जानें छठ महापर्व का इतिहास और महत्व
हिंदू धर्म में छठ पर्व का बड़ा महत्व है। मुख्यतौर पर छठ पूजा बिहार, झारखंड और पूर्वी उत्तर प्रदेश के कुछ हिस्सों में मनाया जाता है। हालांकि अब छठ पर्व बड़े पैमाने पर देशभर के विभिन्न राज्यों में भी मनाया जाता है। छठ पूजा में सूर्य देव और छठी मैया की पूजा का विधान है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि छठ पूजा का प्रारंभ कब से हुआ? सूर्य की आराधना कब से शुरू हुई? अगर नहीं तो आइए हम आपको बताते हैं। दरअसल, इसके बारे में पौराणिक कथाओं से जानकारी मिलती है।
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, सतयुग में भगवान श्रीराम, द्वापर में दानवीर कर्ण और द्रौपदी ने सूर्य की उपासना की थी। इसके अलावा छठी मैया की पूजा से जुड़ी एक कथा राजा प्रियंवद की भी है, जिन्होंने सबसे पहले छठी मैया की पूजा की थी। ऐसे में आइए जानते हैं सूर्य उपासना और छठ पूजा का इतिहास।
1. पुत्र के प्राण की रक्षा के लिए की थी छठ पूजा
एक पौराणिक कथा के अनुसार, राजा प्रियंवद नि:संतान थे। उन्होंने महर्षि कश्यप को अपना दुख बताया। ऐसे में महर्षि कश्यप ने संतान प्राप्ति के लिए पुत्रेष्टि यज्ञ कराया था। इस दौरान यज्ञ में आहुति के लिए बनाई गई खीर राजा प्रियंवद की पत्नी मालिनी को खाने के लिए दी गई थी। इसके सेवन से रानी मालिनी ने एक पुत्र को जन्म दिया, लेकिन उनका पुत्र मृत पैदा हुआ था।
यह देखकर राजा बहुत दुखी हुए और मृत पुत्र के शव को लेकर श्मशान पहुंचे और अपना प्राण भी त्यागने लगे। तभी ब्रह्मा की मानस पुत्री देवसेना प्रकट हुईं और राजा प्रियंवद से कहा, मैं सृष्टि की मूल प्रवृत्ति के छठे अंश से उत्पन्न हुई हूं, इसलिए मेरा नाम षष्ठी भी है। तुम मेरी पूजा करो और लोगों के बीच प्रचार-प्रसार करो। इसके बाद राजा प्रियंवद ने पुत्र की कामना करते हुए कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी पर विधि-विधान से माता का व्रत किया। इसके फलस्वरूप राजा प्रियंवद को पुत्र प्राप्त हुआ।
2. श्रीराम और सीता ने भी की थी सूर्य की उपासना
पौराणिक कथाओं के अनुसार, लंकापति रावण का वध करने के बाद भगवान श्रीराम अयोध्या लौटे। लेकिन भगवान राम पर रावण के वध का पाप था, जिससे मुक्त होने के लिए ऋषि-मुनियों के आदेश पर राजसूय यज्ञ कराया गया। तब ऋषि मुग्दल ने श्रीराम और माता सीता को यज्ञ के लिए अपने आश्रम में बुलाया।
मुग्दल ऋषि के कहे अनुसार, माता सीता ने कार्तिक शुक्ल की षष्ठी तिथि को सूर्यदेव की उपासना की और व्रत भी रखा। इस दौरान राम जी और सीता माता ने पूरे छह दिनों तक मुग्दल ऋषि के आश्रम में रहकर पूजा-पाठ किया। इस तरह छठ पर्व का इतिहास रामायण काल से जुड़ा है।
3. द्रौपदी ने रखा था छठ व्रत
पौराणिक कथाओं के अनुसार, छठ व्रत के प्रारंभ को द्रौपदी से भी जोड़ा जाता है। मान्यता है कि द्रौपदी ने पांच पांडवों के बेहतर स्वास्थ्य और सुखी जीवन लिए छठ व्रत रखा था और भगवान सूर्य की उपासना की थी। इसी के परिणामस्वरूप पांडवों को उनका खोया हुए राजपाट वापस मिला था।
4. दानवीर कर्ण ने की थी सूर्य पूजा
महाभारत के अनुसार, दानवीर कर्ण सूर्य के पुत्र थे। वह प्रतिदिन सूर्य की उपासना करते थे। इस प्रकार देखा जाए तो सबसे पहले कर्ण ने ही सूर्य की उपासना शुरू की थी। वह प्रतिदिन स्नान के बाद नदी में जाकर सूर्य को अर्घ्य दिया करते थे।
कितने दिन मानते है छठ पूजा?
छठ पूजा व व्रत का प्रारंभ हिंदू माह कार्तिक माह के शुक्ल की चतुर्थी तिथि से होता है,और षष्ठी तिथि को कठिन व्रत रखा जाता है और सप्तमी को इसका समापन किया जाता है.
छठ पूजा में क्या करते हैं?
पहले दिन नहाए खाए अर्थात साफ-सफाई और शुद्ध शाकाहारी भोजन सेवन का पालन किया जाता है. दूसरे दिन खरना अर्थात पूरे दिन उपवास रखते हैं और शाम को गुड़ की खीर ,घी लगी हुई रोटी ,और फलों का सेवन करते हैं. इसके बाद संध्या षष्ठी को अर्घ्य अर्थात संध्या के समय सूर्य देव को अर्घ्य दिया जाता है. और विधिवत पूजा किया जाता है. तब कई प्रकार की वस्तुएं भी चढ़ाई जाती है और इसी दौरान प्रसाद से भरे सूप से छठी मैया की पूजा की जाती है. सूर्य देव की उपासना के बाद रात में छठी माता के गीत गाते हैं और व्रत कथा सुनी जाती है और अंत में दूसरे दिन उषा अर्घ्य अर्थात सप्तमी के दिन सुबह सूर्योदय से पहले नदी के घाट पर पहुंचकर उगते सूर्य को अर्घ्य देते हैं. पूजा के बाद व्रत करने वाली महिलाएं कच्चे दूध का शरबत पीकर और थोड़ा प्रसाद खाकर व्रत को पूरा करती हैं. जिसे पारण या परना कहा जाता है.
क्यों करते हैं छठ पूजा?
छठ पूजा का व्रत महिलाएं अपनी संतान की रक्षा और पूरे परिवार की सुख शांति का वर मांगने के लिए करती है.मान्यता के अनुसार इस दिन निःसंतानों को संतान प्राप्ति का वरदान छठ मैया देती हैं.
छठ कथा
प्राचीन कथा के अनुसार मुनि स्वायंभुव के पुत्र राजा प्रियव्रत को कोई संतान नहीं थी. महर्षि कश्यप ने यज्ञ करवाया तब महारानी मालिनी ने एक पुत्र को जन्म दिया परंतु वह शिशु मृत पैदा हुआ तभी माता षष्ठी प्रकट हुई और उन्होंने अपना परिचय देते हुए मृत शिशु को आशीष देते हुए हाथ लगाया जिससे वह जीवित हो गया. देवी की इस कृपा से राजा बहुत प्रसन्न हुए और उन्होंने षष्ठी देवी की आराधना की तभी से पूजा का प्रचलन आरंभ हुआ.