एक हालिया अध्ययन में चौंकाने वाला खुलासा हुआ है कि दुनिया भर में करीब 4.4 अरब लोग असुरक्षित पानी पीने को मजबूर हैं। यह संख्या पहले के अनुमानों से लगभग दोगुनी है, जिससे वैश्विक जल संकट की गंभीरता उजागर होती है।
नए और पुराने अनुमानों में अंतर क्यों?
संयुक्त राष्ट्र ने 2015 में सुरक्षित पेयजल के नए मापदंड तय किए, जिनमें जल स्रोत की गुणवत्ता, निरंतर उपलब्धता, निकटता और संदूषण-मुक्त होने जैसे कारक शामिल थे। इसके आधार पर 2020 में किए गए एक अध्ययन में कहा गया था कि 2.2 अरब लोगों को स्वच्छ पानी नहीं मिल रहा।
लेकिन ‘साइंस’ पत्रिका में प्रकाशित ताजा शोध ने नई पद्धति अपनाई और पाया कि दुनिया की आधी से ज्यादा आबादी असुरक्षित पानी पीने को मजबूर है। इस अध्ययन में 27 देशों के 64,723 परिवारों का सर्वे किया गया और मशीन लर्निंग तकनीक का उपयोग करके अधिक व्यापक अनुमान लगाया गया।
क्या है सबसे बड़ी चिंता?
शोधकर्ताओं के मुताबिक, अकेले 2.2 अरब लोग ऐसे हैं जिनके पीने के पानी में ई. कोली जैसे खतरनाक बैक्टीरिया मौजूद हैं, जो गंभीर बीमारियों को जन्म दे सकते हैं।
स्थिति चिंताजनक क्यों है?
संयुक्त राष्ट्र के टिकाऊ विकास लक्ष्यों के तहत 2030 तक सबको स्वच्छ और किफायती पेयजल उपलब्ध कराने का लक्ष्य रखा गया है। लेकिन तेजी से बिगड़ती स्थिति को देखते हुए यह लक्ष्य अधूरा रह सकता है।
यह अध्ययन एक कड़वी हकीकत को सामने लाता है कि आज भी दुनिया की एक बड़ी आबादी बुनियादी जरूरतों से वंचित है, जिससे न केवल स्वास्थ्य संकट गहराता है बल्कि सामाजिक असमानता भी बढ़ती है।