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यदि आप कभी उदासी या अवसाद में हैं तो बहुत सरल तरीका अपने को अतिरिक्त ऊर्जा देने का

यदि आप अवसाद में जा रहे हैं या बेहद तनाव महसूस कर रहे हैं तो अपनी पसंद के पुराने गीत ज़रूर सुनें.
खासकर वे गाने , जिनके बोल , आपको अपनी ज़िंदगी में , आपकी अपनी भावनाओं से मिलाएं, आगे बढ़ने की प्रेरणा दें या मीठेपन का अहसास दिलाएं . कुछ खट्टी मीठी यादें, कुछ अनकही कहानियां , इन गीतों के साथ आपके जीवन से जुडी होंगीं. अकेले में ज़ोर-ज़ोर से गुनगुनाएं या ज़ोर-ज़ोर से गाएं और उन अहसासों को फिर से महसूस करें . सचमुच कुछ समय के लिए आप अपने में अद्भुत सकारात्मक ऊर्जा पाएंगे .
कॉलेज के दिनों में मैं साहिर लुधियानवी के लिए पागल था. शायद उनकी रुमानियत(प्रेमीपन) से ,उनकी साफगोई(बात कहने के अक्खड़पन ) से या उनके स्टाइलिश अंदाज़ से . पर मेरी चाहत में दीवानापन था उनके लिखने के अंदाज़ से . कभी कभी तो उनके लिरिक्स में एक अलग ढंग की फिलॉसॉफी होती थी. प्यार में शिकायत करने का अद्भुत अंदाज़ होता था –
अधूरी आस छोड़ के, अधूरी प्यास छोड़ के
जो रोज़ यूँ ही जाओगी, तो किस तरह निभाओगी
के ज़िन्दगी की राह में, जवाँ दिलों की चाह में
कई मकाम आयेंगे, जो हम को आजमाएंगे
बुरा ना मानो बात का, ये प्यार है गिला नहीं


साहिर के शायरी में कई बातें बड़ी सुकून दायी होती थीं . साथ ही उनमे कहने का एक बेफिक्र अंदाज़ –
बर्बादियों का सोग मनाना फज़ूल था,
बर्बादियों का जश्न मनाता चला गया .

सबसे बड़ी कालजयी बात उन्होंने राजेश खन्ना के मुंह से फिल्म ‘ दाग’ में कहलवाई –
आज इतनी मोहब्बत ना दो दोस्तों,
कि मेरे कल के खातिर, ना कुछ भी रहे,
इस मोहब्बत के बदले मैं क्या नज़र दूं,
मैं तो कुछ भी नहीं, मैं तो कुछ भी नहीं…
इज्जतें, चाहतें, शोहरतें, उल्फतें,
कोई भी चीज़ दुनिया में रहती नहीं,
आज मैं हूँ जहाँ, कल कोई और था.
ये भी एक दौर है, वो भी एक दौर था..
.
विश्वास मानिये, आज मैं यह सब गुनगुनाते हुए इतना बेहतर महसूस कर रहा हूँ , उसी तरह आप भी अपने भीतर ऊर्जा का संचार कर सकते हैं , एक पसंदीदा गाना , अपनी पूरी भावनाओं के साथ अकेले में गाकर .
इंजी. मधुर चितलांग्या, संपादक
दैनिक पूरब टाइम्स

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