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Sunday, April 13, 2025
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मुसलमानों से जुड़ा बिल, नीतीश-नायडू ने भी निभाई यारी…गठबंधन के पहले टेस्ट में पास हुई मोदी सरकार

मोदी सरकार ने वक्फ संशोधन विधेयक 2025 को संसद में पारित करा लिया है. लोकसभा और राज्यसभा में विपक्ष के विरोध के बावजूद, सरकार को अपने सहयोगी दलों का समर्थन मिला. मुस्लिम समुदाय जुड़े इस विधेयक में नीतीश-नायडू का गठबंधन पास हो गया है, लेकिन क्या वाकई में इसे पास कराना सरकार के लिए इतना ही आसान था इसके बारे में जानते हैं.
मोदी सरकार वक्फ संशोधन बिल की परीक्षा में पास हो गई. लोकसभा के बाद राज्यसभा से भी वक्फ बिल पास हो गया. लोकसभा में बिल के पक्ष में 288 वोट पड़े जबकि विरोध में 232 वोट पड़े. इसी तरह राज्सभा में बिल के पक्ष में 128 वोट पड़े, जबकि 95 सदस्यों ने विरोध में वोट दिया. विपक्षी दलों के विरोध के बावजूद बिल को संसद की मंजूरी मिल गई.

अब राष्ट्रपति की मंजूरी मिलते ही यह कानून की शक्ल ले लेगा. इस तरह वक्फ बिल के बहाने मोदी सरकार ने अपने सियासी एजेंडे को अमलीजामा पहनाने के साथ-साथ गठबंधन के परीक्षण को पास कर विपक्ष को करार जवाब दिया है.

सरकार के लिए आसान नहीं था बिल को पेश कराना

वक्फ संसोधन बिल 2025 को संसद से पास कराना मोदी सरकार के लिए आसान नहीं था, क्योंकि बीजेपी के पास बहुमत का नंबर नहीं था. ऐसे में बिल पास कराने की बड़ी अड़चन थी. मुस्लिमों से जुड़ा बिल होने के चलते मिल्ली तंजीमों और विपक्षी दलों ने बीजेपी के अगुवाई वाले एनडीए के सहयोगी दलों पर दबाव बनाने की कवायद सड़क से संसद तक की. लेकिन नीतीश कुमार, चंद्रबाबू नायडू, चिराग पासवान और जयंत चौधरी टस से मस नहीं हुए.

बीजेपी के सहयोगी दलों ने मुस्लिम वोटबैंक की परवाह किए बगैर वक्फ संशोधन बिल पर मोदी सरकार के साथ मजबूती से खड़ी रही. इस तरह मोदी सरकार ने सहयोगियों के सहारे ही वक्फ संसोधन बिल को पास कराकर साबित कर दिया है कि बहुमत का आंकड़ा भले ही उसके पास न हो, लेकिन अपने तेवर के साथ काम करेगी. गठबंधन के दम पर भी बीजेपी अपने एजेंडे को जमीन पर उतारने का दम रखती है. यही नहीं वक्फ बिल को पास कराकर उन्हें भी जवाब दे दिया है, जो यह कहते रहे हैं कि नरेंद्र मोदी को गठबंधन सरकार चलाने का अनुभव नहीं है?

मोदी सरकार का फ्लोर मैनेजमेंट

मोदी सरकार के पहले और दूसरे यानी दस साल के कार्यकाल में सत्ता में किसी की भागीदारी नहीं थी. 2024 में बीजेपी को 240 सीटों पर जीत मिली हैं और बहुमत के लिए 272 का आंकड़ा चाहिए होता है. चंद्रबाबू नायडू की तेलगू देशम पार्टी और नीतीश कुमार की जेडीयू ने मिल कर 28 सीटें जीती हैं और एनडीए को बहुमत के आंकड़े तक ले गई. नरेंद्र मोदी तीसरी बार सहयोगी दलों के सहारे सत्ता के सिंहासन तक पहुंचे हैं, जिसके लिए चंद्रबाबू नायडू और नीतीश कुमार के साथ सियासी बैलेंस बनाकर चलना भी आसान नहीं होगा.

