अमेरिकन इकोनॉमिक एसोसिएशन जर्नल में प्रकाशित अध्ययन रिपोर्ट आश्चर्यजनक है। इस रिपोर्ट में जो दावा किया गया है, वह बहुत विचित्र है। रिपोर्ट में एक विशिष्ट दवा का भी उल्लेख है। इस दवा ने भारत में गिद्धों की कमी को जन्म दिया। रिपोर्ट में 1950 से वर्तमान काल का जिक्र है। आपको पूरी जानकारी मिलती है।
शिकागो विश्वविद्यालय की एक रिपोर्ट अमेरिकन इकोनॉमिक एसोसिएशन जर्नल में छपी है। जिसमें कहा गया है कि 1990 से भारत में गिद्धों की संख्या लगातार घटी है। जो पांच लाख लोगों को मार डाला है। BBC ने बताया कि भारत में गिद्धों की बढ़ती संख्या एक समय में एक समस्या बन गई थी। गिद्ध शिकार की तलाश में आसमान में घूमते रहे। जिससे जेट बार-बार गिरे। ये पक्षी विमान के इंजन में गिर गए। लेकिन बाद में एक दवा से इनकी आबादी तेजी से कम हो गई। भारत में यह दवा बीमार गायों के इलाज में काम आती थी। गिद्धों को किडनी फेल जैसी समस्याएं होती हैं जब वे मरने के बाद खुले में फेंके गए गायों के शव खाते हैं।
डाइक्लोफेनाक, या पेन किलर, एक सस्ता नॉन स्टेरॉयड इलाज था। जो गिद्धों की मौत का कारण बन गया। 2006 में इस दवा को बैन कर दिया गया था। इस दवा ने भारत में तीन गिद्ध प्रजातियों को 91 से 98 प्रतिशत तक नुकसान पहुँचाया। गिद्धों की कमी से संक्रमण और बैक्टीरिया फैलते हैं, जैसा कि एक अध्ययन ने दिखाया है।
इन बीमारियों से 5 लाख लोग 5 साल में मारे गए। शिकागो विश्वविद्यालय के हैरिस स्कूल ऑफ़ पब्लिक पॉलिसी के सहायक प्रोफेसर इयाल फ्रैंक की स्टडी रिपोर्ट चौंकाने वाली है। फ्रैंक के अनुसार गिद्ध पर्यावरण को साफ करने में भूमिका निभाते हैं। अगर गिद्धों की तादाद नहीं घटती तो इन लोगों की जान बच जाती। गिद्ध हमारे पारिस्थितिक तंत्र में अहम भूमिका निभाते हैं। फ्रैंक और उनकी टीम ने भारत के कई इलाकों को लेकर स्टडी की है। जहां गिद्धों के पतन से पहले और बाद में मानव मृत्यु दर को लेकर रिपोर्ट तैयार की गई है। गिद्धों की कमी से मौत का आंकड़ा 4 फीसदी तक अधिक रिकॉर्ड किया गया है। रैबीज वैक्सीन की बिक्री, कुत्तों की तादाद और जल आपूर्ति के आंकड़े भी रिपोर्ट तैयार करने में लिए गए हैं।
कुत्तों की तादाद बढ़ी, रैबीज के मरीज बढ़े
शोधकर्ताओं के अनुसार भारत में पशुधन आबादी वाले इलाकों में खुले में अधिक शव फेंके जाते थे। 2000 से लेकर 2005 के बीच ही गिद्धों की तादाद घटने के कारण हर साल एक लाख ज्यादा मौतें हुई हैं। परिणामस्वरूप 53 बिलियन पाउंड (57,11,46,53,83,400 रुपये) का आर्थिक नुकसान गिद्धों की कमी से हुआ। गिद्धों के बिना कुत्तों की तादाद में जबरदस्त इजाफा हुआ। रैबीज फैला और मानव पर इसका सीधा असर देखने को मिला। पानी में भी बैक्टीरिया इसी वजह से फैला। भारत में साधारण गिद्ध, सफेद पूंछ वाले गिद्ध, लाल सिर वाले गिद्ध की 2000 के दशक की शुरुआत में क्रमशः 98, 91 और 95 फीसदी तादाद घटी।