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Sunday, December 8, 2024

IIT की तर्ज पर छत् तीसगढ़ के हर लोकसभा क्षेत्र में प्रौद्योगिकी संस्थान खुलेंगे; 18 भाषाओं में पढ़ाई होगी

इस नीति के अनुसार विद्यार्थियों को स्थानीय भाषा में शिक्षित किया जाना चाहिए। किताबों का लेखन शुरू हो गया है, एससीईआरटी के संचालक राजेंद्र कटारा ने बताया। उच्च शिक्षा का पाठ्यक्रम भी बदल रहा है। प्रदेश के हर लोकसभा क्षेत्र में आईआईटी की तरह प्रौद्योगिकी संस्थान शुरू होने जा रहे हैं। पहले इनकी स्थापना रायपुर, रायगढ़, बस्तर, कबीरधाम और जशपुर में की जाएगी।रायपुर। स्कूलों में अब 18 स्थानीय बोली-भाषा में पढ़ाई हाेगी। इससे आदिवासी अंचलों के विद्यार्थी स्थानीय बोली-भाषा में बेहतर सीख सकेंगे। नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति को ध्यान में रखते हुए मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय ने यह फैसला लिया है। सीएम के निर्देश के बाद राज्य शैक्षिक अनुसंधान एवं प्रशिक्षण परिषद (एससीईआरटी) ने लेखन कार्य शुरू कर दिया है। पहले चरण में छत्तीसगढ़ी, सरगुजिहा, हल्बी, सादड़ी, गोंडी और कुडुख में किताब लेखन किया जाएगा। प्रदेश में राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 को लागू हो चुकी है।एक सर्वे के अनुसार राज्य में 93 बोली-भाषाएं बोली जाती हैं। इनमें अलग-अलग 18 बोली-भाषाओं पर काम किया जा रहा है। इस उद्देश्य से स्थानीय बोली-भाषा विशेषज्ञों की मदद से पुस्तकें लिखी जा रही हैं। 2007 में, राज्य की स्थापना के बाद तत्कालीन सरकार ने छत्तीसगढ़ी को राजभाषा का दर्जा दिया। 2008 में छत्तीसगढ़ी राजभाषा आयोग का गठन किया गया था, जिसका उद्देश्य छत्तीसगढ़ी भाषा को मजबूत करना था।

पद्मश्री सुरेंद्र दुबे, पहले सचिव, के कार्यकाल में छत्तीसगढ़ी में लगभग 1200 पुस्तकें प्रकाशित हुईं। हिंदी के व्याकरण से भी पुराना छत्तीसगढ़ी बोली-भाषा का व्याकरण हीरालाल काव्योपाध्याय ने बनाया था। बस्तर संभाग के दंतेवाड़ा में भी एक शिलालेख है।मुख्यमंत्री ने कहा कि प्रदेश में स्वास्थ्य सेवाओं को मजबूत करने के लिए मेडिकल शिक्षा का निरंतर विस्तार आवश्यक है। हमने एम्स की तर्ज पर संभाग स्तर पर छत्तीसगढ़ इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंस (सिम्स) शुरू करने का फैसला किया है। रायपुर में आंबेडकर अस्पताल के भवन का विस्तार और बिलासपुर में सिम्स के भवन का विस्तार करने के लिए काम शुरू हो गया है। अब छत्तीसगढ़ के स्कूलों में 18 स्थानीय बोली-भाषाएं पढ़ाई जाएंगी। यह फैसला मुख्यमंत्री विष्णु देव साय ने लिया है, ताकि आदिवासी अंचलों के विद्यार्थियों को उनकी स्थानीय भाषाओं में बेहतर शिक्षा मिल सके। राज्य शैक्षिक अनुसंधान एवं प्रशिक्षण परिषद (SCERT) ने इस अभियान के तहत पुस्तकों का लेखन शुरू किया है।

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