लोगों का तर्क होता है कि हम केवल एक-दो घंटे ही मोबाइल इस्तेमाल करते हैं, उससे क्या होता है? शोध साबित कर सकते हैं कि दिल को ख़ुश कर देने वाले डोपामाइन की तलाश में चंद सेकंड्स के वीडियो देखने की इच्छा, तेज़ी से लत में बदली है। और अब तो दो-दो स्क्रींस एक साथ देखने लगे हैं। टीवी भी चल रहा होता है और हाथ में मोबाइल पर भी कुछ देख रहे होते हैं। दोनों की आवाज़ें, दोनों की चमक कान और आंखों पर ही नहीं, दिमाग़ पर भी बहुत भारी पड़ती है। यह स्थिति साबित करती है कि ध्यान केंद्रित करने की क्षमता लगातार कम होती जा रही है।
ध्यान की कमी-यह पिछले कुछ सालों से एक मुख्य मानसिक शिकायत के रूप में उभर रही है, चाहे वो बच्चे हों, वयस्क या बुज़ुर्ग। इसका सीधा ताल्लुक़ हमारे स्मार्टफोन के इस्तेमाल से है। जो व्यक्ति जितना अधिक स्मार्टफोन या अन्य स्क्रींस जैसे लैपटॉप, टैबलेट, कंप्यूटर, टी.वी. पर लगातार बने रहते हैं, उनमें कई मानसिक एवं शारीरिक दिक्कतें सामने आ रही हैं।
ना सो पाते हैं, ना कुछ याद रहता है-मनोवैज्ञानिक शोध बता रहे हैं कि स्मार्टफोन के अत्यधिक उपयोग से हमारी याददाश्त में कमी आ रही है। कई लोग ठीक से सो पाने में असमर्थ हैं। गफ़लत की मनोदशा बता रहे हैं। इसके अलावा आंखों, पीठ व गर्दन में दर्द, नींद की कमी, अवसाद, अकेलापन, चिड़चिड़ापन इत्यादि भी स्मार्टफोन की लत लग जाने की वजह से हो रहे हैं।
फिर भी इनकार है…?-मज़े की बात यह है कि इन सब लक्षणों को बर्दाश्त करने के बावजूद हममें से कोई भी स्मार्टफोन के इस्तेमाल को कम या नियंत्रित करने के लिए तैयार नहीं हैं। आप चाहे जिससे पूछ कर देख लीजिए, वो यही कहेंगे कि ‘हमारा तो सारा काम ही फोन पर है, बच्चे कहेंगे, ‘हम तो इसी से पढ़ाई करते हैं’ और गृहिणियां कहेंगी, ‘सारा दिन तो काम में ही चला जाता है, टाइम ही कहां मिलता है मुझे फोन चलाने का? यह बिल्कुल ऐसी ही बात है जैसे शराब या सिगरेट पीने वालों को जब हम इसके नुक़सान के बारे में समझाना चाहते हैं तो वो कई तरह की दलीलें देते हैं। मनोविज्ञान की भाषा में इसे ‘संज्ञानात्मक मतभेद’ या ‘Cognitive Dissonance’ कहते हैं। ऐसा ही कुछ स्मार्टफोन के संदर्भ में देखने को मिल रहा है।
अस्थिर मन का तथ्य डराता है- आने वाले समय में मनुष्य के ध्यान की अवधि घटकर 15 सेकंड ही रह जाने की आशंका एक गंभीर स्थिति हो सकती है। सोचिए ऐसे अस्थिर मन के कितने भयावह परिणाम होंगे। प्लेन उड़ाते हुए, गाड़ी चलाते हुए, फैक्ट्री में किसी मशीन को चलाते हुए, अगर मनुष्य के मस्तिष्क की ध्यान लगाने की क्षमता इतनी क्षीण हो जाएगी तो कितनी भयंकर दुर्घटनाएं हो सकती हैं। रोज़मर्रा के कामकाजों में कैसी बाधाएं उत्पन्न होने लगेंगी।
स्मार्टफोन की लत से होने वाले दुष्परिणामों को इससे ज़्यादा नजऱअंदाज़ करने की स्थिति में हम नहीं हैं। अभी भी हम सजग होकर कुछ कारगर उपायों की मदद से अपने मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य को बचा सकते हैं।
पहले हम यह जांचें कि हमारा स्मार्टफोन का इस्तेमाल निम्नलिखित किस श्रेणी में आ रहा है।
इस्तेमाल ज़रूरत पडऩे पर फोन को बात करने के लिए, संदेश भेजने के लिए, जानकारी प्राप्त करने या पढऩे जैसे ज़रूरी कामों के लिए समय-समय पर इस्तेमाल करना
ज़रूरत से ज़्यादा इस्तेमाल जो काम स्मार्टफोन के बिना भी हो सकते हैं उनके लिए भी स्मार्टफोन का इस्तेमाल करना जैसे कि किताब पढऩा।
स्मार्टफोन पर आश्रित हो जाना काम न होने पर भी स्मार्टफोन को बार-बार देखना, सोशल मीडिया चेक करना, स्मार्टफोन को अपने से दूर करने में असुविधा महसूस करना, रात में भी स्मार्टफोन को पास रख कर सोना।
स्मार्टफोन की लत होना ज़्यादातर समय स्मार्टफोन पर लगे रहना, निरंतर वीडियो को स्क्रॉल करना, ज़रूरी काम ना कर पाना, पूरी तरह से स्मार्टफोन की दुनिया में मशगूल रहना, किसी के टोकने पर ग़ुस्सा हो जाना, फोन के अलावा कहीं और मन नहीं लगना, किसी से बात करने में कोई दिलचस्पी नहीं रहना, रात-रात भर फोन में वीडियो देखते रहना, शारीरिक और मानसिक कष्ट के चलते भी फोन को नहीं छोड़ पाना, फोन को मनोरंजन के साधन के रूप में इस्तेमाल करना।