सकट चतुर्थी का महत्व
सकट चतुर्थी, जिसे तिलकुटा चौथ या गणेश चतुर्थी भी कहा जाता है, हिंदू धर्म में अत्यधिक महत्व रखती है। माघ महीने की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को मनाया जाने वाला यह पर्व मुख्य रूप से भगवान गणेश और माता चौथ को समर्पित है।
- संतान की रक्षा और लंबी आयु के लिए महिलाएं इस व्रत को रखती हैं।
- यह व्रत परिवार में सुख-समृद्धि और बाधाओं से मुक्ति का प्रतीक है।
- माता चौथ को सौभाग्य और समृद्धि की देवी माना जाता है, जिनकी कृपा से परिवार में खुशहाली बनी रहती है।
पूजा विधि
- स्नान और तैयारी: प्रातःकाल स्नान करें और स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
- पूजा स्थल सजावट: पूजा स्थल को गंगाजल से शुद्ध करें और भगवान गणेश व माता चौथ की प्रतिमा स्थापित करें।
- पूजन सामग्री: धूप, दीप, रोली, चंदन, लाल फूल, दुर्वा, मोदक, और तिल-गुड़ के लड्डू अर्पित करें।
- चंद्रमा को अर्घ्य: रात्रि में चंद्रमा को दूध, जल और तिल मिश्रित अर्घ्य दें और व्रत तोड़ें।
सकट चौथ के उपाय
- तिल का दान: तिल का दान करने से पापों का नाश होता है।
- दुर्वा अर्पण: भगवान गणेश को दुर्वा अर्पित करने से जीवन की सभी बाधाएं दूर होती हैं।
- गरीबों को भोजन: गरीबों को भोजन और वस्त्र दान करना पुण्यकारी है।
- मंत्र जाप: “ॐ गं गणपतये नमः” मंत्र का जाप करने से मानसिक शांति प्राप्त होती है।
व्रत कथा का महत्त्व
सकट चतुर्थी की कथा पढ़ने और सुनने के बिना व्रत अधूरा माना जाता है। यह कथा भगवान गणेश की शक्ति और उनके विघ्नहर्ता स्वरूप को समझाने का माध्यम है।
संक्षेप में
सकट चतुर्थी का व्रत भगवान गणेश और माता चौथ की कृपा पाने का उत्तम माध्यम है। यह व्रत न केवल धार्मिक दृष्टि से बल्कि परिवार की सुख-शांति और समृद्धि के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। श्रद्धा और विश्वास के साथ व्रत करने से जीवन में सकारात्मक परिवर्तन अनुभव किए जा सकते हैं।
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