नई दिल्ली: कोविड वैक्सीन के दुष्प्रभावों और उससे हुई मौतों को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने कड़ी टिप्पणी की है। सुप्रीम कोर्ट ने सरकार को निर्देश दिया है कि वह पीड़ित परिवारों को मुआवजा देने के लिए एक स्पष्ट नीति बनाए। कोर्ट ने कहा कि कोविड-19 से हुई मौतों और कोविड वैक्सीनेशन के कारण हुई मौतों को अलग नहीं माना जा सकता, क्योंकि दोनों ही महामारी के परिणाम हैं।
केरल हाईकोर्ट के आदेश की पृष्ठभूमि
केरल की सईदा केए ने 2023 में एक याचिका दायर कर दावा किया कि उनके पति की मृत्यु कोविड वैक्सीन के प्रतिकूल प्रभाव के कारण हुई थी। उन्होंने इस मामले में सरकार से मुआवजा दिलाने की मांग की। केरल हाईकोर्ट ने इस पर संज्ञान लेते हुए राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण को पीड़ित परिवारों को मुआवजा देने के लिए नीति बनाने का निर्देश दिया। हालांकि, केंद्र सरकार ने इस आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी।
सुप्रीम कोर्ट की सख्त टिप्पणी
मंगलवार, 25 फरवरी को सुप्रीम कोर्ट की डबल बेंच, जिसमें जस्टिस विक्रमनाथ और जस्टिस संदीप मेहता शामिल थे, ने इस मामले की सुनवाई की। केंद्र सरकार का पक्ष रखते हुए अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल ऐश्वर्या भाटी ने दलील दी कि कोविड-19 को आपदा घोषित किया गया था, लेकिन टीकाकरण से हुई मौतें इस श्रेणी में नहीं आतीं। उन्होंने यह भी कहा कि अभी तक मुआवजे के लिए कोई नीति निर्धारित नहीं की गई है।
आगे पढ़ेइस पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि कोविड-19 और उसके उपचार के तहत किए गए टीकाकरण अभियान से हुई मौतों को अलग नहीं किया जा सकता। न्यायालय ने टिप्पणी करते हुए कहा, “टीकाकरण भी महामारी से निपटने का एक हिस्सा था, इसलिए उससे हुई मौतों को भी महामारी का प्रभाव ही माना जाना चाहिए।” कोर्ट ने सरकार से स्पष्ट नीति बनाने को कहा ताकि पीड़ित परिवारों को उचित मुआवजा मिल सके।
केंद्र सरकार की दलील
सरकार की ओर से कहा गया कि आपदा प्रबंधन अधिनियम के तहत टीकाकरण के प्रतिकूल प्रभावों से निपटने के लिए कोई स्पष्ट नीति नहीं बनाई गई थी। उन्होंने बताया कि कोविड टीकाकरण अभियान एक चिकित्सा प्रोटोकॉल के तहत चलाया गया था और एईएफआई (Adverse Event Following Immunization) तंत्र यह आकलन करता है कि किसी मौत का संबंध वैक्सीन से है या नहीं।
अगली सुनवाई 18 मार्च को
सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को अपनी स्थिति स्पष्ट करने का समय दिया है। अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल ऐश्वर्या भाटी ने इसके लिए तीन सप्ताह का समय मांगा, जिसे अदालत ने स्वीकार कर लिया। अब इस मामले की अगली सुनवाई 18 मार्च को होगी।
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