छतरपुर – मध्य प्रदेश के छतरपुर जिले के मुड़ेरी गांव में एक अनोखी परंपरा देखने को मिलती है, जहां गांववाले अपने पहाड़ को बचाने के लिए उस पर ‘सीताराम’ और ‘राम-राम’ लिखते हैं। यह परंपरा वर्षों से चली आ रही है, और लोग इसे अपनी आस्था और पर्यावरण संरक्षण से जोड़कर देखते हैं।
कैसे शुरू हुई यह अनूठी पहल?
गांव के पुजारी रामकरण शुक्ला के अनुसार, पहले लोग इस पहाड़ के आसपास गंदगी किया करते थे। चूंकि पहाड़ की ऊंचाई पर देवी-देवताओं के मंदिर भी हैं, इसलिए ग्रामीणों ने पहाड़ को पवित्र और सुरक्षित रखने के लिए उस पर ‘सीताराम’ लिखने की परंपरा शुरू की।
चमत्कारी पत्थर और पहाड़ से छेड़खानी की सजा!
गांव के बुजुर्गों का मानना है कि इस पहाड़ के पत्थरों को कोई तोड़ नहीं सकता। कुछ साल पहले जब एक बाहरी व्यक्ति ने पहाड़ से पत्थर निकालने की कोशिश की, तो उसकी छेनी उछलकर उसके सिर में लग गई। आज भी वहां उन पत्थरों में छेद बने हुए हैं, जिसे लोग चमत्कार मानते हैं।
हर साल लिखा जाता है ‘सीताराम’
गांव के सरपंच अवध गर्ग बताते हैं कि वे बचपन से देखते आ रहे हैं कि पहाड़ पर राम-राम लिखा जाता है। बरसात में अक्षर मिट जाते हैं, तो ग्रामीण फिर से लिख देते हैं। इस पहाड़ के चारों ओर बस्तियां हैं, इसलिए लोग इसे साफ-सुथरा रखना चाहते हैं। साथ ही, पेड़ों की कटाई, अवैध उत्खनन और पशु-पक्षियों को नुकसान से बचाने के लिए यह परंपरा शुरू की गई थी।
प्राकृतिक धरोहर को बचाने का संदेश
गांव के युवा अभिषेक त्रिपाठी का कहना है कि वह बचपन से इस परंपरा को देख रहे हैं। उन्होंने बताया कि आसपास के इलाकों में तेजी से पहाड़ों का उत्खनन हो रहा है, लेकिन मुड़ेरी गांव के लोग अपने पहाड़ को बचाने के लिए ‘सीताराम’ लिखने की परंपरा निभाते आ रहे हैं।
क्या हमें भी अपने पहाड़ों को बचाने के लिए कुछ करना चाहिए?
मुड़ेरी गांव की यह पहल सिर्फ आस्था ही नहीं, बल्कि पर्यावरण संरक्षण का भी बेहतरीन उदाहरण है। हर गांव को अपने प्राकृतिक संसाधनों की रक्षा करनी चाहिए ताकि आने वाली पीढ़ियां भी इनका लाभ उठा सकें।