अक्षय नवमी, जिसे आंवला नवमी और कुष्मांडक नवमी के नाम से भी जाना जाता है, हिंदू धर्म में अत्यंत श्रद्धा और भक्तिभाव से मनाया जाने वाला पर्व है। कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को मनाए जाने वाले इस पर्व में आंवले के वृक्ष की पूजा की जाती है। इस दिन आंवले के वृक्ष के नीचे बैठकर भोजन करने से भगवान विष्णु और भगवान शिव का आशीर्वाद प्राप्त होता है, जिससे घर में धन, यश, वैभव, अच्छा स्वास्थ्य और सम्मान आता है।
अक्षय नवमी का महत्व और मान्यताएं
अक्षय नवमी का संबंध भगवान विष्णु से है, और इस दिन किए गए पुण्य को ‘अक्षय’ माना जाता है, यानी यह पुण्य कभी समाप्त नहीं होता। मान्यता है कि आंवला वृक्ष के नीचे भोजन करने और पूजा करने से मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं और जीवन में सुख-समृद्धि आती है।
इस पर्व को कुष्मांडक नवमी भी कहा जाता है, क्योंकि आज के ही दिन भगवान विष्णु ने दुष्ट दैत्य कुष्मांडक का वध किया था, जिसके शरीर से सीताफल (कुष्मांड) की बेल निकली थी। इस दिन का महत्व सिर्फ धार्मिक दृष्टि से ही नहीं, बल्कि पर्यावरण संरक्षण के लिए भी विशेष माना गया है, क्योंकि आंवला वृक्ष पर्यावरण को स्वच्छ और स्वस्थ बनाए रखने में सहायक है।
सात्विक भोजन का महत्व
अक्षय नवमी पर महिलाएं आंवले के वृक्ष के पास जाकर पूजा करती हैं। शुद्ध और सात्विक भोजन तैयार करती हैं, जिसमें विशेष रूप से सात प्रकार की सब्जियों को मिलाकर बनाया जाता है। पूजा के बाद ब्राह्मणों को भोजन कराकर, महिलाएं परिवार के साथ आंवले के वृक्ष के नीचे बैठकर भोजन करती हैं। धार्मिक मान्यता के अनुसार इस प्रकार से भोजन करने से अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती है और व्यक्ति के सभी रोगों का नाश होता है।
आंवला वृक्ष का धार्मिक महत्व
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, आंवला वृक्ष में भगवान विष्णु और भगवान शिव का वास होता है। इस दिन आंवले के वृक्ष के नीचे बैठना और पूजा करना शुभ माना गया है। यह न केवल शारीरिक स्वास्थ्य के लिए लाभकारी है, बल्कि मानसिक शांति और आध्यात्मिक उन्नति के लिए भी अत्यंत प्रभावी है। शास्त्रों में बताया गया है कि अक्षय नवमी के दिन किए गए दान का पुण्य कभी क्षीण नहीं होता।
आंवला नवमी की पूजा विधि
भोजन और भोग: आंवला वृक्ष के नीचे बैठकर भोजन करना विशेष पुण्यकारी माना गया है। पूजा के बाद परिवार के साथ भोजन किया जाता है और जरूरतमंदों को भोजन दान भी किया जाता है।पर्यावरण संरक्षण के प्रति संदेश
स्नान और संकल्प: इस दिन व्रती सुबह स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करते हैं और पूजा का संकल्प लेते हैं।
आंवला वृक्ष की पूजा: आंवला वृक्ष के पास जाकर जल, रोली, अक्षत, फूल, धूप और दीपक से पूजन किया जाता है।
वृक्ष की परिक्रमा: आंवला वृक्ष की 7 या 11 परिक्रमा की जाती है, जिससे अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती है।
अक्षय नवमी का पर्व हमें प्रकृति के प्रति आभार व्यक्त करने की प्रेरणा देता है। आंवला का वृक्ष औषधीय गुणों से भरपूर होता है और पर्यावरण को स्वच्छ बनाए रखने में सहायक होता है। इस दिन आंवले की पूजा करने से हम पर्यावरण संरक्षण के महत्व को समझते हैं और आने वाली पीढ़ियों को भी इसके प्रति जागरूक करने का प्रयास करते हैं।
अक्षय नवमी के इस पावन पर्व पर आंवले के वृक्ष की पूजा करके, उसके नीचे भोजन करने से मनचाही इच्छाओं की पूर्ति होती है और जीवन में स्थायित्व आता है।