हर देश की अपनी समुद्री सीमा होती है, लेकिन इसके बाद एक्सक्लूसिव इकोनॉमिक जोन (EEZ) की शुरुआत होती है। इस क्षेत्र में तटीय देश को समुद्री संसाधनों के दोहन और प्रबंधन का अधिकार प्राप्त होता है। भारत का एक्सक्लूसिव इकोनॉमिक जोन करीब 200 नॉटिकल मील (लगभग 370 किलोमीटर) तक फैला हुआ है। 1982 में संयुक्त राष्ट्र समुद्री कानून (UNCLOS) के तहत EEZ की अवधारणा को मान्यता दी गई थी, जिससे समुद्री संसाधनों का निष्पक्ष उपयोग सुनिश्चित किया जा सके।
कैसे होगा फायदा?
भारत सरकार EEZ के उपयोग से ब्लू इकोनॉमी को बढ़ाने की योजना बना रही है। ब्लू इकोनॉमी समुद्री संसाधनों के सतत उपयोग पर केंद्रित होती है, जिसमें मछली पालन, तेल-गैस उत्पादन, जहाज निर्माण, समुद्री पर्यटन और बंदरगाह गतिविधियां शामिल हैं।
वित्त मंत्री के अनुसार, भारत मछली उत्पादन और जलीय कृषि में विश्व में दूसरे स्थान पर है। सीफूड निर्यात के जरिए सालाना 60,000 करोड़ रुपये की कमाई हो रही है। सरकार अब EEZ का उपयोग कर अंडमान और निकोबार तथा लक्षद्वीप में मत्स्य पालन को बढ़ावा देने के लिए नई योजनाएं लाएगी।