नर्सिंग होम एक्ट का अनुपालन सुनिश्चित करने के लिए सीएमएचओ अपनी सक्षमता का परिचय देने में क्यों चूक रहें है ?
क्या झोलाछाप डॉक्टर और अपंजीकृत चिकित्सा व्यवसायियों के अवैध व्यवसाय को मूकदर्शक बनकर संरक्षण देता है सीएमएचओ कार्यालय ?
जिला कलेक्ट्रेट जब तक मरीजों के अधिकार को संरक्षित करने के व्यवहारिक कार्योजना नहीं बनाएगा तो सीएमएचओ कैसे स्वास्थ्य सेवाएं नियंत्रित करेगा ?
पूरब टाइम्स, दुर्ग, रायपुर. पिछले कई वर्षों से जिला प्रशासन झोला छाप डॉक्टरों के ऊपर कार्यवाही करने पर ढील बरती जा रही है. पूर्व कुछ समाजसेवियों द्वारा जन हित याचिकाएं लगाने के बाद माननीय उच्च न्यायालय छत्तीसगढ़ के कड़े निर्देश के बाद, कई झोला छप डॉक्टरों के क्लिनिकों को सील बंद, व अनियमित तथा बिना अनुमति व्यवसाय चलाने वाले डॉक्टरों को नोटिस व दंड लगाये गये थे. पर जैसे जैसे समय बीतता गया, इस मामलें में मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी कार्यालय द्वारा गम्भीरता से निरीक्षण करना बंद कर दिया गया. जिसका असर यह है कि पूरे प्रदेश में झोला छाप, दबंगाई से अपना व्यवसाय चलाने लगे हैं. हालात ये हैं कि कई झोला छाप अपने सील बंद क्लीनिक से फिर व्यवसाय करने लगे हैं और वे लोगों से अपनी शासकीय कार्यालय से सेटिंग का दावा करते हैं. अनेक झोला छाप ने तो बाकायदा, किसी भी तरह के मेडिकल दुकान का लाइसेंस ले लिया है जहां से वे कार्य करते हैं. इस बात को पूरब टाइम्स ने दुर्ग जिले के मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी कार्यालय के संज्ञान लाया है. अब इसे जिले के कलेक्टरों व जन प्रतिनिधियों के संज्ञान ला रहे हैं ताकि जनता की अपेक्षा के अनुसार कार्यवाही हो सके. पूरब टाइम्स की एक रिपोर्ट ..
कलेक्टर ने सीएमएचओ और नगरी निकायों के कार्य व्यवहार के साथ पर्यावरण संरक्षण मंडल का तालमेल स्थापित क्यो नही करवाया है?
जिला कलेक्टर स्वास्थ्य सेवाओं को भारत गणराज्य में लागू नियम और अधिनियम के विधि निर्देश को अमलियाजामा पहनाने में प्रति वर्ष विफल होता नजर आता है. डेंगू मलेरिया पीलिया और स्वाईन फ्लू इस अनियमितता को प्रमाणित करने वाले जग जाहिर उदाहरण हैं . लोक स्वास्थ्य को सीधे नुकसान पहुंचने वाले विषय पर अध्ययन करने से स्पष्ट हुआ है कि कलेक्टर ने कड़ाई से सीएमएचओ और नगरी निकायों के कार्य व्यवहार के साथ पर्यावरण संरक्षण मंडल का तालमेल स्थापित नही करवाया है, जिसके कारण इन तीनों विभागों का आपसी तालमेल नहीं है और स्वास्थ्य सेवाओं की प्रामाणिकता खतरे आ गई है . कलेक्टर के कार्य व्यवहार को निर्देशित करने वाले नियमों को अनुश्रवण करने का काम स्वास्थ्य संचालनालय है लेकिन वह भी इस मामले में मूकदर्शक है जिसके कारण मरीजों के अधिकार पर अनियमित चिकित्सा व्यवसाई निर्भीक होकर अतिक्रमण कर रहे है और सीएमएचओ अपनी मनमानी कर रहा है . गौरतलब रहे कि निगम अधिनियम, नर्सिंग एक्ट और बायो मेडिकल वेस्ट के लिए लागू नियम को अस्तित्व में लाने के काम पर जिला कलेक्टर ध्यान नहीं दे रहे हैं और इन स्वास्थ्य मामलो को मौन संरक्षण दे रहा है.
