नमस्कार , कई हफ्तों में मैंने मज़ेदार शायरिया , जोश भर देने वाली व मंच संचालन के वक़्त बोली जा
सकने वाली शायरियों के संकलन को आपके सामने प्रस्तुत किया था . फिर हिन्दी के प्रख्यात लेखक दुष्यंत कुमार के कुछ खास व प्रसिद्ध पद्यांश आपके समक्ष प्रस्तुत किये, जिनका बहुधा भाषणों में प्रयोग किया जाता है . पिछली बार की तरह इस बार भी जुली शायरियं जो कि महफिलों में सहजता से बोली- सुनी जाती हैं. पेश ए
खिदमत है …..
आगाह अपनी मौत से कोई बशर नहीं
आगाह अपनी मौत से कोई बशर नहीं
सामान सौ बरस का है पल की ख़बर नहीं
अब के हम बिछड़े तो शायद कभी ख़्वाबों में मिलें
अब के हम बिछड़े तो शायद कभी ख़्वाबों में मिलें
जिस तरह सूखे हुए फूल किताबों में मिलें
अच्छा ख़ासा बैठे बैठे गुम हो जाता हूँ
अच्छा ख़ासा बैठे बैठे गुम हो जाता हूँ
अब मैं अक्सर मैं नहीं रहता तुम हो जाता हूँ
ऐ मोहब्बत तेरे अंजाम पे रोना आया
ऐ मोहब्बत तेरे अंजाम पे रोना आया
जाने क्यूँ आज तेरे नाम पे रोना आया
अंदाज़ अपना देखते हैं आईने में वो
अंदाज़ अपना देखते हैं आईने में वो
और ये भी देखते हैं कोई देखता न हो
अंगड़ाई भी वो लेने न पाए उठा के हाथ
अंगड़ाई भी वो लेने न पाए उठा के हाथ
देखा जो मुझ को छोड़ दिए मुस्कुरा के हाथ
अपने चेहरे से जो ज़ाहिर है छुपाएँ कैसे
अपने चेहरे से जो ज़ाहिर है छुपाएँ कैसे
तेरी मर्ज़ी के मुताबिक़ नज़र आएँ कैसे
बात उल्टी वो समझते हैं जो कुछ कहता हूँ
बात उल्टी वो समझते हैं जो कुछ कहता हूँ
अब की पूछा तो ये कह दूँगा कि हाल अच्छा है
बड़े लोगों से मिलने में हमेशा फ़ासला रखना
बड़े लोगों से मिलने में हमेशा फ़ासला रखना
जहाँ दरिया समुंदर से मिला दरिया नहीं रहता
भाँप ही लेंगे इशारा सरे महफ़िल जो किया
भाँप ही लेंगे इशारा सरे महफ़िल जो किया
ताड़ने वाले क़यामत की नज़र रखते हैं
दिल के फफोले जल उठे सीने के दाग़ से
दिल के फफोले जल उठे सीने के दाग़ से
इस घर को आग लग गई घर के चराग़ से
साथियों , अगले हफ्ते फिर किसी अलग मिजाज़ पर शायरी का संकलन प्रस्तुत करुंगा . नमस्कार …
इंजी. मधुर चितलांग्या , प्रधान संपादक
दैनिक पूरब टाइम्स