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Sunday, December 22, 2024

तारे क्यों टिमटिमाते हैं , जानिए विस्तार से

जब तारों की रोशनी वायुमंडल में प्रवेश करती है, तो यह हवाओं और अलग-अलग तापमान और घनत्वों से प्रभावित होती है। ज़मीन से, यह तारे की रोशनी को चमका देता है। तारों से आने वाली रोशनी हमारे वायुमंडल की कई परतों से होकर हमारी आँखों तक पहुँचती है, जिससे तारे टिमटिमाते हैं।

तारों के टिमटिमाने की कुछ और वजहें

तारों के टिमटिमाने की मुख्य वजह वातावरण की परतों के बीच की हवा का अस्थिर होना है। जब प्रकाश तारों से निकलकर पृथ्वी तक पहुंचता है, तो उसे हमारे वातावरण की विभिन्न परतों से होकर गुजरना पड़ता है। वातावरण की ये परतें घनी और हल्की हवा की बदलती परतों से बनी होती हैं, जिनमें तापमान और घनत्व में भिन्नताएं होती हैं। इन परतों से गुजरने पर तारों की रोशनी की दिशा कई बार बदलती है, जिसे हम “टिमटिमाना” कहते हैं। इसे वैज्ञानिक भाषा में “तारों का अपवर्तन” भी कहा जाता है। यह प्रक्रिया दिन के समय नजर नहीं आती क्योंकि सूर्य की रोशनी हमारी आंखों तक सीधे पहुंचती है, जबकि रात के समय जब तारे हमें स्पष्ट दिखते हैं, तब यह टिमटिमाना अधिक स्पष्ट होता है।

तारों का निर्माण– एक बहुत ही जटिल और लंबी प्रक्रिया है, जो लाखों से करोड़ों साल तक चलती है। तारे गैस और धूल के विशाल बादलों, जिन्हें नेब्युला (Nebula) कहा जाता है, से बनते हैं। यहाँ तारों के निर्माण की प्रमुख चरणों का वर्णन किया गया है:

  1. नेब्युला (Nebula): तारे बनने की प्रक्रिया का आरंभ विशाल गैस और धूल के बादल, यानी नेब्युला से होता है। ये बादल मुख्य रूप से हाइड्रोजन और हीलियम गैस से बने होते हैं। जब नेब्युला के कुछ हिस्सों में गुरुत्वाकर्षण के कारण घनत्व बढ़ता है, तो वे धीरे-धीरे संकुचित होने लगते हैं।
  2. गुरुत्वाकर्षण संकुचन (Gravitational Contraction): नेब्युला के अंदर घनी जगहों में गुरुत्वाकर्षण बल के कारण गैस और धूल संकुचित होने लगती है। जैसे-जैसे गैस और धूल का यह क्लाउड सिकुड़ता है, इसका तापमान बढ़ता जाता है। यह संकुचन लाखों सालों तक चलता रहता है, और इसे प्रोटोस्टार (Protostar) कहा जाता है।
  3. प्रोटोस्टार का विकास: जब संकुचन के कारण नेब्युला का केंद्र अधिक गर्म और घना हो जाता है, तो इसे प्रोटोस्टार कहते हैं। यह तारों के बनने की एक मध्य अवस्था होती है। इस अवस्था में तारे के केंद्र का तापमान लगातार बढ़ता है, लेकिन अभी तक उसमें न्यूक्लियर फ्यूजन (परमाणु संलयन) शुरू नहीं होता है।
  4. न्यूक्लियर फ्यूजन (Nuclear Fusion): जब प्रोटोस्टार के केंद्र का तापमान और दबाव इतना अधिक हो जाता है कि हाइड्रोजन परमाणु आपस में टकराकर हीलियम में बदलने लगते हैं, तो न्यूक्लियर फ्यूजन की प्रक्रिया शुरू होती है। यह प्रक्रिया बहुत अधिक ऊर्जा उत्पन्न करती है, जो तारे को रोशनी और गर्मी प्रदान करती है। इस चरण में तारा जन्म ले चुका होता है।
  5. मुख्य अनुक्रम चरण (Main Sequence Stage): न्यूक्लियर फ्यूजन के बाद तारा मुख्य अनुक्रम (Main Sequence) में प्रवेश करता है, जहाँ वह अपनी हाइड्रोजन को जलाकर ऊर्जा उत्पन्न करता रहता है। तारा अपने जीवन के अधिकांश समय इसी चरण में रहता है। हमारे सूर्य जैसे तारे इस चरण में अरबों वर्षों तक स्थिर रहते हैं।
  6. तारे का अंत: तारे का जीवन उसकी प्रारंभिक द्रव्यमान पर निर्भर करता है। छोटे तारे धीरे-धीरे सफेद बौने (White Dwarf) बनकर शांत हो जाते हैं, जबकि बड़े तारे सुपरनोवा (Supernova) विस्फोट में बदलकर न्यूट्रॉन तारे या ब्लैक होल बन सकते हैं।

