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हरतालिका तीज की तैयारी इस तरह करें, पूजा करने के लिए आवश्यक सामग्री और विधि जानें

हरतालिका तीज का व्रत सुहाग के प्रति आपके संकल्‍प और दृढ़निश्‍चय को दर्शाता है। आज हम आपको इसकी तैयारियों से जुड़ी कुछ अहम बातें बताने जा रहे हैं। पूजा की सामग्री में क्‍या-क्‍या होना चाहिए। पूजा कैसे की जाती है और हरतालिका तीज की कथा भी जानिए।

हरतालिका तीज का महत्व

पति की लंबी उम्र के लिए हरतालिका तीज का व्रत रखा जाता है। इस दिन सुहागिन महिलाएं निर्जला रखकर भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा करती हैं और सदा सुहागिन रहने का आशीर्वाद लेती हैं। हरतालिका तीज का व्रत रखने से पति लंबी आयु पाता है। इस व्रत को करने से सुयोग्य वर भी मिलता है, ऐसा माना जाता है। यह व्रत भी संतान सुख देता है।

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हरतालिका तीज की तैयारी और पूजाविधि

  • हरतालिका तीज में श्रीगणेश, भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा की जाती है।
  • सबसे पहले मिट्टी से तीनों की प्रतिमा बनाएं और भगवान गणेश को तिलक करके दूर्वा अर्पित करें।
  • इसके बाद भगवान शिव को फूल, बेलपत्र और शमीपत्र अर्पित करें और माता पार्वती को श्रृंगार का सामान अर्पित करें।
  • तीनों देवताओं को वस्त्र अर्पित करने के बाद हरितालिका तीज व्रत कथा सुनें या पढ़ें।
  • इसके बाद श्रीगणेशीजी की आरती करें और भगवान शिव और माता पार्वती की आरती उतारने के बाद भोग लगाएं।
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हरतालिका तीज की कथा

कथा इस प्रकार है कि पिता के यज्ञ में अपने पति शिव का अपमान देवी सती सह न सकीं। उन्‍होंने खुद को यज्ञ की अग्नि में भस्‍म कर दिया। अगले जन्‍म में उन्‍होंने राजा हिमाचल के यहां जन्‍म लिया और पूर्व जन्‍म की स्‍मृति शेष रहने के कारण इस जन्‍म में भी उन्‍होंने भगवान शंकर को ही पति के रूप में प्राप्‍त करने के लिए तपस्‍या की।

देवी पार्वती ने तो मन ही मन भगवान शिव को अपना पति मान लिया था और वह सदैव भगवान शिव की तपस्‍या में लीन रहतीं। पुत्री की यह हालत देखकर राजा हिमाचल को चिंता होने लगी। इस संबंध में उन्‍होंने नारदजी से चर्चा की तो उनके कहने पर उन्‍होंने अपनी पुत्री उमा का विवाह भगवान विष्‍णु से कराने का निश्‍चय किया। पार्वतीजी विष्‍णुजी से विवाह नहीं करना चाहती थीं। पार्वतीजी के मन की बात जानकर उनकी सखियां उन्‍हें लेकर घने जंगल में चली गईं।

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इस तरह सखियों द्वारा उनका हरण कर लेने की वजह से इस व्रत का नाम हरतालिका व्रत पड़ा। पार्वतीजी तब तक शिवजी की तपस्‍या करती रहीं जब तक उन्‍हें भगवान शिव पति के रूप में प्राप्‍त नहीं हुए। तभी से पार्वतीजी के प्रति सच्‍ची श्रृद्धा के साथ यह व्रत किया जाता है और भगवान शिव जैसा सुहाग पाने की कामनी की जाती है।

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