बाबा श्याम को कलयुग का अवतार माना जाता है और उन्हें “हारे का सहारा” भी कहा जाता है। लाखों श्रद्धालु हर साल खाटूश्यामजी मंदिर में उनके दर्शन के लिए आते हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं कि बाबा श्याम कौन हैं और खाटू में उनका मंदिर क्यों स्थापित किया गया? आइए जानते हैं इस दिव्य स्थल की पौराणिक कथा।
बर्बरीक: महाभारत के वीर योद्धा
महाभारत के युद्ध में पांडवों और कौरवों के बीच घमासान संग्राम चल रहा था। पांडवों के वीर योद्धा भीम के पुत्र घटोत्कच के पुत्र बर्बरीक थे, जो माँ दुर्गा के परम भक्त थे। देवी माँ ने उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर उन्हें तीन दिव्य बाण प्रदान किए, जिनमें से एक बाण से वे संपूर्ण पृथ्वी को नष्ट कर सकते थे।
जब महाभारत का युद्ध प्रारंभ हुआ, तब बर्बरीक ने अपनी माता हिडिंबा से युद्ध में भाग लेने की अनुमति मांगी। हिडिंबा ने उन्हें आदेश दिया कि वे सदैव हारने वाले पक्ष की ओर से युद्ध करें। बर्बरीक माँ की आज्ञा का पालन करते हुए युद्धभूमि की ओर बढ़ने लगे।
भगवान श्रीकृष्ण द्वारा शीशदान की कथा
भगवान श्रीकृष्ण जानते थे कि यदि बर्बरीक युद्ध में शामिल हो गए, तो वे नियमों के अनुसार हारने वाले पक्ष का समर्थन करेंगे, जिससे युद्ध का संतुलन बिगड़ जाएगा। इसलिए श्रीकृष्ण ने ब्राह्मण का वेश धारण कर बर्बरीक से भेंट की और उनसे पूछा कि वे कितने बाणों से युद्ध जीत सकते हैं। बर्बरीक ने उत्तर दिया— “केवल एक बाण पर्याप्त है”।
यह सुनकर श्रीकृष्ण ने बर्बरीक की परीक्षा ली और उनसे दान स्वरूप अपना शीश मांग लिया। बर्बरीक ने बिना किसी संकोच के अपना शीश श्रीकृष्ण को अर्पित कर दिया। इस बलिदान से प्रसन्न होकर श्रीकृष्ण ने आशीर्वाद दिया—
“कलयुग में तुम मेरे नाम से पूजे जाओगे। तुम श्याम के रूप में प्रसिद्ध होगे और ‘हारे का सहारा’ बनोगे।”
बर्बरीक का शीश खाटू में कैसे पहुँचा?
शीशदान के बाद, बर्बरीक ने युद्ध देखने की इच्छा व्यक्त की। श्रीकृष्ण ने उनका शीश एक ऊँचे स्थान पर स्थापित कर दिया, जहाँ से उन्होंने महाभारत का संपूर्ण युद्ध देखा। युद्ध समाप्त होने के बाद, श्रीकृष्ण ने बर्बरीक के शीश को गर्भवती नदी में प्रवाहित कर दिया।
समय बीतने के साथ, बर्बरीक का शीश गर्भवती नदी से बहकर खाटू (प्राचीन खाटुवांग) में आ गया। स्थानीय लोगों के अनुसार, 1974 में यह गर्भवती नदी लुप्त हो गई।
खाटूश्यामजी मंदिर की स्थापना
लोक मान्यता के अनुसार, एक दिन खाटू गांव में एक पीपल के वृक्ष के पास एक गाय प्रतिदिन अपने आप दूध देने लगी। जब ग्रामीणों ने उस स्थान की खुदाई की, तो वहां से बाबा श्याम का शीश प्राप्त हुआ।
यह घटना फाल्गुन मास की ग्यारस (एकादशी) को घटी, इसलिए बाबा श्याम का जन्मोत्सव फाल्गुन ग्यारस को मनाया जाता है।
ग्रामीणों ने यह शीश चौहान वंश की रानी नर्मदा देवी को सौंप दिया। नर्मदा देवी ने बाबा श्याम को गर्भगृह में स्थापित कर दिया, और जहाँ शीश प्राप्त हुआ था, वहाँ श्याम कुंड का निर्माण करवाया गया। यही स्थान आज खाटूश्यामजी मंदिर के रूप में प्रसिद्ध है।
निष्कर्ष
बाबा श्याम, जो बर्बरीक के रूप में महाभारत में अमर हुए, आज खाटूश्यामजी के रूप में अनगिनत भक्तों की आस्था का केंद्र हैं। उनकी भक्ति और बलिदान की कथा आज भी श्रद्धालुओं को प्रेरणा देती है।
हर वर्ष फाल्गुन माह की ग्यारस को खाटूश्यामजी में विशाल मेले का आयोजन किया जाता है, जहाँ लाखों भक्त बाबा श्याम के दर्शन करने आते हैं और उनकी कृपा प्राप्त करते हैं।
“जय श्री श्याम!”