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कृष्ण जन्माष्टमी की पूजा में विशेष महत्व रखता है खीरा, मां देवकी से जुड़ी है मान्यता

कृष्ण जन्माष्टमी का पर्व बहुत धूम-धाम से भाद्रपद मास की कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाया जाता है। जन्माष्टमी के पर्व को लेकर लोगों में काफी उत्साह देखने को मिलता है। श्री कृष्ण का जन्म मध्य रात्रि में रोहिणी नक्षत्र में हुआ था, जिस वजह से कृष्ण जन्माष्टमी की पूजा रात में की जाती है। जन्माष्टमी का त्योहार भगवान श्री कृष्ण के जन्मोत्सव के रूप में बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है।

जन्माष्टमी के दिन भगवान श्री कृष्ण बाल स्वरूप की पूजा की जाती है। इस दिन लड्डू गोपाल को विशेष तरीके से सजाया जाता है। साथ ही कई तरह के भोग भी उन्हें अर्पित किए जाते हैं। जन्माष्टमी की पूजा में खीरा बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है। कहा जाता है कि इसके बिना यह पूजा अधूरी होती है। आइए, जानते हैं कि इसके पीछे क्या कारण है।जन्माष्टमी पर क्यों काटा जाता है खीरा? जन्माष्टमी के दिन खीरे को काटकर उसके तने से अलग कर दिया जाता है। दरअसल, इस दिन खीरे को श्री कृष्ण के अपनी मां देवकी से अलग होने के प्रतीक के तौर पर देखा जाता है।

कई जगहों पर जन्माष्टमी पर खीरा काटने की प्रक्रिया को नल छेदन के नाम से भी जाना जाता है।जिस प्रकार जन्म के समय गर्भनाल काटकर शिशुओं को गर्भ से अलग किया जाता है, उसी प्रकार श्री कृष्ण जन्मोत्सव के अवसर पर खीरे के तने को काटकर कान्हा के जन्म कराने की परंपरा है।विशेष है खीरा काटने की परंपरा ऐसा माना जाता है कि श्री कृष्ण का जन्म आधी रात को हुआ था। इसलिए जन्माष्टमी के मौके पर कान्हा की पूजा में हल्के डंठल और पत्तियों वाले खीरे का प्रयोग करें। जैसे ही घड़ी में 12 बजें, खीरे के तने को एक सिक्के से काटें और कान्हा का जन्म कराएं। इसके बाद शंख बजाकर बाल गोपाल के आगमन की खुशी मनाएं। फिर बांके बिहारी की विधि-विधान से पूजा करें, उन्हें भोग लगाएं और परिवार के साथ मिलकर आरती करें।

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