इस प्रकार तारे नेब्युला से जन्म लेते हैं और अपने जीवन के विभिन्न चरणों से गुजरते हुए अंत में किसी न किसी रूप में समाप्त हो जाते हैं।

तारों की उम्र उनके द्रव्यमान (मास) पर निर्भर करती है। तारे जितने बड़े और भारी होते हैं, उनकी उम्र उतनी ही कम होती है, जबकि छोटे और हल्के तारे अधिक समय तक जीवित रहते हैं। सामान्यतः तारों की उम्र लाखों से अरबों साल तक हो सकती है। आइए इसके बारे में विस्तार से जानते हैं:

  1. छोटे तारे (Low-Mass Stars): छोटे तारे, जिनका द्रव्यमान हमारे सूर्य का लगभग 0.1 से 0.5 गुना होता है, बहुत धीमी गति से जलते हैं। यह धीमी गति से जलने की वजह से ये तारे अरबों साल तक जीवित रहते हैं। जैसे कि लाल बौने तारे (Red Dwarf Stars), जो ब्रह्मांड में सबसे लंबे समय तक जीवित रहने वाले तारे होते हैं। इनकी उम्र 100 अरब साल या उससे भी ज्यादा हो सकती है। ब्रह्मांड की उम्र लगभग 13.8 अरब साल है, इसलिए आज तक कोई लाल बौना तारा पूरी तरह से अपने जीवन चक्र के अंत तक नहीं पहुँचा है।
  2. सूर्य जैसे तारे (Medium-Mass Stars): हमारे सूर्य जैसे तारे, जिनका द्रव्यमान सूर्य के बराबर या उससे थोड़ा ज्यादा होता है, लगभग 10 अरब साल तक जीवित रहते हैं। हमारे सूर्य की उम्र करीब 4.6 अरब साल है और यह लगभग 5 अरब साल और जीवित रहेगा। इसके बाद यह एक लाल दानव (Red Giant) बन जाएगा और अंततः एक सफेद बौना (White Dwarf) तारा बनकर खत्म हो जाएगा।
  3. बड़े तारे (High-Mass Stars): जिन तारों का द्रव्यमान सूर्य से कई गुना ज्यादा होता है, वे बहुत तेज़ी से अपना ईंधन (हाइड्रोजन) जला देते हैं और जल्दी मर जाते हैं। ऐसे तारे सिर्फ कुछ लाख से करोड़ों साल तक ही जीवित रहते हैं। जब इन तारों का जीवन समाप्त होता है, तो वे आमतौर पर सुपरनोवा (Supernova) विस्फोट के रूप में खत्म होते हैं और फिर न्यूट्रॉन तारा या ब्लैक होल बन सकते हैं।

