छत्तीसगढ़ में कई विशेष पिछड़ी जनजातियाँ निवास करती हैं, जिनकी सांस्कृतिक और ऐतिहासिक धरोहर महत्वपूर्ण है। ये जनजातियाँ राज्य के सामाजिक और सांस्कृतिक जीवन का अभिन्न हिस्सा हैं। यहाँ छत्तीसगढ़ की प्रमुख विशेष पिछड़ी जनजातियों के बारे में विस्तार से जानकारी दी गई है:
1. गोंड जनजाति
- आवेदन क्षेत्र: गोंड जनजाति छत्तीसगढ़ के अधिकांश जिलों में फैली हुई है, विशेष रूप से बस्तर, रायगढ़, और बलौदाबाजार-भाटापारा में।
- संस्कृति: गोंड जनजाति की संस्कृति में लोक गीत, नृत्य, और पारंपरिक हस्तशिल्प प्रमुख हैं। गोंडों की प्रमुख पूजा के त्योहार जैसे ‘गोंड गणेश चतुर्थी’ और ‘धनतेरस’ बहुत धूमधाम से मनाए जाते हैं।
- भाषा: गोंड जनजाति अपनी मात्रीक भाषा गोंडी बोलती है, लेकिन हिंदी और छत्तीसगढ़ी भी आमतौर पर बोलते हैं।
2. मदिया जनजाति
- आवेदन क्षेत्र: मदिया जनजाति मुख्य रूप से बस्तर जिले के आदिवासी क्षेत्रों में निवास करती है।
- संस्कृति: मदिया जनजाति की संस्कृति में आदिवासी नृत्य, संगीत, और त्योहार प्रमुख हैं। उनकी परंपराएं और रीति-रिवाज विशेष रूप से कृषि और प्रकृति के साथ जुड़ी होती हैं।
- भाषा: मदिया जनजाति भी अपनी मात्रीक भाषा मदिया बोलती है।
3. कोरवा जनजाति
- आवेदन क्षेत्र: कोरवा जनजाति छत्तीसगढ़ के जशपुर और कोरबा जिलों में निवास करती है।
- संस्कृति: कोरवा जनजाति का जीवन कृषि और शिकार पर आधारित है। उनकी संस्कृति में पारंपरिक वस्त्र, विशेष नृत्य, और गीत प्रमुख हैं।
- भाषा: कोरवा अपनी मात्रीक भाषा कोरवा बोलते हैं।
4. सहरिया जनजाति
- आवेदन क्षेत्र: सहरिया जनजाति छत्तीसगढ़ के कोरबा और बलरामपुर जिलों में निवास करती है।
- संस्कृति: सहरिया जनजाति की संस्कृति में विशेष रूप से आदिवासी नृत्य और संगीत शामिल है। उनकी जीवनशैली मुख्यतः कृषि और वन आधारित है।
- भाषा: सहरिया जनजाति अपनी मात्रीक भाषा सहरिया बोलती है।
5. कुड़ुख जनजाति
- आवेदन क्षेत्र: कुड़ुख जनजाति छत्तीसगढ़ के बस्तर और सरगुजा जिलों में निवास करती है।
- संस्कृति: कुड़ुख जनजाति की संस्कृति में पारंपरिक संगीत, नृत्य, और त्यौहार विशेष महत्व रखते हैं। उनके प्रमुख त्योहार ‘साहू’ और ‘धरती पूजा’ हैं।
- भाषा: कुड़ुख जनजाति अपनी मात्रीक भाषा कुड़ुख बोलती है।
6. आदिवासी जनजातियाँ
- आवेदन क्षेत्र: छत्तीसगढ़ के अन्य आदिवासी क्षेत्रों में भी कई विशेष पिछड़ी जनजातियाँ निवास करती हैं, जिनमें प्रमुख रूप से बैगा, भुइयाँ, और अन्य शामिल हैं।
- संस्कृति: इन जनजातियों की संस्कृति और जीवनशैली उनके स्थानीय रीति-रिवाजों, त्योहारों, और परंपराओं पर आधारित होती है। ये जनजातियाँ भी कृषि और वनोपज पर निर्भर रहती हैं।
- भाषा: इन जनजातियों की मात्रीक भाषाएँ स्थानीय और विशिष्ट होती हैं, जैसे बैगा भाषा और भुइयाँ भाषा।
आदिवासी विकास और सरकार की योजनाएँ
- विकास योजनाएँ: भारत सरकार और छत्तीसगढ़ राज्य सरकार ने विशेष पिछड़ी जनजातियों के विकास के लिए कई योजनाएँ लागू की हैं, जैसे ‘स्टेशनल आदिवासी विकास योजना’, ‘प्रधानमंत्री आदिवासी योजना’, और ‘आदिवासी अनुसंधान केंद्र’।
- शिक्षा और स्वास्थ्य: सरकार ने आदिवासी क्षेत्रों में शिक्षा और स्वास्थ्य सुविधाओं को बेहतर बनाने के लिए विभिन्न कार्यक्रम शुरू किए हैं। इसमें आदिवासी छात्रों के लिए छात्रवृत्तियाँ, स्वास्थ्य शिविर, और विशेष स्कूल शामिल हैं।
- वृत्त और भूमि अधिकार: आदिवासियों के लिए भूमि अधिकार और संसाधनों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए कई कानून और योजनाएँ लागू की गई हैं। इनमें ‘वन अधिकार अधिनियम’ और ‘आदिवासी अधिकार कानून’ शामिल हैं।
निष्कर्ष
छत्तीसगढ़ की विशेष पिछड़ी जनजातियाँ राज्य की सांस्कृतिक विविधता और ऐतिहासिक धरोहर का महत्वपूर्ण हिस्सा हैं। इन जनजातियों की अद्वितीय संस्कृति, भाषा, और जीवनशैली राज्य की सामाजिक और सांस्कृतिक संरचना को समृद्ध बनाते हैं। इन जनजातियों के विकास और कल्याण के लिए सरकारी और गैर-सरकारी संगठनों द्वारा विभिन्न प्रयास किए जा रहे हैं।