लोदी वंश की स्थापना 1451 ई. में बहलुल लोदी द्वारा की गई थी। लोदी वंश दिल्ली सल्तनत का अंतिम वंश था, जो तुर्की प्रवृत्तियों से संबंधित था। इस वंश ने दिल्ली और आसपास के क्षेत्रों पर 1451 से लेकर 1526 तक शासन किया, जब अंतिम सुलतान इब्राहीम लोदी को पानीपत की पहली लड़ाई में बाबर के हाथों हार का सामना करना पड़ा और इस प्रकार लोदी वंश का अंत हुआ।
लोदी वंश के संस्थापक और प्रमुख शासक:
- बहलुल लोदी (1451-1489):
- बहलुल लोदी ने दिल्ली में लोदी वंश की नींव रखी। वह पहले अफगान सरदार थे और दिल्ली सल्तनत के सुलतान के रूप में स्थापित हुए। उन्होंने दिल्ली के सुलतान के रूप में अपनी स्थिति मजबूत करने के लिए कई आक्रमण किए।
- सिकंदर लोदी (1489-1517):
- बहलुल के पुत्र सिकंदर लोदी ने दिल्ली सल्तनत का शासन संभाला। उनका शासन अत्यंत कठोर था, लेकिन उन्होंने प्रशासनिक सुधार किए और राजधानी को दिल्ली से आगरा में स्थानांतरित किया। आगरा को उन्होंने अपनी प्रशासनिक गतिविधियों का केंद्र बनाया और इसे एक प्रमुख शहर के रूप में विकसित किया।
- इब्राहीम लोदी (1517-1526):
- इब्राहीम लोदी का शासन विवादास्पद था। वह एक नृशंस शासक के रूप में जाने गए, और उनके शासन में कई विद्रोह और असंतोष फैला। उन्होंने भारतीय उपमहाद्वीप में कई युद्धों की योजना बनाई, जिनमें पानीपत की पहली लड़ाई शामिल है, जिसमें बाबर ने उन्हें हराया और लोदी वंश का अंत हुआ।
लोदी वंश के योगदान:
- राजनीतिक और प्रशासनिक सुधार: लोदी शासकों ने प्रशासन को व्यवस्थित किया और कई क्षेत्रों में सुधार किए। विशेषकर सिकंदर लोदी ने अपने प्रशासनिक ढांचे को मजबूत किया।
- संस्कृति और कला: लोदी वंश के शासनकाल में कला और स्थापत्य के क्षेत्र में भी कुछ महत्वपूर्ण योगदान देखा गया। आगरा में कई भवनों का निर्माण हुआ और संगीत, साहित्य आदि को बढ़ावा मिला।
- लश्करी संगठन: लोदी वंश ने अफगान साम्राज्य की प्रथा को जारी रखा और अपने शासनकाल में अफगान सैनिकों का बड़ा योगदान था।
लोदी वंश का अंत 1526 में पानीपत की पहली लड़ाई में बाबर द्वारा इब्राहीम लोदी को हराए जाने से हुआ, और इसके साथ ही भारत में मुघल साम्राज्य की शुरुआत हुई।