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रैयतवाड़ी व्यवस्था का श्रेय किसे ? जानिए इतिहास

रैयतवाड़ी व्यवस्था भारतीय कृषि में एक महत्वपूर्ण भूमि व्यवस्था थी, जिसका श्रेय मुख्यतः जॉन श्रॉफ्टन (John Shroft) को जाता है। यह व्यवस्था 19वीं शताब्दी में ब्रिटिश उपनिवेशी शासन के दौरान विकसित हुई। रैयतवाड़ी व्यवस्था का उद्देश्य किसानों को भूमि के स्वामित्व का अधिकार देना और उन्हें सीधे राजस्व भुगतान के लिए उत्तरदायी बनाना था।

इतिहास और विकास

  1. भूमिका:
    • रैयतवाड़ी व्यवस्था का विकास भारतीय कृषि में सुधार लाने के लिए किया गया था। यह व्यवस्था मुख्यतः उन क्षेत्रों में लागू की गई जहाँ पहले zamindari व्यवस्था प्रचलित थी।
    • इसका मुख्य उद्देश्य किसानों को सीधे भूमि के मालिकाना हक देना और उनकी आर्थिक स्थिति में सुधार करना था।
  2. जॉन श्रॉफ्टन का योगदान:
    • जॉन श्रॉफ्टन ने रैयतवाड़ी व्यवस्था को स्थापित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उन्होंने 1820 के दशक में यह व्यवस्था लागू की, विशेषकर महाराष्ट्र और दक्षिण भारत के कुछ क्षेत्रों में।
    • रैयतवाड़ी व्यवस्था के तहत, किसानों को अपनी भूमि पर अधिकार दिया गया और उन्हें सीधे ब्रिटिश शासन को राजस्व का भुगतान करना था।
  3. व्यवस्था की विशेषताएँ:
    • किसान को भूमि का स्वामित्व: रैयतवाड़ी व्यवस्था में किसानों को अपनी भूमि का स्वामित्व दिया गया। इससे किसानों को अपनी फसल की उपज से सीधे लाभ मिलने लगा।
    • राजस्व की सीधी वसूली: इस व्यवस्था में राजस्व की वसूली किसानों से सीधे की जाती थी, जिससे बिचौलियों का प्रभाव कम हो गया।
    • किसानों के अधिकार: किसानों को उनकी भूमि पर अधिक अधिकार मिले, जिससे वे अपनी फसल उत्पादन को बढ़ाने के लिए प्रोत्साहित हुए।
  4. प्रभाव:
    • रैयतवाड़ी व्यवस्था ने भारतीय कृषि को एक नई दिशा दी और किसानों को अधिक स्वतंत्रता और अधिकार प्रदान किए।
    • हालांकि, इस व्यवस्था के तहत किसानों को अनेक कठिनाइयों का सामना भी करना पड़ा, जैसे कि उच्च राजस्व दरें और प्राकृतिक आपदाओं के प्रभाव के कारण आर्थिक संकट।
  5. विकास और परिवर्तन:
    • रैयतवाड़ी व्यवस्था में समय के साथ बदलाव आया। कई स्थानों पर इसे विभिन्न कारणों से बदला गया, लेकिन इसका आधार किसान की भूमि पर अधिकार और सीधे राजस्व भुगतान की व्यवस्था बना रहा।

रैयतवाड़ी और अन्य व्यवस्थाएँ

  • जमींदारी व्यवस्था: इस व्यवस्था के विपरीत, जमींदारी व्यवस्था में जमींदारों को भूमि का मालिक माना जाता था, और वे किसानों से किराया वसूल करते थे। रैयतवाड़ी व्यवस्था में सीधे किसान को भूमि का मालिकाना हक दिया गया।
  • मुकदमा प्रणाली: रैयतवाड़ी व्यवस्था में किसानों को भूमि के स्वामित्व के अधिकार के कारण मुकदमा प्रणाली की आवश्यकता कम हुई।

निष्कर्ष

रैयतवाड़ी व्यवस्था भारतीय कृषि में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर थी। जॉन श्रॉफ्टन के प्रयासों से स्थापित इस व्यवस्था ने किसानों को अधिकार और स्वतंत्रता प्रदान की। हालांकि, इसके साथ कई चुनौतियाँ भी आईं, लेकिन इसने भारतीय कृषि के विकास में महत्वपूर्ण योगदान दिया। रैयतवाड़ी व्यवस्था ने बाद में अन्य कृषि सुधारों के लिए आधार भी तैयार किया।

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