छत्तीसगढ़ के सुकमा जिले से सामने आया तेन्दूपत्ता बोनस घोटाला इन दिनों सुर्खियों में है। इस घोटाले ने न सिर्फ वन विभाग बल्कि राजनीतिक गलियारों में भी हलचल मचा दी है। करोड़ों की बोनस राशि जो आदिवासी संग्राहकों को मिलनी थी, वह भ्रष्टाचार और सियासी खेल की भेंट चढ़ गई। इस पूरे मामले में एसीबी और ईओडब्ल्यू की छापेमारी, पूर्व विधायक मनीष कुंजाम पर लगे आरोप, और वरिष्ठ वन अधिकारियों की संलिप्तता ने एक बड़ा घोटाला उजागर कर दिया है।
क्या है तेन्दूपत्ता बोनस घोटाला?
तेन्दूपत्ता संग्राहकों को हर वर्ष उनके संग्रहण के बदले बोनस राशि दी जाती है। वर्ष 2021 और 2022 की बोनस राशि मार्च 2024 में संबंधित समितियों के खातों में डाली गई थी। सुकमा जिले की 15 समितियों के करीब 32 हजार संग्राहकों को 4.80 करोड़ रुपए बांटे जाने थे।
लेकिन खुलासा हुआ कि जिन संग्राहकों के पास बैंक खाते नहीं थे, उन्हें नकद भुगतान के नाम पर करीब 3.62 करोड़ रुपए निकाल लिए गए। इसी दौरान यह गड़बड़झाला शुरू हुआ।
डीएफओ पर लगा 84 लाख की वसूली का आरोप
जांच रिपोर्ट के मुताबिक, डीएफओ सुकमा अशोक पटेल, जो अखिल भारतीय वन सेवा के अधिकारी हैं, उन्होंने प्रबंधकों को अपने निवास बुलाकर बैंक से 20-20 लाख रुपए निकालने के निर्देश दिए। सात प्रबंधकों और पोषण अधिकारियों ने जांच समिति को बताया कि उन्होंने डीएफओ को कुल 83.90 लाख रुपए नकद में दिए।
प्रमुख आरोपों में शामिल हैं:
- गोलापल्ली समिति से – ₹15 लाख
- किस्टाराम – ₹10 लाख
- पालाचलमा – ₹4 लाख
- कोंटा – ₹9.50 लाख
- जगरगुंडा – ₹14.50 लाख
- बोड़केल – ₹5.50 लाख
- मिच्चीगुड़ा – ₹25.40 लाख
पूर्व विधायक मनीष कुंजाम की भूमिका पर भी सवाल
पूर्व विधायक मनीष कुंजाम ने 8 जनवरी 2025 को कलेक्टर सुकमा को पत्र लिखकर इस गबन की शिकायत की थी। लेकिन मामला तब और उलझ गया जब जांच रिपोर्ट में यह बात सामने आई कि दो समिति प्रबंधकों ने कुंजाम को 5-5 लाख रुपए और एक ने 1 लाख रुपए देने का बयान दिया।
इन बयानों के अनुसार, यह राशि कुंजाम को “मैनेज” करने के लिए दी गई थी ताकि वे ज्यादा दबाव न बनाएं। कुंजाम ने इन आरोपों को खारिज करते हुए सरकार पर गुनाहगारों को बचाने के आरोप लगाए हैं।
छापेमारी और जब्ती
एसीबी और ईओडब्ल्यू ने सुकमा, दोरनापाल और कोंटा क्षेत्रों में छापेमारी की।
- पूर्व विधायक मनीष कुंजाम के आवास से दो मोबाइल और निजी डायरी जब्त की गई।
- एक वन विभाग कर्मचारी के पास से ₹26 लाख नगद बरामद किए गए।
जांच समिति की रिपोर्ट और सिफारिशें
बस्तर के मुख्य वन संरक्षक के निर्देश पर बनाई गई जांच समिति में डीएफओ उत्तम कुमार गुप्ता की अध्यक्षता में रिपोर्ट तैयार की गई। समिति ने स्पष्ट कहा कि:
- घोटाले में गड़बड़ी हुई है।
- उच्च स्तरीय जांच जरूरी है क्योंकि इसमें अखिल भारतीय सेवा के अधिकारी शामिल हैं।
- सभी संबंधित व्यक्तियों के बयान में राशि, समय और स्थान का विवरण दर्ज है।
सरकार और विभाग की अगली कार्रवाई
जांच रिपोर्ट सीसीएफ के माध्यम से राज्य शासन को भेजी गई है। अब यह देखना दिलचस्प होगा कि राज्य सरकार इस घोटाले पर क्या ठोस कदम उठाती है। क्या दोषियों पर सख्त कार्रवाई होगी या राजनीतिक दबाव के आगे जांच ठंडी पड़ जाएगी?
निष्कर्ष: आदिवासियों की गाढ़ी कमाई पर डाका
तेन्दूपत्ता संग्राहकों की मेहनत की कमाई पर जिस तरह का भ्रष्टाचार उजागर हुआ है, वह न केवल सरकारी तंत्र पर सवाल खड़े करता है, बल्कि यह भी दर्शाता है कि कैसे गरीबों की हकदारी लूटने के लिए रैकेट बनाए जाते हैं। इस मामले में निष्पक्ष और कठोर कार्रवाई न केवल जरूरी है, बल्कि यह आदिवासी समाज के विश्वास को भी बहाल करने में सहायक होगी।