रीवा जिले में स्थित देऊर कोठार भारत की एक महत्वपूर्ण ऐतिहासिक और पुरातात्विक धरोहर है। यह स्थल प्रयागराज से लगभग 90 मिनट की दूरी और रीवा से 70 किलोमीटर दूर स्थित है। यह स्थान अपने 5000 साल पुराने शैलचित्रों और 2000 साल पुराने बौद्ध स्तूपों के लिए प्रसिद्ध है। इतिहासकार और पर्यावरणविद् डॉ. मुकेश एंगल बताते हैं कि देऊर कोठार भारत के सबसे पुराने बौद्ध स्थलों में से एक है। यहां की प्राकृतिक गुफाओं में गूंजने वाली ध्वनि (Echo Effect) एक अद्भुत अनुभव प्रदान करती है।
प्राचीन गुफाएं और शैलचित्र
देऊर कोठार में प्राचीन शैलचित्र मौजूद हैं, जिन्हें आदि मानव द्वारा उकेरा गया माना जाता है। यह स्थान रीवा-प्रयागराज राष्ट्रीय राजमार्ग पर स्थित कटरा से 3.5 किलोमीटर की दूरी पर है। 1999-2000 में मध्यप्रदेश पुरातत्व विभाग द्वारा यहां उत्खनन किया गया था, जिसमें बौद्ध स्थापत्य के महत्वपूर्ण अवशेष प्राप्त हुए। इस खोज का श्रेय डॉ. फणिकांत मिश्र और स्थानीय शोधकर्ता अजीत सिंह को जाता है।
मौर्य कालीन शैलचित्र और स्तूप
यह स्थल मौर्य काल (लगभग 5000 साल पुराना) से जुड़ा हुआ है। यहां मिले बौद्ध स्तूप लगभग 2000 साल पुराने माने जाते हैं। 1982 में पहली बार इस स्थान के बारे में जानकारी मिली, और 1999 में हुए उत्खनन के बाद यह अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रसिद्ध हुआ।
देऊर कोठार की खास विशेषताएं
1) आवाज का अद्भुत रिफ्लेक्शन (Echo Effect)
देऊर कोठार की सबसे खास बात यहां की गूंजती आवाजें हैं। यदि कोई व्यक्ति गुफाओं के अंतिम छोर पर खड़े होकर जोर से बोलता है, तो 8 मील दूर तक उसकी आवाज गूंजकर वापस सुनाई देती है। इसे ‘ईको इफेक्ट’ कहा जाता है, जो इसे और भी रहस्यमय और आकर्षक बनाता है।
2) 40 से अधिक बौद्ध स्तूप
यहां तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व के एक विशाल मौर्यकालीन स्तूप के अवशेष मिले हैं। इस स्थल पर कुल 40 स्तूपों के अवशेष मौजूद हैं, जिनमें से स्तूप क्रमांक-1 सबसे महत्वपूर्ण माना जाता है। यह चौकोर चबूतरे पर बना है और इसके चारों ओर प्रदक्षिणा पथ स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है।
3) भगवान बुद्ध को समर्पित अभिलेख
स्तूप के पश्चिमी क्षेत्र में लाल बलुआ पत्थर से निर्मित स्तंभ के कुछ अवशेष मिले हैं। इन पर ब्राह्मी लिपि में भगवान बुद्ध को समर्पित अभिलेख खुदे हुए हैं। ऐसा माना जाता है कि यह स्तंभ स्तूप के प्रवेश द्वार का हिस्सा था।
4) ऐतिहासिक व्यापार मार्ग
शोधकर्ताओं का मानना है कि प्राचीन काल में यह स्थान एक व्यावसायिक मार्ग के रूप में भी इस्तेमाल किया जाता था। इसका संबंध भरहुत और कौशांबी से भी रहा है।
प्राकृतिक सौंदर्य और पर्यटन महत्व
देऊर कोठार न सिर्फ ऐतिहासिक रूप से बल्कि प्राकृतिक सुंदरता के लिए भी प्रसिद्ध है। यहां स्थित हरे-भरे वन, विशाल चट्टानें और ऐतिहासिक गुफाएं पर्यटकों के लिए आकर्षण का केंद्र हैं। यह स्थान इतिहास प्रेमियों, शोधकर्ताओं और प्रकृति प्रेमियों के लिए किसी स्वर्ग से कम नहीं है।