चीफ जस्टिस डी वाय चंद्रचूड़ रिटायर हो गये . उनके नेतृत्व में संवैधानिक पीठ के 38 फैसले किये , जिनमें से दो आखरी दिन सुनाए गए. यह एक ऐसा रिकॉर्ड है जो कभी नहीं टूटेगा. उनके रहते हुए न्यायपालिका का स्तर आम लोगों की नज़र में बहुत उठ गया था. बड़े राजनेता , बड़े वकील , बड़ी दलील के सामने, वे अपनी स्पष्ट सोच से बेबाक फैसले देते थे .
कल मुझे किसी दोस्त ने कुछ शायरियां भेज लिखा कि ये ‘ दादा कोंडके स्टाइल’ की शायरियां हैं. वे द्विअर्थी शायरियां पढ़कर मुझे ऐक्टर, निर्माता-निर्देशक दादा कोंडके की याद ताज़ा हो गई. वे अपनी मराठी फिल्मों में एक सीधा-सादा अद्भुत करेक्टर का रोल अदा करते थे परन्तु उनके संवादों में छिपा दूसरा अर्थ मन को गुदगुदा देता था. भले ही ऊपरी रूप से समाज के ठेकेदार और बुद्धीजीवी उसे छिछोरा कहते थे परन्तु अंदर ही अंदर से उन फिल्मो के मज़े लेते थे . तभी तो लगातार उनकी 7 फिल्मों ने सिल्वर जुबली मनाई और गिनीज़ बुक ऑफ़ वर्ल्ड रेकॉर्ड में स्थान हासिल किया. उनकी एक फिल्म आपत्तिजनक संवादों की बदौलत अदालत पहुंची तो जज साहब ने दलील सुनने के बाद उनसे पूछा, ‘माना कि आपके संवाद का अर्थ ‘यह’ है लेकिन आप इतने नादान नहीं कि ना जान पाएं कि उसका अर्थ ‘वह’ भी होता है.’ कलाकार निरुत्तर था अदालत ने उन्हें दंड के साथ चेतावनी देकर फटकार लगाई थी .
मुंबई में लारेंस बिश्नोई की गतिविधियों के कारण , फिर से लोगों को याद आने से , सलमान खान के जैसे अनेक केस में न्यायपालिका की सोच पर सवाल अभी फिर से उठ रहे हैं हैं . कानून वही, धारा वही, जिरह और क्रॉस एग्जामिनेशन वही, फैसले भी वही पर अभियुक्त से बर्ताव बिल्कुल अलहदा. ऐसा क्यों ? मैंने पत्रकार माधो से सवाल किया तो वे बोले , ऐसी ही बातों से न्यायपालिका अपने वज़न को खोती जा रही है. एक समय था कि कचहरी से आया फैसला वादी और प्रतिवादी दोनों के लिए जीवन-मरण तय कर देता था. उसकी दुनिया या तो बस जाती थी या फिर हमेशा के लिए उजड़ जाती थी. उसके लिए वही फुलस्टॉप होता था.अब तो गांव-कस्बे का किसान भी पक्ष में फैसला न आने पर तपाक से कहते मिलेगा, ‘कोई बात नहीं, हाईकोरट जाएंगे, वहां नहीं हुआ तो सुपरीम कोरट जाएंगे, लेकिन मन मुताबिक फैसला चाहिए ‘.
जब मोहल्ले के किसी बंटी की स्पीडिंग मोटर साइकल से कोई एक्सीडेंट हो जाता है तो उसकी मम्मी कहती है कि मेरा बंटी बेहद सेफ ड्राइविंग करता है उसकी कोई गलती नहीं थी . गलती गाड़ी की थी , उसका ब्रेक फेल हो गया था और सामने दबने वाले की थी , उसे तो देखना चाहिए था कि बाइक स्पीड से आ रही है. अब तो सलमान के अब्बा सलीम सहित अनेक लोग यह बताने पिल पड़े हैं कि इतने अच्छे सल्लू भाई गलती कर ही नहीं सकते है (क्योंकि उसने अपनी ज़िंदगी में एक मच्छर भी नहीं मारा ) बल्कि जज ही उनकी अच्छाइयों को नहीं समझ पाया था . वैसे आसाराम बापू को भी उनके भक्तों ने सलाह भेजी है कि जेल से ही फिल्मों में काम करना शुरू कर दो तो तुरंत ज़मानत मिल जाएगी . यदि ऐसा नहीं हो पाया तो कम से कम बाबा राम रहीम व संजय दत्त की तरह लम्बे लम्बे पैरोल मिल जायेंगे , जिससे बाहर आकर फिर अपनी लीलाएं दिखा पाएंगे.
इंजी. मधुर चितलांग्या , संपादक
दैनिक पूरब टाइम्स