एक नए अध्ययन में खुलासा हुआ है कि 2000 से 2023 के बीच पृथ्वी के ग्लेशियरों ने हर साल औसतन 300 बिलियन टन (273 बिलियन मीट्रिक टन) बर्फ खोई है, जिससे सहस्राब्दी की शुरुआत से अब तक कुल मात्रा में 5% की गिरावट दर्ज की गई है।
तेजी से बढ़ रहा बर्फ का नुकसान
फ्रेंच नेशनल सेंटर फॉर साइंटिफिक रिसर्च (CNRS) द्वारा किए गए इस अध्ययन में पाया गया कि ग्लेशियरों से हर सेकंड लगभग तीन ओलंपिक स्विमिंग पूल के बराबर बर्फ पिघल रही है या टूट रही है। यह चौंकाने वाली गिरावट मुख्य रूप से बढ़ते ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन और ग्लोबल वार्मिंग के कारण हो रही है।
वैज्ञानिक भी हैरान
वर्ल्ड ग्लेशियर मॉनिटरिंग सर्विस के निदेशक, प्रोफेसर माइकल ज़ेम्प ने कहा, “हमें पहले से ही ग्लेशियरों के पिघलने की उम्मीद थी, लेकिन पिछले कुछ वर्षों में बर्फ के नुकसान की मात्रा वैज्ञानिकों के लिए भी चौंकाने वाली है।”
यूरोप में सबसे अधिक असर
अध्ययन के अनुसार, यूरोप के आल्प्स और पाइरेनीस पर्वतों में ग्लेशियरों की मात्रा में सबसे अधिक गिरावट आई है। इन क्षेत्रों में 2000 से 2023 के बीच ग्लेशियरों का आकार 40% तक कम हो गया। “यूरोपीय आल्प्स में, सिर्फ दो साल के भीतर ग्लेशियरों ने अपनी 10% बर्फ खो दी,” ज़ेम्प ने बताया।
बर्फ के नुकसान की रफ्तार बढ़ी
शोधकर्ताओं ने उपग्रह डेटा और प्रत्यक्ष माप का विश्लेषण कर पाया कि 2012 से 2023 के बीच बर्फ का वार्षिक नुकसान 36% बढ़ गया, जो दर्शाता है कि यह प्रक्रिया पहले की तुलना में और तेज हो गई है।
क्या है भविष्य की चेतावनी?
यह अध्ययन नेचर पत्रिका में प्रकाशित हुआ है और यह स्पष्ट संकेत देता है कि अगर ग्लोबल वार्मिंग पर काबू नहीं पाया गया, तो आने वाले दशकों में दुनिया भर के ग्लेशियर और तेजी से पिघल सकते हैं, जिससे समुद्र के जल स्तर में खतरनाक बढ़ोतरी हो सकती है।