वर्ष 2017 में 15 करोड़ डॉलर के संकल्प के साथ, भारत-संयुक्त राष्ट्र विकास साझेदारी कोष की स्थापना की गई थी, जिसके तहत, वैश्विक दक्षिण (global south) में स्थित देशों में टिकाऊ विकास परियोजनाओं को समर्थन प्रदान किया जाता है.
भारत सरकार की अगुवाई में संयुक्त राष्ट्र प्रणाली के सहयोग से लागू की जाने वाली इन परियोजनाओं में, सबसे कम विकसित देशों और लघु द्वीपीय विकासशील देशों की ज़रूरतों पर प्रमुखता से ध्यान केन्द्रित किया जाता है.
गुरूवार को भारत-यूएन विकास साझेदारी कोष का सातवाँ वार्षिक कार्यक्रम आयोजित किया गया, जिसमें संयुक्त राष्ट्र के दौरे पर आए भारतीय सांसदों के एक प्रतिनिधिमंडल के अलावा, संयुक्त राष्ट्र में विभिन्न देशों के स्थाई प्रतिनिधियों व यूएन अधिकारियों ने शिरकत की.
इस अवसर पर, भारत-यूएन साझेदारी कोष की वार्षिक रिपोर्ट भी जारी की गई, जिसमें 2030 एजेंडा के अनुरूप, अनेक देशों में संचालित इन परियोजनाओं के उदाहरण प्रस्तुत किए गए हैं.
एशिया-प्रशान्त के लिए यूएन की क्षेत्रीय निदेशक व सहायक महासचिव कन्नी विगनराजा ने कहा कि दक्षिण-दक्षिण सहयोग पहल ने पिछले एक दशक में गति पकड़ी है और यह दर्शाती है कि सामूहिक शक्ति के ज़रिये, पारस्परिक लाभ हासिल किया जा सकता है और एक दूसरे के अनुभवों से बहुत कुछ सीखा जा सकता है.
उन्होंने कहा कि वैश्विक दक्षिण में स्थित देशों तक टैक्नॉलॉजी में निहित सम्भावनाओं के लाभ पहुँचाना एक विशाल जीत है.
‘साझा समृद्धि’ की ओर
संयुक्त राष्ट्र में भारत के स्थाई प्रतिनिधि, राजदूत पी. हरीश ने कहा कि पहले वैश्विक महामारी के दो वर्षों और फिर हिंसक टकरावों के दो सालों में विकास के लिए वित्तीय संसाधनों में कमी आई है. विकासशील देशों में विकास परियोजनाओं के लिए उनकी सीमित सुलभता है.
उन्होंने कहा कि बहुसांस्कृतिक, बहुधार्मिक, बहुभाषी, 1.4 अरब की आबादी वाला देश भारत, ज़मीनी स्तर पर हासिल किए गए अपने विकास अनुभवों को वैश्विक दक्षिण में स्थित देशों के साथ साझा करना चाहता है.
उन्होंने कहा कि विभिन्न देशों में संचालित इन परियोजनाओं को सार्वजनिक स्वास्थ्य, युवा सशक्तिकरण, क्षमता विकास, जलवायु कार्रवाई, निर्धनता जैसी चुनौतियों से निपटने में केन्द्रित किया गया है, और अब इन्हें डिजिटल सार्वजनिक ढाँचा, हरित ऊर्जा सरीखी उभरती हुई टैक्नॉलॉजी की ओर ले जाया जा रहा है.
साथ ही, शिक्षा व स्वास्थ्य में टैक्नॉलॉजी के इस्तेमाल को बढ़ावा दिया जाएगा ताकि उन्हें दूरदराज़ के ग्रामीण इलाक़ों तक भी पहुँचाया जा सके.
विविध क्षेत्रों पर लक्षित परियोजनाएँ
भारत-यूएन विकास साझेदारी कोष के ज़रिये अब तक 62 देशों में 84 परियोजनाओं को समर्थन दिया गया है. गुरूवार को चर्चा के दौरान अनेक देशों के स्थाई प्रतिनिधियों ने अपने देश में संचालित इन प्रोजेक्ट पर जानकारी दी, जिन्हें गुरूवार को प्रकाशित वार्षिक रिपोर्ट में भी शामिल किया गया है.
चन्द उदाहरण:
- ऐल सल्वाडोर में बच्चों तक घर पर ही पढ़ाई-लिखाई के लाभ पहुँचाना, उनमें साक्षरता कौशल विकसित करना
- जलवायु परिवर्तन दुष्प्रभावों से जूझ रहे फ़िजी में, चरम मौसम घटनाओं से मछुआरों, लघु किसानों, विक्रेताओं समेत अन्य लोगों को उबारने के लिए बीमा (microinsurance) की व्यवस्था करना
- जमाइका में टिकाऊ कृषि तौर-तरीक़ों को प्रोत्साहन देना, युवाओं व किसानों को आधुनिक तकनीकों में प्रशिक्षण देकर उनका सशक्तिकरण करना
- किर्गिज़स्तान के पाँच अस्पतालों में मातृत्व सेवाओं के लिए टेलीमेडिसिन व परामर्श के ज़रिये प्रजनन स्वास्थ्य देखभाल सेवाओं को मज़बूती देना
- मोलदोवा में जनसांख्यिकी बदलावों की निगरानी करने, आपात हालात के अनुरूप क़दम उठाने के लिए नई डेटा प्रणाली विकसित करना
- बुरकिना फ़ासो में कृषि उत्पादन के लिए एक बाँध निर्माण के ज़रिये भरोसेमन्द जल आपूर्ति सुनिश्चित करना और उपजाऊ भूमि तैयार करना
दक्षिण-दक्षिण सहयोग
दक्षिण-दक्षिण सहयोग से तात्पर्य, वैश्विक दक्षिणी गोलार्द्ध में स्थित विकासशील देशों (global south) में पारस्परिक तकनीकी सहयोग से है,जोकि मुख्य रूप से कृषि विकास, टैक्नॉलॉजी, शिक्षा, शहरीकरण, स्वास्थ्य, जलवायु परिवर्तन जैसी चुनौतियों से निपटने पर केन्द्रित है.
इसके ज़रिये सदस्य देश, अन्तरराष्ट्रीय संगठन, नागरिक समाज व निजी सैक्टर आपस में मिलकर काम करते हैं और ज्ञान, कौशल और सफल उपक्रमों को साझा करते हैं.
इन परियोजनाओं के ज़रिये टिकाऊ विकास लक्ष्यों को साकार करने का प्रयास किया जाता है, विशेष रूप से सबसे कम विकसित देशों व लघु द्वीपीय विकासशील देशों में.