नर्सिंग होम एक्ट के विधि निर्देशों कार्यान्वयन को सुनिश्चित नहीं करवाने कि से जिला सीएमएचओं को लाभ क्या क्या है ?
सीएमएचओ कार्यालय को नर्सिंग होम एक्ट के तहत लोक स्वस्थ्य के संरक्षण के लिए सभी प्राधिकार प्रदान किए गए है लेकिन सीएमएचओ कार्यालय अपनी इस जिम्मेदारी इसलिए पूरा नहीं करता है क्योंकि सीएमएचओ कार्यालय के प्राधिकारियों को निजी चिकित्सा व्यवसायियों का परोक्ष रूप से सहयोग मिलता रहता है इसलिए कई जिला सीएमएचओ नियमों का सहारा लेकर अपनी निजी प्रैक्टिस भी करते रहते है भिलाई दुर्ग चरोदा कुम्हारी रायपुर बिरगाव नगर निगम में इसके कई उदाहरण है जो यह संकेत देते है कि सीएमएचओ कार्यालय के लोग अपने पदेन कर्तव्यों को पूरा करने में असफल क्यो है ? अभी इस मामले की सुध लेने वाला कोई अधिकारी नहीं है इसलिए लोक स्वस्थ्य के साथ चिकित्सा व्यवसाई खुलेआम खिलवाड़ करने में सफल होते नजर आ रहे हैं
आयुर्वेद, योग, नेचुरोपैथी, युनानी, सिद्धा, होमियोपैथी, सोवा- रिग्पा इन वैकल्पिक और पारंपरिक चिकित्सा पद्धति को कैसे बचाएगी सरकार ?
भारत की संस्कृति के अहम हिस्सा के रूप में आयुर्वेद, योग, नेचुरोपैथी, युनानी, सिद्धा, होमियोपैथी, सोवा रिग्पा जैसी चिकित्सा पद्धतियां है,जिसे आयुष के नाम से जाना जाता है. आयुर्वेद, योग, नेचुरोपैथी, युनानी, सिद्धा, होमियोपैथी, सोवा रिग्पा इन सबके लिए एक अलग मंत्रालय है. आयुष मंत्रालय 2014 में केंद्रीय मंत्रालय की तरह स्थापित हुआ और इसकी जि़म्मेदारी है नीति बनाना और वैकल्पिक दवाओं के विकास और प्रसार के लिए काम करना. 1983 में भारत की पहली राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति बनी,जिसमें कहा गया कि सभी मेडिकल क्षेत्र से जुड़े सभी लोगों के काम को सही तरीके से नियोजित करने के लिए कोशिश की ज़रूरत है. जिसके साथ ही अलग अलग चिकित्सा प्रणाली को एक साथ हेल्थ केयर सिस्टम के अंतर्गत लाने की ज़रूरत है. इसके लिए सोच समझ कर क़दम उठाया जाना चाहिए ताकि सिलसिलेवार तरीके से अलग अलग फेज में पारंपरिक और आधुनिक दवाओं को एक प्रणाली के अंतर्गत लाया जा सके. लेकिन व्यवहारिक रूप से इस तरह का विलय भारत में नहीं हो सका वैकल्पिक और पारंपरिक दवाओं के लिए एक अलग मंत्रालय बनाना पड़ा. विडंबना है कि पहले से ही फण्ड की कमी झेल रहे चिकित्सा क्षेत्र में एक सामानांतर ढाँचे को खड़ा किया गया और उसके अस्तित्व को कायम करने का प्रयास किया जा रहा है .


