी टीम ने समुद्री तलछट में पाए गए सूक्ष्मजीवों (फोराम्स) के अध्ययन से बर्फ की चादरों के विस्तार और संकुचन के ऐतिहासिक पैटर्न को ट्रैक किया।
मानव-निर्मित जलवायु परिवर्तन एक बाधा
शोधकर्ताओं का मानना है कि अगर औद्योगिक गतिविधियों के कारण ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन नहीं होता, तो पृथ्वी अपने प्राकृतिक जलवायु चक्र के अनुसार एक और हिमयुग की ओर बढ़ रही होती। हालांकि, वर्तमान उत्सर्जन स्तरों को देखते हुए, यह चक्र बाधित हो सकता है और भविष्य में हिमयुग की संभावना कम हो सकती है।
निष्कर्ष
यह अध्ययन पृथ्वी के जलवायु इतिहास को समझने में एक महत्वपूर्ण कदम है और यह दर्शाता है कि पृथ्वी का झुकाव और कक्षीय परिवर्तन किस तरह से जलवायु पर दीर्घकालिक प्रभाव डालते हैं। हालांकि, मानवजनित जलवायु परिवर्तन प्राकृतिक चक्रों को बदल सकता है, जिससे हिमयुग की संभावना प्रभावित हो सकती है।