हिमाचल प्रदेश में मंदिरों और धार्मिक ट्रस्टों की धनराशि को सरकारी खजाने में जमा करने के सरकार के निर्णय पर घमासान तेज हो गया है। प्रदेश के नेता प्रतिपक्ष और पूर्व मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने इस फैसले की कड़ी आलोचना करते हुए इसे सनातन धर्म विरोधी करार दिया। उन्होंने सरकार पर आरोप लगाया कि वह मंदिरों की धनराशि का उपयोग अपनी योजनाओं को चलाने के लिए कर रही है, जो न केवल नीतिगत रूप से गलत है, बल्कि जनता की धार्मिक भावनाओं से भी खिलवाड़ है।
भाजपा ने खोला मोर्चा, जनता से किया विरोध का आह्वान
भाजपा ने इस फैसले के खिलाफ मोर्चा खोलते हुए आम जनता से भी इस मुद्दे पर आवाज उठाने की अपील की है। जयराम ठाकुर ने सोशल मीडिया पर एक वीडियो पोस्ट कर सरकार को आड़े हाथों लिया और आरोप लगाया कि कांग्रेस सरकार मंदिरों की संपत्तियों का उपयोग अपने ‘सुखाश्रय योजना’ और ‘सुख शिक्षा योजना’ जैसी फ्लैगशिप योजनाओं को वित्तीय सहायता देने के लिए कर रही है।
“पहली बार मंदिरों के धन का उपयोग सरकार की योजनाओं के लिए” – जयराम ठाकुर
पूर्व मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने कहा कि प्रदेश में कुल 36 मंदिर सरकार के नियंत्रण में आते हैं, और सरकार इन मंदिरों से धनराशि प्राप्त करने के लिए बार-बार दबाव बना रही है। उन्होंने कहा कि आपदा के समय सरकार द्वारा इस तरह के धन का उपयोग फिर भी समझ में आता है, जैसा कि कोविड-19 महामारी या प्राकृतिक आपदाओं के दौरान किया गया था। लेकिन इस बार, सरकार मंदिरों की धनराशि को अपनी नियमित योजनाओं के संचालन के लिए उपयोग करना चाहती है, जो पूरी तरह गलत है।
“सनातन धर्म का विरोध करने वाली सरकार मंदिरों की धनराशि पर क्यों निर्भर?”
जयराम ठाकुर ने सरकार पर सनातन धर्म विरोधी मानसिकता रखने का आरोप लगाया। उन्होंने कहा कि कांग्रेस सरकार एक तरफ हिंदू परंपराओं की आलोचना करती है, और दूसरी तरफ मंदिरों के धन से अपनी योजनाओं को संचालित करना चाहती है। उन्होंने मुख्यमंत्री के उस बयान का भी उल्लेख किया, जिसमें कहा गया था कि “90% हिंदू आबादी वाले राज्य में हमने हिंदूवादी पार्टी को हराया।” ठाकुर ने इसे सरकार की विरोधाभासी नीति बताया।
विधानसभा और सड़कों पर होगा भाजपा का विरोध
भाजपा ने घोषणा की है कि वह इस फैसले का विधानसभा के भीतर और बाहर पुरजोर विरोध करेगी। जयराम ठाकुर ने कहा कि इस मुद्दे को आगामी बजट सत्र में जोरशोर से उठाया जाएगा और सरकार को इस निर्णय को वापस लेने के लिए मजबूर किया जाएगा।
उन्होंने धार्मिक ट्रस्टों, मंदिर समितियों और आम जनता से भी अपील की कि वे इस फैसले के खिलाफ एकजुट होकर आवाज उठाएं। उन्होंने कहा कि सरकार के पास कर्मचारियों के वेतन और पेंशन देने के लिए धन नहीं है, लेकिन इसके बावजूद नई योजनाओं के लिए मंदिरों का धन इस्तेमाल करना चाहती है।
क्या सरकार अपने फैसले पर पुनर्विचार करेगी?
इस विवाद के चलते अब सभी की नजरें सरकार पर टिकी हैं। क्या सरकार अपने इस फैसले को वापस लेगी या भाजपा और जनता के विरोध के बावजूद अपनी योजना को आगे बढ़ाएगी? यह देखना दिलचस्प होगा कि बजट सत्र में इस मुद्दे पर सरकार और विपक्ष के बीच किस तरह की बहस होती है।