राजनांदगांव शहर के मध्य स्थित रानी सागर और बुढ़ा सागर तालाब ऐतिहासिक धरोहर के रूप में अपनी अलग पहचान रखते हैं। इनका निर्माण राजाओं के समय में कराया गया था, और ये तालाब न केवल जल स्रोत के रूप में बल्कि सांस्कृतिक और ऐतिहासिक महत्व के कारण भी खास माने जाते हैं।
राजाओं द्वारा निर्मित तालाब
इन तालाबों का निर्माण राजा घासीदास द्वारा करवाया गया था। रानी सागर और बुढ़ा सागर दो भागों में विभाजित हैं—रानी सागर का उपयोग राजपरिवार की रानियां करती थीं, जबकि बुढ़ा सागर आम जनता के लिए था। तालाब के मध्य में स्थित शासकीय दिग्विजय महाविद्यालय और शीतला मंदिर इस क्षेत्र के प्रमुख आकर्षण हैं।
इतिहास के पन्नों से
शासकीय दिग्विजय महाविद्यालय के इतिहास विभाग के प्रमुख डॉ. शैलेंद्र सिंह के अनुसार, जब राजनांदगांव जमींदारी हुआ करता था, तब महंत घासीदास ने इस क्षेत्र को अपने अधीन किया और इन तालाबों का निर्माण करवाया। रानी सागर खासतौर पर रानियों के स्नान के लिए बनाया गया था, जहां आम जनता का प्रवेश वर्जित था। इन तालाबों का निर्माण 1826-1830 के बीच हुआ था, जबकि किले का निर्माण 1856 के आसपास पूरा हुआ था। उस दौर में ये तालाब पीने और नहाने के लिए मुख्य जल स्रोत हुआ करते थे।
200 वर्षों से अधिक पुरानी विरासत
लगभग दो शताब्दियों से अधिक पुराना यह जल स्रोत आज भी राजनांदगांव की पहचान बना हुआ है। जहां पहले इस स्थान पर एक शानदार किला हुआ करता था, वहीं अब इसे शासकीय दिग्विजय महाविद्यालय में बदल दिया गया है, जो जिले का सबसे बड़ा महाविद्यालय है।
आधुनिक समय में तालाबों का महत्व
रियासतकाल में जहां ये तालाब पीने और नहाने के मुख्य स्रोत थे, वहीं आज भी ये शहर के मध्य अपनी ऐतिहासिक और सांस्कृतिक पहचान को बनाए हुए हैं। हालांकि, आधुनिक समय में जल संरक्षण और तालाबों के रखरखाव को लेकर अधिक जागरूकता की आवश्यकता है, ताकि यह ऐतिहासिक धरोहर आने वाली पीढ़ियों के लिए सुरक्षित रह सके।