बैसाखी के सहारे बनी मोदी सरकार को लेकर राजनीतिक विश्लेषक भी कहते रहे हैं कि नरेंद्र मोदी को गठबंधन मॉडल पर सरकार चलाने का जीवन में कोई अनुभव ही नहीं है. 2002 से 2024 तक तीन बार मुख्यमंत्री रहते और दो बार प्रधानमंत्री थे उन्होंने एकछत्र राज किया, क्योंकि बीजेपी को अपने दम पर बहुमत मिल रहा था, लेकिन इस बार किसी तरह एनडीए को मिला है. उनके पास अब सहयोगी के साथ तालमेल और सहमति बनाकर सरकार चलाना एक चुनौती होगी.

नरेंद्र मोदी के लिए गठबंधन की स्थिति बहुत सहज नहीं रहने वाली, बतौर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपने पहले दो कार्यकाल में काफी मजबूत स्थिति में थे. कहा जा रहा था कि गठबंधन की मजबूरी में पीएम मोदी को अपने सियासी एजेंडे को किनारे रखना पड़ सकता है. ऐसे में मुसलमानों से जुड़े वक्फ संशोधन बिल पर जिस तरह से अपने सहयोगी दलों का विश्वास जीतने में बीजेपी कामयाब रही है, उससे साबित कर दिया है कि पीएम मोदी को गठबंधन की सरकार चलाने और अपने एजेंडे को अमलीजामा पहनाने का भी हुनर आता है.

विपक्ष को मोदी का करार जवाब

मोदी सरकार ने वक्फ संशोधन बिल की परीक्षा ही नहीं पास की बल्कि अपने सहयोगी दलों की दोस्ती का भी परीक्षण ले लिया है. नरेंद्र मोदी की उम्मीदों पर नीतीश कुमार से लेकर चंद्रबाबू नायडू, चिराग पासवान, जयंत चौधरी और जीतनराम मांझी पूरी तरह से खरे उतरे हैं. वक्फ बिल पर बीजेपी के सहयोगी दलों के नेताओं ने सिर्फ मोदी सरकार का साथ ही नहीं दिया, बल्कि वक्फ बिल के समर्थन में ऐसी-ऐसी बातें कहीं, जो विपक्ष को चुभने वाली थीं. इससे पहले जब मुस्लिमों से जुड़े मुद्दों पर बात आती तो हमेशा ही जेडीयू और टीडीपी या फिर यहां तक कि चिराग पासवान की एलजेपी (आर) भी खुलकर बीजेपी से अलग राय रखती थी.

सियासी के जानकारों की मानें तो वक्फ बिल का असर धारा 270, ट्रिपल तलाक वाले मुद्दे से ज्यादा है, क्योंकि यह सीधे मुस्लिमों की संपत्तियों से जुड़ा मसला है. ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (AIMPLB) समेत कई मुस्लिम संगठन मुसलमानों को चेता रहे थे कि इससे सरकार वक्फ की जमीनों को छीन लेगी. सरकार का दखल बढ़ेगा. ऐसे में उन्हें भरोसा था कि नीतीश कुमार और चंद्रबाबू नायडू वक्फ बिल को पास होने से रोक देंगे, लेकिन मोदी सरकार के फ्लोर मैनेजमेंट के चलते वक्फ बिल को लेकर कोई भी अड़चन नहीं आ सकी. एनडीए की सभी पार्टियों ने खुलकर वक्फ संशोधन बिल का समर्थन दिया, जिसके चलते मोदी सरकार आसानी से पास कराने में कामयाब रही.

मोदी सरकार ने कैसे जीता विश्वास?

चंद्रबाबू नायडू की टीडीपी से लेकर नीतीश कुमार की जेडीयू, जयंत चौधरी की आरएलडी और चिराग पासवान की एलजेपी जैसी धर्मनिरपेक्ष पार्टियों द्वारा विवादास्पद वक्फ संशोधन विधेयक का समर्थन हासिल कर सियासी हलचल मचा दी. परंपरागत रूप से टीडीपी, जेडीयू और आरएलडी जो मुस्लिम समर्थन पर बहुत ज्यादा निर्भर है. मुस्लिमों से जुड़े मुद्दों पर बीजेपी अलग रुख अपनाए रखती थी. वक्फ विधेयक को पेश करने से पहले मोदी सरकार ने अपने सभी सहयोगी दलों को बिल के महत्व को बताया.

