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पुनर्जन्म सच्चाई या मान्यता

पुनर्जन्म सच्चाई या मान्यता…….

newsid 867एक अवधारणा है कि आदमी जब मरता है तो उसकी आत्मा उसमे से बाहर निकल जाती है और इस ज़िन्दगी के कर्मो के अनुसार उसको दूसरा शरीर मिलता है। अलग-अलग धर्मो और सम्प्रदायों में इस बात के लिए अलग-अलग सोच है। कुछ वैज्ञानिक इसे धार्मिक अंधविश्वास मानते हैं तो कुछ वैज्ञानिक इस पर रिसर्च कर रहे हैं। यह एक रहस्य ही है कि मृत्यु के बाद कोई जीवन है क्या? भारत में पुनर्जन्म के बारे में बहुत प्राचीन काल से चर्चा चलती आ रहीं हैं। हिन्दू, जैन, बौद्ध धर्मं के ग्रंथों में इनका उल्लेख पाया जाता है। यह माना जाता है कि आत्मा अमर होती है और जिस तरह इंसान अपने कपडे बदलता है उसी तरह वह शरीर बदलती है। मनुष्य को अगले जन्म अच्छी या खराब जगह जन्म पिछले जीवन के पुण्य या पाप कि वजह से मिलता है। पश्चिमी देशों में भी कुछ जगहों पर इन धारणाओं को माना जाता है। प्रसिद्द दार्शनिक सुकरात, प्लेटो और पैथागोरस भी पुनर्जन्म पर विश्वास करते थे। क्रिशचैनिती, इस्लाम में इसे मान्यता नहीं है परन्तु कुछ इसे व्यक्तिगत विचारों के लिए छोड़ देते है। वैज्ञानिकों में शुरू में इस विषय पर बहुत बहस हुई, कुछ ने इसके पक्ष में दलीलें दीं तो कुछ ने उन्हें झूठा साबित करने कि कोशिश की, कुछ विज्ञानिकों ने कहा यदि यह सच है तो लोग अपने पिछले जन्म की बाते याद क्यों नहीं रखते ? ऐसा कोई भौतिक सबूत नहीं मिलता है जिससे आत्मा का एक शरीर से दूसरे शरीर में जाते हुए साबित किया जा सके इसलिए इसे कानूनी मान्यता भी नहीं प्राप्त है। फिर भी कुछ वैज्ञानिकों ने इस पर रिसर्च किया और कुछ मनोविज्ञानिक पुनर्जन्म को मानकर, इसी आधार पर इलाज कर रहे है। बेरूत में एक छोटे से लड़के ने अपने इक्कीस साल के मैकेनिक होने की बात कही। उसने बताया की उसकी मौत एक बीच रोड पर तेजी से आती कार की टक्कर से हुई थी। बहुत सारे लोगों के सामने उसने ड्राईवर का नाम, एक्सीडेंट की जगह, मैकेनिक के मातापिता का नाम, उसके चचेरे भाई-बहनों और दोस्तों के बारे में बताया। लोगों ने उसकी बताई बातों की विस्तार से खोजबीन की और पाया कि सूक्ष्मतम विवरण सही हैं जबकि वह मैकेनिक उस लड़के के पैदा होने के कई साल पहले ही मर गया था। वैज्ञानिक स्टीवन्सन ने इस घटना का गहराई से अध्ययन किया। उसने लड़के की बातचीत से लेकर अन्य सभी बातों के सिलसिलेवार दस्तावेज बनाये। उसने लड़के के जन्म चिन्ह, घावों और कटने के निशान इत्यादि को मृतक के रिकॉर्ड से मिलाया और पाया की वे एकदम एक से है। उस वैज्ञानिक ने चालीस साल तक ऐसी ही घटनाओं का अध्ययन किया और उनपर किताब भी लिखी। भारत में भी ऐसे बहुत से उदाहरण मिलते हैं जिनसे आत्मा, पुनर्जन्म और साथी आत्मा (soulmate) के बारे में जानकारी मिलती हैं। उनके बारे में आगामी अंकों में लिखूंगा।
इंजी. मधुर चितलांग्या ,
संपादक , दैनिक पूरब टाइम्स

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