इस प्रकार, तारों की उम्र उनके आकार और द्रव्यमान पर निर्भर करती है। छोटे तारे अरबों साल तक जीवित रहते हैं, जबकि बड़े तारे अपेक्षाकृत कम समय में अपना जीवन समाप्त कर लेते हैं।

तारों की चमक कम दिखने के पीछे कई कारण हो सकते हैं, जो उनके स्थान, आकार, द्रव्यमान, और हमारे दृष्टिकोण पर निर्भर करते हैं। नीचे कुछ प्रमुख कारण दिए गए हैं:

1. तारे की दूरी (Distance from Earth):

तारा जितना अधिक दूर होता है, उसकी चमक उतनी ही कम दिखती है। हालांकि तारे बहुत अधिक ऊर्जा और प्रकाश उत्सर्जित करते हैं, लेकिन पृथ्वी से बहुत दूर होने के कारण उनकी रोशनी कमजोर लगती है। जैसे-जैसे तारे की दूरी बढ़ती है, उसकी रोशनी फैलती जाती है, और इसलिए वह कम चमकता हुआ प्रतीत होता है।

2. तारे का द्रव्यमान और आकार (Mass and Size of the Star):

तारे का द्रव्यमान और आकार भी उसकी चमक को प्रभावित करता है। बड़े और भारी तारे अधिक ऊर्जा और प्रकाश उत्पन्न करते हैं, इसलिए वे अधिक चमकते हैं। जबकि छोटे और हल्के तारे, जैसे कि लाल बौने तारे, कम ऊर्जा उत्पन्न करते हैं और इसलिए कम चमकते हैं।

3. तारे की उम्र (Age of the Star):

तारे की चमक उसकी उम्र पर भी निर्भर करती है। जब तारे युवा होते हैं, तो उनमें न्यूक्लियर फ्यूजन की प्रक्रिया तेज़ी से होती है और वे अधिक चमकते हैं। जैसे-जैसे तारा बूढ़ा होता है, उसकी चमक धीरे-धीरे कम हो सकती है। उदाहरण के लिए, तारे जब मुख्य अनुक्रम से लाल दानव अवस्था में जाते हैं, तो उनकी चमक अस्थायी रूप से बढ़ सकती है, लेकिन फिर वे धीरे-धीरे कम होते जाते हैं।

4. अंतरिक्ष धूल और गैस (Interstellar Dust and Gas):

अंतरिक्ष में धूल और गैस के बादल भी तारे की चमक को प्रभावित कर सकते हैं। जब तारे की रोशनी इन बादलों से गुजरती है, तो यह बिखर जाती है और कमजोर हो जाती है। इससे तारा कम चमकता हुआ नजर आता है। इसे वैज्ञानिक भाषा में अंतरतारकीय विलुप्ति (Interstellar Extinction) कहा जाता है।

5. वायुमंडलीय प्रभाव (Atmospheric Effects):

पृथ्वी का वातावरण भी तारे की चमक को प्रभावित करता है। जब तारे की रोशनी पृथ्वी के वातावरण से होकर गुजरती है, तो यह कई परतों से गुजरती है, जिससे उसकी रोशनी बिखरती और कमजोर हो जाती है। इसके कारण हमें तारे की चमक कम और टिमटिमाती हुई दिखती है।

6. तारे का प्रकाश उत्सर्जन (Luminosity):

हर तारे की अपनी प्राकृतिक चमक होती है, जिसे दीप्तिमान शक्ति (Luminosity) कहते हैं। कुछ तारे कम रोशनी वाले होते हैं, इसलिए उनकी चमक भी कम होती है। उदाहरण के लिए, लाल बौने तारे कम ऊर्जा उत्पन्न करते हैं और कम चमकते हैं, जबकि नीले विशालकाय तारे अधिक चमकते हैं।

इन सभी कारणों के चलते कुछ तारे हमें कम चमकते हुए दिखाई देते हैं, भले ही वे वास्तव में बहुत अधिक रोशनी उत्सर्जित कर रहे हों।

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