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Sunday, December 8, 2024

वो ख़्वाबों के दिन (भाग -7)

( पिछले 6 अंकों में आपने पढ़ा :  मन में अनेक अरमान लिए एक गांव से शहर पढ़ने आये एक युवा के दिल की धड़कन बढ़ा देती है , एक दिन अचानक , एक बंगले की पहली मंज़िल की खिड़की . वह देखता है वहां पर एक नाज़ुक व बेहद खूबसूरत युवती जोकि उसकी कल्पना से भी ज़्यादा सुंदर होती है . फिर एक दिन उसे महसूस होता है कि उस खिड़की के सैंकड़ों चक्कर बिलकुल बेअसर नहीं हैं . उस युवती के इशारों इशारों में जवाब और आगे फोन पर शुरू हो चुकी बातचीत अब बेहद खूबसूरत अंदाज़ में आगे बढ़ने लगी थी ,  पढ़िये, आगे की दास्तान )

एक प्रेम कहानी अधूरी सी ….

(पिछले रविवार से आगे की दास्तान – 7 )

सुबह फिर मुझे चौक के उसी कोने से उसकी खिड़की को ताकते देख कर वह खिलखिला कर हंस पड़ी. मैंने भी अपने बालों को सहलाते हुए उसे सलाम ठोक दिया . वह जान बूझकर अंदर भाग गयी , फिर दूसरी खिड़की के पीछे से मुझे ताकने लगी . मुझे और उसे, इस लुकाछिपी के खेल में बेहद मज़ा आ रहा था . सुबह का ट्रैफिक बढ़ रहा था , उसने बाल झटक कर मुझे अलविदा का इशारा किया. मैं आज खुश था बहुत अधिक खुश था कि चलो , मैंने एक लेवल पार कर लिया . उससे बात कर ली , उससे दोस्ती कर ली . अब आगे बढ़ने की ठान ली . कल की की बातचीत  के बाद मेरी आंखों में आये आसुंओ का राज़ मैंने जान लिया था .

मोहब्बत के भी कुछ नए नए अंदाज़ होते हैं
जागती आंखों के भी कुछ सोये हुए ख्वाब होते हैं
ये ज़रूरी नहीं जुदाई में ही आंसू निकलें
मिलन की आस में भी आंसू के सैलाब होते हैं

कॉलेज पहुंचकर भी , मेरी बड़ी सारी मुस्कान थमने का नाम ही नहीं ले रही थी. मैं कभी चहक रहा था तो कभी बहक रहा था . फिर कभी कभी खुद से कहने लगता कि यार,  तुम तो बड़े दिलदार निकले . सचमुच के छुपे रुस्तम . फिर खुद पर ही हंस पड़ता . दोपहर 1.50 बजे कॉलेज खत्म होने के बाद तीर की तरह मैं होस्टल की तरफ दौड़ पड़ा . आखिर तैयारी जो करनी थी आज की टेलिफोनिक परीक्षा की भी . मन नहीं लग रहा था तो 2.30 बजे से टेलीफोन बूथ पर जा बैठा .

दोपहर ३ बजे मैंने फोन लगाया तो एक घंटी पर ही उसने फोन उठा लिया . मुझसे कहा , सुनिए , आप सुबह वहां खड़े मत रहा करिये. मेरा दिल बैठने लगा . मैंने पूछा , क्या तुम मुझसे नाराज़ हो ? तो वह हंसते हुए बोली , नहीं , मुझे लगता है कि आजकल हम खुलकर इशारेबाज़ी करने लगे हैं , इसलिए किसी भी दिन पकडे जा सकते हैं. मैंने सचमुच संभलते हुए कहा कि कल से और ज़्यादा सावधानी बरतूंगा . वह फिर हंसी और बोली , तो जनाब आप डबल मज़े लेना चाहते हैं . सुबह के सुहाने नज़ारों के और दोपहर को कानो और दिल को गुदगुदाने वाली बातों के . अब मैं भी मस्ती में आ गया और बोला ,

जब भी सोचता हूं तुम्हारे बारे में
क्यों मैं तेरे ख्यालों में खो जाता हूँ
क्या तुम भी सोचती होगी मेरे बारे में
बरबस ही इस सवाल में उलझ जाता हूं

अब तुम मुस्कुराते हुए बोली , शायर महोदय , ये नया नया शायरी का शौक है या फिर जनाब पुराने खिलाड़ी हैं . मैं भी हंसते हुए बोला , तुम्हें क्या बताऊं , मैं कि कितने ही उम्दा शेर और शायरियां मैंने पढ़ी हैं और याद की हैं परंतु उनका ज़्यादातर उपयोग अपने दोस्तों के लव लेटर बनाने में किया है . अब जब मैं तुमसे बात करता हूं तो सब भूल जाता हूं .

अच्छा खासा बैठे बैठे गुम हो जाता हूं
अब मैं अक्सर मैं नहीं रहता तुम हो जाता हूं

मेरी दिल से तारीफ करते हुए उसने मुझसे मेरा नाम पूछा . मैंने उसे अपना नाम बताया तो वो बोली , मैं आपको दूसरे नाम से पुकारूंगी . ‘ध्रुव ‘ क्योंकि सर्दी हो या बारिश आप एक जगह टिक कर खड़े रहते हैं , मेरी खिड़की पर टकटकी बांधे . वह एक बार फिर से खिलखिला कर हंस पड़ी . मैंने भी उससे नाम पूछा . उसने भी अपना नाम बताया फिर बोल पड़ी , पर आप भी मुझे अपनी पसंद का नाम दे दीजिये क्योंकि मैं चाहती हूं कि केवल आप ही मुझे उस नाम से पुकारें ‘. मैंने कहा , तुम्हारी हर अदा बेहद ख़ास है , तुम्हारा हर अंदाज़ नखरीला है . मैं तुम्हें  ‘मलिका’ कहूंगा . तुम सचमुच नखरे दिखाते हुए बोली ,’मा बदौलत चाहती हैं कि अब दोस्ती को एक स्तर और बढ़ाया जाए . बस, एक बार के लिये मिल लिया जाये .

तेरी एक मुस्कुराहट नींद उड़ा गयी मेरी
तेरा दीदार ही रोग है और इलाज़ भी है

मैं तुरंत बोल उठा , शुभश्य शीघ्रम . यह शुभ कार्य तुरंत करते हैं . मैं फोन रख कर , तुमसे मिलने आता हूं . वह फिर हंसी और बोली , देखिये मिलना तो मैं भी चाहती हूं पर आगे बढ़िये हुज़ूर आहिस्ता जनाब आहिस्ता आहिस्ता . फोन रखने के पहले फिर से थोड़े गम्भीर अंदाज़ में बोली , मेरी इस बातचीत को आप दोस्ती तक ही समझें और प्यार समझने की तो गलती ही मत करना . मैंनेहंसतेहुएकहाकि

जब ओखली में सर डाल दिया है तो मूसल से क्या डरना
मलिका की नज़रें इनायत हैं तो ज़्यादा की ख्वाहिश क्यों करना

वही हंसी और फोन के क्लिक की आवाज़ सुनाई दी . समझ तो आ गया था कि अब जल्दी हई मिलना है पर कब , कैसेऔरकहां

( अगले हफ्ते आगे का किस्सा )

इंजी. मधुर चितलांग्या , संपादक ,

दैनिक पूरब टाइम्स

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