मां का दूध बच्चों के लिए सबसे प्राकृतिक और पौष्टिक आहार माना जाता है। यह उनकी शारीरिक और मानसिक वृद्धि के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण होता है। अगर बच्चों को बॉटल का दूध देना पड़े तो कुछ संभावित खतरे हो सकते हैं, जिन्हें समझना जरूरी है:
- कमजोर इम्यूनिटी: बॉटल के दूध से बच्चों की रोग प्रतिरोधक क्षमता कमजोर हो सकती है, जिससे वे अक्सर सर्दी-खांसी, बुखार जैसी बीमारियों का शिकार हो सकते हैं।
- मोटापा: बॉटल से पिलाए गए दूध, विशेषकर जानवरों या पाउडर दूध से बच्चों में मोटापा बढ़ सकता है। जानवरों के दूध में अधिक फैट होता है, जो वजन बढ़ाने का कारण बन सकता है।
- धीमी ग्रोथ: बॉटल का दूध बच्चों के विकास में रुकावट डाल सकता है। इसमें माइक्रोप्लास्टिक शामिल हो सकते हैं, जो शारीरिक और मानसिक विकास में रुकावट पैदा कर सकते हैं।
- फेफड़ों की समस्याएं: रबड़ के निप्पल वाले बॉटल से दूध पीने से बच्चों के फेफड़ों पर बुरा असर पड़ सकता है, जिससे सांस की समस्याएं और निमोनिया जैसी स्थितियां पैदा हो सकती हैं।
वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गनाइजेशन (WHO) के अनुसार, नवजात को पहले छह महीने केवल मां का दूध पिलाना चाहिए। अगर किसी कारणवश ब्रेस्टफीडिंग संभव नहीं हो तो बॉटल का दूध अस्थायी उपाय हो सकता है, लेकिन कोशिश करनी चाहिए कि बच्चे को पहले छह महीने तक बॉटल का दूध न दिया जाए।
मां का दूध बच्चों के स्वास्थ्य के लिए अत्यंत लाभकारी होता है, इसलिए जहां तक संभव हो, इसे प्राथमिक आहार के रूप में अपनाना चाहिए।
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