छत्तीसगढ़ के सुकमा जिले के अंदरूनी क्षेत्र में नक्सलियों ने आदिवासियों पर दबाव डालकर उन्हें संगठन में शामिल कर लिया। गांव की साधारण जनजातीय जनता को भ्रमित कर उन्हें बंदूक थमा दी जाती है। सुरक्षा बलों के बढ़ते नियंत्रण से नक्सली अब बैकफुट पर हैं, जिससे अंदरूनी क्षेत्र के जनजातीय लोगों को समाज की मुख्यधारा में शामिल होने का साहस मिल रहा है।
विश्व आदिवासी दिवस के दिन कोंटा क्षेत्र के अंदरूनी गांव के 11 नक्सलियों ने संगठन छोड़ कर मुख्यधारा में वापसी कर ली है। इनमें से पांच महिलाएं हैं। ये सभी जनजातीय समुदाय से हैं। वे सरकार की पुनर्वास नीति और नियद नेल्ला नार योजना से गांव में हो रहे विकास कार्य से प्रभावित थे।
नक्सली संगठन में नीचले स्तर पर सक्रिय रहे इन नक्सलियों ने दबाव कम होते ही पुलिस के सामने आत्मसमर्पण करना चुना है। एक लाख की इनामी नक्सली गोलापल्ली एलओएस सदस्य सोड़ी भीमे पिता सोड़ी भीमे, रासातोंग पंचायत डीएकेएमएस सदस्य पोड़ियाम हुंगा पिता स्व. एर्रा, रासातोंग पंचायत डीएकेएमएस सदस्य मड़कम पिता भीमा, ओयाम जोगी पिता ओयाम हुंगा, अरलमपल्ली पंचायत स्कूल कमेटी अध्यक्ष दूधी हांदा पिता हड़मा, पालाचलमा पंचायत मिलिशिया सदस्य पदाम इन्हें छत्तीसगढ़ की नक्सलवाद उन्मूलन व पुनर्वास नीति दी गई है।
अब तक 200 से अधिक नक्सलियों ने आत्मसमर्पण किया पुलिस के अनुसार, इस वर्ष जिले में 200 से अधिक नक्सलियों ने आत्मसमर्पण कर दिया है। नक्सली ने अंदरूनी क्षेत्रों में लगातार नए कैंपों की स्थापना और सेवा शुरू की है। सुरक्षा बल ने पूवर्ती और दुलेड़ जैसे दूरस्थ स्थानों में कैम्प लगाए हैं। इन कैंपों से निरंतर अभियान चलाए जाते हैं। इसके साथ ही, सामुदायिक पुलिसिंग कार्यक्रम और नेल्ला नार योजना से ग्रामीणों का भरोसा सुरक्षा बल पर बढ़ा है।