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Wednesday, April 16, 2025
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हिमाचल का यह मंदिर जिसका इतिहास पांडवों से जुड़ा है, यहा कलश बांधकर क्यों रखा गया है?

हिमाचल प्रदेश एक ऐसा राज्य है, जहां पर अक्सर लोग घूमने-फिरने जाते हैं। लेकिन यहां पर ऐसे कई फेमस और प्राचीन मंदिर हैं, जिससे जुड़ी कई स्थानीय मान्यताएं और लोककथाएं मौजूद हैं। हिमाचल प्रदेश में एक हाटेश्वरी मंदिर है, जिसका इतिहास पांडवों से जुड़ा हुआ माना जाता है। जिसके साक्ष्य आज भी मंदिर में देखने को मिलते हैं। हालांकि इस मंदिर के बारे में काफी कम लोग जानते हैं। हिमाचल प्रदेश के शिमला से 130 किमी की दूरी पर हाटेश्‍वरी माता का मंदिर है। यह मंदिर हिमाचल प्रदेश के पब्‍बर नदी के किनारे बसा एक प्राचीन गांव है। इस मंदिर में दूर-दूर से लोग दर्शन के लिए आते हैं।

कहां है ये मंदिर
हिमाचल प्रदेश के शिमला में जुब्बल-कोटखाई तहसील में माता हाटेश्वरी मंदिर स्थित है। यहां पर हाटकोटी मां की पूजा की जाती है। यहां के स्थानीय लोगों का मानना है कि देवी उनके सभी दुखों का निवारण करती हैं। वहीं मंदिर के गर्भगृह में मां हाटकोटी की एक विशाल मूर्ति है। जोकि महिषासुर का वध कर रही हैं। यही वजह है कि हाटकोटी मां को महिषासुर मर्दिनी के नाम से जाना जाता है। धार्मिक मान्यता है कि मां का दाहिना पैर भूमिगत है। इसके साथ ही मंदिर परिसर में भगवान शिव का एक मंदिर भी स्थापित है।

बता दें कि मंदिर के प्रवेश द्वार के बाईं ओर विशाल कलश को जंजीर से बांधकर रखा जाता है। जिसको स्थानीय भाषा में चरू कहा जाता है। लोक मान्यताओं के मुताबिक जब भी पब्बर नदी में बाढ़ की स्थिति बनने लगती है, तो यह कलश काफी जोर-जोर से सीटियां भरता है और भागने की कोशिश करता है। जिसके वजह से मंदिर के कलश को जंजीर से बांधकर रखा जाता है। बताया जाता है कि मंदिर में एक और कलश भी हुआ करता है, जोकि भाग निकला। लेकिन मंदिर के पुजारी ने दूसरे कलश को पकड़ लिया और जंजीरों से बांध दिया।

महाभारत काल से जुड़ा है इतिहास
धार्मिक मान्यताओं के मुताबिक इस मंदिर में स्थित कुछ स्मारक पांडवों द्वारा बनाए गए थे। पौराणिक मान्यता है कि अज्ञातवास के दौरान इस स्थान पर पांडवों का आना हुआ था। इस दौरान उन्होंने यहां पर कुछ समय बिताया था। जिसके प्रमाण आज भी मंदिर में देखने को मिलते हैं। दरअसल, मंदिर के अंदर पांच पत्थर से बने हुए छोटे मंदिर हैं, जिनको ‘देवल’ कहा जाता है। बताया जाता है कि इन्हीं के अंदर बैठकर पांडवों ने देवी की आराधना की थी।

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