गुरु गोरखनाथ भारतीय संत और योगी थे, जो नाथ पंथ के प्रमुख संत माने जाते हैं। वे विशेष रूप से अपनी योग साधना और तंत्र-मंत्र के अभ्यास के लिए प्रसिद्ध थे। गुरु गोरखनाथ का जन्म नेपाल में हुआ था, हालांकि उनके जन्म स्थान को लेकर विभिन्न मत हैं। वे गोरखपुर, उत्तर प्रदेश, भारत से भी जुड़े हुए हैं, और गोरखनाथ मंदिर वहां स्थित है।
जीवन और शिक्षा
गुरु गोरखनाथ के जीवन के बारे में बहुत सी किंवदंतियाँ हैं, लेकिन उनके जन्म और जीवन की सटीक तारीख का कोई ठोस प्रमाण नहीं है। उन्हें शैव योग की विशेष शिक्षा प्राप्त थी। कहा जाता है कि उन्होंने अपनी गुरु, गुरु मत्स्येंद्रनाथ से शिक्षा ली थी। गुरु गोरखनाथ ने योग और तंत्र के माध्यम से आत्मज्ञान प्राप्त किया और उसे प्रसार किया। वे योग और ध्यान के अभ्यास को जीवन का महत्वपूर्ण हिस्सा मानते थे।
आगे पढ़ेकार्य और योगदान
गुरु गोरखनाथ ने नाथ पंथ की स्थापना की, जो एक योग और तंत्र पर आधारित धार्मिक आंदोलन था। उन्होंने साधना, तपस्या और आत्मानुशासन के द्वारा लोगों को आत्मा की उन्नति की राह दिखायी। गोरखनाथ का यह सिद्धांत था कि हर व्यक्ति के भीतर ईश्वर का अंश है, और आत्म-साक्षात्कार के द्वारा हम उसे पहचान सकते हैं। उनका उद्देश्य था कि वे समाज में जागरूकता फैलाकर लोगों को आत्मिक उन्नति की दिशा में प्रेरित करें।
गोरखनाथ के सिद्धांत और दर्शन
- योग और तंत्र: गुरु गोरखनाथ ने योग की विधियों को अत्यधिक महत्व दिया। उन्होंने ध्यान और साधना के माध्यम से आत्मा के वास्तविक स्वरूप को पहचानने की आवश्यकता पर जोर दिया।
- आध्यात्मिक उन्नति: उन्होंने यह सिखाया कि केवल बाहरी पूजा-पाठ से आत्मिक उन्नति नहीं होती, बल्कि सही योगाभ्यास और साधना से मनुष्य अपनी आत्मा को पहचान सकता है।
- समाज सुधार: वे समाज में व्याप्त अंधविश्वास और आडंबर को खत्म करने के लिए प्रयासरत थे। उनका मानना था कि सभी मनुष्य समान हैं और उन्हें अपनी आत्मिक यात्रा में किसी प्रकार की भेदभाव की आवश्यकता नहीं होनी चाहिए।
काव्य और साहित्य
गुरु गोरखनाथ का साहित्य भी काफी महत्वपूर्ण है। उनके द्वारा लिखे गए काव्य, शलोक और शस्त्रों में योग, ध्यान और तंत्र के गहरे रहस्यों का वर्णन मिलता है। उनका प्रसिद्ध “गोरखनाथ की गाथा” आज भी नाथ पंथियों के बीच प्रचलित है। इसके अलावा, उन्होंने नाथ पंथ के अनुयायियों के लिए उपदेश देने वाले कई ग्रंथ भी लिखे हैं।
गुरु गोरखनाथ का योगदान भारतीय योग और तंत्र विद्या में अत्यंत महत्वपूर्ण है, और वे आज भी योग साधना के प्रतीक के रूप में प्रतिष्ठित हैं।
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