भाटापारा की शासकीय प्राथमिक शाला नवीन मतादेवालाय की स्थिति आज भी अत्यंत चिंताजनक है, जहां 80 छात्र-छात्राएं अपनी जान को जोखिम में डालकर शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं। इस विद्यालय में न खेलने का मैदान है, न ही छात्र-छात्राएं स्कूल के बाहर खेलने की स्वतंत्रता रखते हैं। खुले बिजली ट्रांसफार्मर और कचरे का ढेर उनके लिए खतरनाक साबित हो रहा है।
1972 में स्थापित इस स्कूल ने कई छात्रों को उच्च पदों तक पहुँचाया है, लेकिन आज यह विद्यालय केवल नाम का रह गया है। मौलिक अधिकारों की बात करें, तो छात्रों को ये अधिकार तो दूर, बुनियादी सुविधाएं भी नहीं मिल रही हैं। शिक्षकों ने उच्च अधिकारियों को बार-बार लिखित शिकायतें भेजी हैं, लेकिन उन पर कोई कार्रवाई नहीं हुई है। प्रशासन का रवैया रसूखदारों के प्रति स्पष्ट रूप से भेदभावपूर्ण है, जबकि स्थानीय नेताओं का इस गंभीर मुद्दे पर ध्यान नहीं है।
स्कूल के सामने की खुली नाली और मुख्य सड़क पर स्थित होने के कारण छात्रों को कई प्रकार की कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है। शिक्षकों का कहना है कि जब ट्रांसफार्मर का निर्माण हुआ, तो उन्होंने तत्कालीन विधायक और एसडीएम से इसकी शिकायत की थी, लेकिन प्रशासनिक ढांचे के कारण उनकी आवाज़ दब गई।
इस पर भाजपा पार्षद पुरसुत्तम यदु ने कहा, “इस वॉर्ड का कांग्रेस पार्षद सफाई पर ध्यान नहीं दे रहा है। मैं अपने वार्ड में सफाई का ध्यान रखता हूं, लेकिन इसे सही करने की जिम्मेदारी संबंधित पार्षद की है।” वहीं, कांग्रेस पार्षद सुशील सबलानी से संपर्क नहीं हो सका, जो इस समस्या का समाधान निकालने में सहायक हो सकते थे।
यह मामला न केवल छात्रों के अधिकारों की सुरक्षा की आवश्यकता को उजागर करता है, बल्कि शिक्षा के क्षेत्र में प्रशासन की नाकामी का भी प्रतीक है। उम्मीद है कि संबंधित अधिकारी इस गंभीर मुद्दे पर ध्यान देंगे और बच्चों को सुरक्षित और सुविधाजनक शिक्षा का अधिकार प्रदान करेंगे।