छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण निर्णय में पति द्वारा पत्नी के वर्जिनिटी टेस्ट (कौमार्य परीक्षण) की मांग को असंवैधानिक करार देते हुए याचिका खारिज कर दी है। न्यायमूर्ति अरविंद कुमार वर्मा की पीठ ने कहा कि ऐसी मांग महिलाओं की गरिमा और मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करती है, जो संविधान के अनुच्छेद 21 (जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार) के तहत संरक्षित है।
मामला का सारांश
पति ने अपनी पत्नी के चरित्र पर संदेह जताते हुए फैमिली कोर्ट में वर्जिनिटी टेस्ट की मांग की थी। फैमिली कोर्ट ने इस याचिका को खारिज कर दिया, जिसके खिलाफ पति ने हाईकोर्ट में पुनरीक्षण याचिका दायर की। हाईकोर्ट ने फैमिली कोर्ट के फैसले को सही ठहराते हुए पति की याचिका खारिज कर दी।
कोर्ट की टिप्पणियाँ
न्यायमूर्ति वर्मा ने अपने फैसले में कहा कि वर्जिनिटी टेस्ट न केवल असंवैधानिक है, बल्कि महिलाओं की गरिमा का उल्लंघन करता है। उन्होंने यह भी उल्लेख किया कि यदि पति खुद पर लगे आरोपों को गलत साबित करना चाहता है, तो वह स्वेच्छा से अपना मेडिकल परीक्षण करा सकता है, लेकिन पत्नी पर इस तरह का आरोप लगाना अवैध है।
कानूनी दृष्टिकोण
यह निर्णय महिलाओं के सम्मान और निजता के अधिकार की रक्षा की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि किसी भी महिला को जबरन वर्जिनिटी टेस्ट के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता, क्योंकि यह उनके मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है।
इस फैसले ने महिलाओं के संवैधानिक अधिकारों की रक्षा में एक महत्वपूर्ण मिसाल कायम की है और समाज में महिलाओं की गरिमा और सम्मान को बनाए रखने की आवश्यकता पर जोर दिया है।