लोक आस्था के महापर्व छठ के तीसरे दिन यानी व्रती अस्ताचल सूर्य को अर्घ्य देंगे। इसके एक दिन पहले बुधवार को खरना करके 36 घंटे के व्रत की शुरुआत हो गई है। छठ के चारों दिन का अलग-अलग महत्व होता हैं। छठ के तीसरे दिन शाम को व्रती घाटों पर आकर कमर तक पानी में उतर कर सूर्य को संध्या अर्घ्य देंगे। आज सूर्यास्त का समय शाम को 5 बजकर 48 मिनट पर होगा। इसके बाद श्रद्धालु कल यानी शुक्रवार को सप्तमी पर उगते सूर्य को अर्घ्य देकर व्रत खोलेंगे और कल सुबह 6 बजकर 48 मिनट पर सूर्योदय होगा। सभी लोग पर्व में बढ़-चढ़ कर हिस्सा ले रहे हैं और छठी मैया की पूजा कर रहे हैं।
खरना से शुरू हुआ 36 घंटे का निर्जला व्रत
छठ पर्व के दूसरे दिन खरना पर घर-घर विशेष प्रसाद बनाया गया और इसी के साथ 36 घंटे लगातार निर्जला व्रत की शुरूआत भी हो गई है। इस दौरान मिट्टी के चूल्हे पर गुड़ की खीर बनाई गई। इसके लिए पीतल के बर्तन का प्रयोग किया जाता है और इस भोजन में बहुत ही शुद्धता और पवित्रता का ध्यान रखना पड़ता है। खीर के अलावा गुड़ की अन्य मिठाई, ठेकुआ और लड्डू आदि भी बनाए जाते हैं। इसके बाद पूरा परिवार ने व्रत व्यक्ति से आशीर्वाद लिया जाता है। साथ ही सुहागन महिलाएं व्रती महिलाओं से सिंदूर लगवाती हैं।
आज व्रती डूबते सूर्य को देंगे अर्घ्य
छठ का पर्व जात-पात और अमीर-गरीब का भेद को खत्म करता है और इस पर्व में हर कोई बराबर होता है। छठ पर्व के तीसरे दिन शाम को भगवान भगवान भास्कर को पहला अर्घ्य दिया जाएगा, जिसकी वजह से हर जगह भक्ति का माहौल बना हुआ है। इसके बाद 8 नवंबर को उदीयमान भगवान भास्कर को दूसरा अर्घ्य देने के बाद व्रत का पारण और चार दिवसीय पर्व का समापन होगा। आज व्रती महिलाएं अस्ताचलगामी सूर्य अर्घ्य देने घाट पर पहुंचेंगी, इसको लेकर हर जगह तैयारियां पूरी हो गई हैं। सूर्य को अर्घ्य देने से बच्चों का जीवन भी सूर्य के समान चमकता है और जीवन में मान सम्मान और यश की भी प्राप्ति होती है।
क्यों दिया जाता है डूबते हुए सूर्य को अर्घ्य?
कार्तिक मास की षष्ठी तिथि को डूबते सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है। इस दिन नदी, तालाब में खड़े होकर व्रती डूबते सूर्य को अर्घ्य देते हैं। इसके पीछे मान्यता यह है कि डूबते समय सूर्यदेव अपनी दूसरी पत्नी प्रत्युषा के साथ होते हैं और इस समय सूर्य को अर्घ्य देने से जीवन में चल रहीं सभी समस्याएं दूर हो जाती हैं और प्रत्युषा की वजह से सौभाग्य में वृद्धि होती है। डूबते सूर्य को अर्घ्य देना यह जीवन के उस चरण को दर्शता है, जब कोई व्यक्ति मेहनत और तपस्या का फल प्राप्त करने का समय आता है। वहीं अगले दिन उगते सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है और इस समय सूर्य अपनी पत्नी उषा के साथ होते हैं। उषा के साथ सूर्यदेव को अर्घ्य देने से वंश में वृद्धि होती है।