छत्तीसगढ़ के कोरबा जिला मुख्यालय से लगभग ३० किलोमीटर दूर ग्राम दुधीटांगर में एक गुफा मिली है। पत्थरों पर उकेरे गए 45 से अधिक शैलचित्र इसमें हैं। इन चित्रों में हिरण, सांभर, श्वान, बकरी, तेंदुआ, सियार, पदचिन्ह और मानवाकृति के चित्र भी हैं।
कुछ दिन पहले, जिला पुरातत्व संग्रहालय के मार्गदर्शक हरि सिंह क्षत्री ने स्थानीय ग्रामीणों की मदद से गुफा की खोज की थी। क्षत्री कहते हैं कि यह गुफा ताम्रपाषाण युग की है। उनका कहना था कि वे एक वीडियो कॉल के माध्यम से पुरातत्वविद पद्मश्री से सम्मानित केके मोहम्मद, कर्नाटक के पुरातत्वविद रवि कोरीसेट्टार, वाकणकर शोध संस्थान उज्जैन के पदाधिकारी व पुरातात्विक जानकार विनीता देशपांडे और स्थापत्य कला विशेषज्ञ इंद्रनील बंकापुरे कोल्हापुर को इसकी जानकारी दी है। के.के. मोहम्मद ने शैल चित्रों को देखकर अनुमान लगाया कि चित्र ताम्रपाषाण युग के हो सकते हैं। जो 4000 साल पुराने हैं
कोरबा में यह तीसरी गुफा
शैल चित्रों का विकास मानव सभ्यता के इतिहास से जुड़ा है। पूर्व में मानव अपनी भावनाओं को व्यक्त करने के लिए शैल या चट्टानों पर चित्र उकेरता था। तब उसके पास लिखने के लिए कोई लिपि नहीं थी। कोरबा में खोज की गई यह तीसरी गुफा है। संभावना है कि इस गुफा में आदि मानव रहता था। इसके पहले इसी प्रकार की गुफा अरेतला के जंगल में मिली थी।
आदि मानव के निशान का दावा
कोरबा जिले में आदिमानवों के अनेक ठिकानों को खोजने का दावा पूर्व में हरि सिंह कर चुके हैं। इसमें 25 चित्रित शैलाश्रयों के अलावा अचित्रित शैलाश्रयों की खोज शामिल है। कोरबा में पाषाणकाल के उपकरण भी पूर्व में मिले हैं, जिन्हें जिला पुरातत्व संग्रहालय में रखा गया है।