मकर संक्रांति हिंदू धर्म का एक प्रमुख पर्व है, जिसे सूर्य देवता की आराधना और उनके उत्तरायण गमन के उपलक्ष्य में मनाया जाता है। इस पर्व से जुड़ी कई पौराणिक कथाएं और धार्मिक परंपराएं हैं, जो इसे विशेष और महत्त्वपूर्ण बनाती हैं।
मकर संक्रांति का खगोलीय महत्व
मकर संक्रांति तब मनाई जाती है जब सूर्य मकर राशि में प्रवेश करता है और उत्तरायण होता है। इसे खगोलीय दृष्टि से शुभ समय माना जाता है, क्योंकि इस दिन से दिन लंबे और रातें छोटी होने लगती हैं। यह परिवर्तन प्रकृति में नए जीवन और ऊर्जा का प्रतीक है।
पौराणिक महत्व और कथाएं
1. दान और स्नान का महत्त्व
मकर संक्रांति पर पवित्र नदियों में स्नान और दान का विशेष महत्त्व है। ऐसा माना जाता है कि इस दिन किया गया दान सौ गुना फल देता है। शास्त्रों के अनुसार, इस दिन गंगा स्नान और तिल, गुड़, कंबल, और घी का दान मोक्ष की प्राप्ति का मार्ग प्रशस्त करता है।
2. भीष्म पितामह का देह त्याग
महाभारत की कथा के अनुसार, भीष्म पितामह ने मकर संक्रांति के शुभ दिन पर अपनी देह त्यागी थी। यह दिन देवताओं का प्रिय माना जाता है, और इसे मोक्ष प्राप्ति का विशेष समय बताया गया है।
3. गंगा का सागर में विलय
पौराणिक मान्यता है कि मकर संक्रांति के दिन गंगा नदी भगीरथ के पीछे-पीछे चलकर कपिल मुनि के आश्रम से सागर में जाकर मिली थीं। इस घटना को गंगा के पवित्र प्रवाह का प्रतीक माना जाता है।
4. सूर्य और शनि की कथा
श्रीमद्भागवत और देवी पुराण में सूर्य और शनि की कथा का उल्लेख मिलता है। कथा के अनुसार, सूर्य देव ने अपनी पत्नी छाया और उनके पुत्र शनि से दूरी बना ली थी। इस कारण शनि और छाया ने सूर्य देव को कुष्ठ रोग का श्राप दिया। यमराज ने अपने पिता को इस श्राप से मुक्त करने के लिए तपस्या की।
शनि देव ने सूर्य देव को काले तिल अर्पित कर उनकी पूजा की। इससे प्रसन्न होकर सूर्य देव ने शनि को आशीर्वाद दिया और उनके मकर राशि के घर को धन-धान्य से परिपूर्ण कर दिया। तभी से मकर संक्रांति पर तिल, गुड़, और सूर्य-शनि पूजा की परंपरा शुरू हुई।
धार्मिक परंपराएं और रीति-रिवाज
- तिल और गुड़ का महत्त्व
इस दिन तिल और गुड़ का सेवन और दान किया जाता है। यह प्रेम और मिठास का प्रतीक माना जाता है। - पर्वतीय क्षेत्रों में स्नान
गंगा, यमुना, और अन्य पवित्र नदियों में स्नान करना पुण्यदायी माना जाता है। - पतंगबाजी
मकर संक्रांति पर पतंग उड़ाने की परंपरा भी है, जो उत्सव और उल्लास का प्रतीक है।
निष्कर्ष
मकर संक्रांति केवल एक त्योहार नहीं, बल्कि जीवन में सकारात्मक ऊर्जा, परोपकार और धर्म का संदेश देने वाला पर्व है। इसके पौराणिक और खगोलीय महत्त्व ने इसे भारतीय संस्कृति में एक विशेष स्थान प्रदान किया है।