चिराग पासवान की एलजेपी और जयंत चौधरी की आरएलडी नेताओं से भी सलाह ली, उन्हें इसकी आवश्यकता बताई और इस बात पर जोर दिया कि इसका उद्देश्य मुस्लिम हितों की रक्षा करना और महिलाओं के अधिकारों को सुनिश्चित करना है, न कि समुदायों का ध्रुवीकरण करना जैसा कि विपक्ष आरोप लगा रहा है. बीजेपी ने एक साल के दौरान इस बिल को लेकर अपनी सहयोगी पार्टियों के साथ लगभग एक दर्जन से भी ज्यादा बैठकें की.

बीजेपी ने अपने सहयोगी दलों की राय पर भी वक्फ बिल को जेपीसी को भेजने का फैसला किया था, जिसमें 14 संशोधनों को स्वीकार कर लिया. इनमें जेडीयू और टीडीपी के सुझाव भी शामिल थे. वक्फ बिल को पास कराने के लिए संसद में पेश किया गया तो बीजेपी ही नहीं बल्कि उसके सहयोगी दलों के नेताओं ने विधेयक का समर्थन किया है और कहा है कि यह मुस्लिम महिलाओं और हाशिए पर पड़े समुदायों के हितों से जुड़ा है.

लोकसभा में बहस के दौरान ललन सिंह ने विधेयक का जोरदार समर्थन किया तो राज्यसभा में संजय झा खुलकर खड़े नजर आए. उन्होंने इस बात को खारिज कर दिया कि यह मुस्लिम हितों के खिलाफ है. जेडीयू के दोनों ही नेताओं ने बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की ओर से मुसलमानों के कल्याण के लिए उठाए गए कदमों पर प्रकाश डाला और आगामी बिहार चुनावों के मद्देनजर कई बार उनका जिक्र किया. इसी तरह से टीडीपी के केपी तेनेटी ने इस बात पर जोर दिया कि आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू ने मुसलमानों के लाभ के लिए कई फैसले लिए हैं. टीडीपी ने मुस्लिम महिलाओं, युवाओं और हाशिए पर पड़े समुदायों के हितों पर ध्यान केंद्रित करते हुए विधेयक का समर्थन किया.

मुस्लिम वोटबैंक का क्या डर खत्म?

बीजेपी भले ही मुस्लिम वोटों की परवाह न करे, लेकिन टीडीपी, जेडीयू, आरएलडी और चिराग पासवान की एलजेपी को मुस्लिम वोटों की दरकार रहती है. बिहार में मुस्लिम 17 फीसदी, आंध्र प्रदेश में 9 फीसदी और यूपी में 22 फीसदी आबादी मुस्लिमों की है. इन तीनों राज्यों में मुस्लिम वोट चुनावी नतीजों को प्रभावित कर सकते हैं. वक्फ बिल के विरोध में मुस्लिम संगठनों ने नीतीश कुमार से लेकर चंद्रबाबू नायडू, चिराग पासवान और जयंत चौधरी सहित एनडीए के उन सहयोगी दलों को निशाने पर ले लिया है, जो मुस्लिम सियासत करते हैं.

रमजान के महीने में मुस्लिम संगठन ने बीजेपी के सहयोगी दलों की रोजा इफ्तार पार्टी का बॉयकाट तक करके दबाव बनाने की कोशिश की. इसके अलावा बिहार और आंध्र प्रदेश में बड़ी जनसभाएं करके भी प्रेशर पॉलिटिक्स करने की स्ट्रैटेजी अपनाई. इसके बाद भी बीजेपी के सहयोगी दलों ने बिल का समर्थन किया. इस तरह मुस्लिम वोटों की परवाह किए बगैर जिस तरह से नीतीश कुमार से लेकर चंद्रबाबू नायडू ने वक्फ बिल पर मोदी सरकार का साथ दिया है, वो बीजेपी की बड़ी सफलता है.

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