-कामकाजी महिलाओं के संरक्षण के लिए क्या कर रहा छत्तीसगढ़ शासन का संचालनालय ?
-बालक और बालिकाओं के सुरक्षा एवं उत्पीड़न मामले में विभागीय कार्य व्यवहार कैसा है ?
-संरक्षण एवं सुरक्षा सुनिश्चित करवाने वाले अधिनियमों की अनुपालन स्थिति क्या है ?
पूरब टाइम्स , रायपुर . छत्तीसगढ़ का महिला एवं बाल विकास विभाग, पिछले सालों अपने लचर अनुशासन व कार्यशैली के कारण बहुत अधिक बदनाम हो गया है . महिला सुरक्षा के लिये , ज़्यादातर सरकारी विभागों नियमानुसार आंतरिक सुरक्षा कमेटी का ना होना इसका जीता जागता प्रमाण है . ऐसा लगता है कि उनके कार्य को अनेक सामजिक संस्थाएं ज़ोर शोर से कर , महिलाओं की सुरक्षा के लिये विधिवत विभागों को नोटिस देकर उन्हें आंतरिक सुरक्षा समिति बनाने मजबूर कर रही हैं. ऐसा लगता है कि छ.ग. की महिला एवं बाल विकास का मूल काम सरकारी योजनाओं के तहत पैसों का खर्च करना रह गया है . हित ग्राहियों का सामाजिक अंकेषण से लेकर , विभागीय खर्च की उपयुक्तता का संपरीक्षण भी पारदर्शिता के अभाव में संदिग्ध है . पुराने मिड डे मील्स के लंबित भ्रष्टाचार के मामलों के , विभागीय जांचों में पाये गये दोषी अधिकारियों पर कार्यवाही ना होने अलावा बाल विकासगृह में पाई जाने वाली अनियमितताओं पर कार्यवाही को ठंडे बस्ते में डालने से इस विभाग के बारे में आम जनता में क्रोध व आक्रोश बढ़ने लगा है , अब देखने वाली बात यह होगी कि अखबार में आने के बाद उच्चाधिकारी व शासन इन मामलों को गम्भीरता से लेता है या नहीं . पूरब टाइम्स की यह रिपोर्ट ..
क्या भगवान भरोसे ही है कामकाजी महिलाओं के कार्यस्थल का व्यवहारिक सुरक्षा तंत्र ?
छत्तीसगढ़ की कामकाजी महिलाओं को उनके कार्यस्थल पर सुरक्षा देने के लिए शासन ने अधिनियम और नियम बनाएं है छत्तीसगढ़ महिला बाल विकास विभाग इस अधिनियम के कार्यान्वयन के तहत महिला सुरक्षा के लिए आंतरिक शिकायत समिति नहीं बनने वालों को 50000 रू से दंडित करने की वैधानिक सक्षमता भी रखता है लेकिन विडंबना यह है की महिला बाल विकास विभाग में जो आंतरिक शिकायत समिति गठित की गई है उसका कार्यवाही विवरण और वार्षिक प्रतिवेदन इस समय किसके पास है इसका उत्तर संचालक महोदय कब बतायेंगी इसका सभी को इंतजार है ।
बालकों के लिए आवश्यक विधि निर्देशित सुरक्षा व्यवस्था का हालचाल पूछने वाला कौन है ?
बच्चों को विशेष संरक्षण की आवश्यकता होती है क्योंकि बच्चे शारीरिक रूप से नाजुक तथा कमजोर होते हैं व मानसिक रूप से अनुभहीन होते है बच्चो पर शारीरिक और मानसिक दबाव बनाना आसान होता है इसलिए उन्हें डरा धमकाकर बाल श्रम में लगाया जा सकता है, उनके मर्जी के बगैर उनकी जल्दी शादी हो सकती है, उनका यौन शोषण हो सकता है, उन्हें पारिवारिक देखरेख से वंचित रखा जा सकता है, बच्चे विवाद की स्थिति में फंस सकते हैं, प्राकृतिक आपदा के शिकार हो सकते हैं, हर स्थिति में बच्चे ज्यादा असुरक्षित होते है इसलिए शासन ने बच्चों की सुरक्षा के लिए विशेष कानून बनाकर महिला बाल विकास विभाग को इन कानूनों का कार्यान्वयन करने का जिम्मा सौंपा है लेकिन विडंबना यह है संचालक कार्यालय बाल विकास मामले में क्या कर रहा है यह प्रश्न वर्तमान में अनुत्तरित है ।
छत्तीसगढ़ शासन के महिला बाल विकास का निगरानी तंत्र क्यों फाइलों में दफ़न है ?
छत्तीसगढ़ का महिला बाल विकास विभाग के द्वारा शासन मद से एक बड़ी राशि का आहरण कर विभिन्न योजनाओं में खर्च किया जा रहा है लेकिन विडंबना यह है की शासन के वित्तीय व्यवहार का निगरानी करने वाला तंत्र क्या कर रहा है यह खोज का विषय बना हुआ है क्योंकि योजना कार्यान्वयन से संबंधित विभागीय आंकड़े और उनकी अनुश्रवण प्रणाली के संबंध में महिला बाल विकास विभाग पारदर्शिता बरतने की इच्छा रखता नहीं दिखता है उल्लेखनीय है कि विभागीय खर्ची को जानकारी आम जनता को नहीं देना प्रशासकीय अपराध की श्रेणी का विभागीय कृत्य है जिस पर सचिव महिला बाल विकास विभाग द्वारा संज्ञान लिया जाना अपेक्षित है ।
संचालनालय महिला बाला विकास विभाग के गैर जिम्मेदाराना कार्य व्यवहार के कारण शासन की छवि खराब हो रहीं इसलिए समय रहते शासन को अनुश्रवण कार्यवाही सुनिश्चित करनी चाहिए ।
अमोल मालुसरे, सामाजिक कार्यकर्ता एवं राजनीतिक विश्लेषक