वो ख्वाबों के दिन
( पिछले 31 अंकों में आपने पढ़ा : प्यार की पहली मुलाकात पर शर्त के कारण मिले, दिल को सुकून और दर्द को उकेरते हुए , पहले प्रेम पत्र में दिल के जज़्बात को जोखिम उठा कर सही हाथों में पहुंचा दिया . फिर आंख मिचौली के किस्से चलने लगे और उसी दबंगाई से पहुंचाया गया जवाबी खूबसूरत प्रेम पत्र पढ़कर मैं अपने होश खो बैठा . होश तब दुरुस्त हुए जब तुमसे फोन पर बात हुई . तुम्हारी एक झलक व दूर से मुलाकात की बात कर मैं समय पर नहीं पहुंच पाया . इससे हुई, तुम्हारी नाराज़गी को दूर करने के लिये फोन पर बातचीत हुई , नाराज़गी दूर हो गई और फिर से रोमंटिक बातें होने लगीं. अंत में तय यह हुआ कि आखरी मुलाकात के पहले एक मुलाक़ात और कर लेते हैं . अब आगे ..)
एक प्रेम कहानी अधूरी सी ….
(पिछले रविवार से आगे की दास्तान – 32 )
अब मुझे अपने अन्दर से एक अनजानी सी आवाज़ कोसने लगी थी . वह मुझसे कहती कि क्यों …. आखिर क्यों इतना आगे बढ़ने की ज़ुर्रत की जबकि अंजाम पहले से ही जानते थे . अपनी दोस्ती के रिश्ते को , थोड़े से मज़े के लिये खतनरनाक मोड़ दे दिया था .
दिले नादान हुआ है चुप हक़ीक़त जान रो रोकर
ना जाने कौन है जो मुझमे छिपकर रातों को सिसकता है
अब वह समय आ रहा था जिसमें हमें वास्तविक दुनिया में लौट आना था , ख्वाबों की दुनिया को पीछे छोड़कर . वो मेरी अच्छी दोस्त है ये बात तो तय थी पर उसे मज़ाक़ -मज़ाक़ में माशूक बनाना अब भारी पड़ रहा था . फिर मैं सोचने लगा कि उसे भी ऐसे ही खयालात परेशान कर रहे होंगे . हमने प्यार की खुमारी महसूस करने के लिये , अपने दिल को चोट देने की बात क्यों तय की ? फिर अपने को समझाते हुए खुद को दिलासा देने लगा कि यह सब तयशुदा था तो फिर दुखी क्यों होना ? अब हमारी मुलाक़ात को कैसे इतनी सहज बनायें कि आगे अलगाव की राह भी बेहद आसान हो जाये . जब एक दूसरे को याद करें तो दिल में दर्द की जगह एक सुकून सा महसूस हो . एक सूनेपन की जगह , एक अपने की बेहतरी की सोच हो . देर रात तक सोचता ही रह गया , दोनों की पहली मुलाक़ात से लेकर , छेड़-छाड़ व रोमांस का रोमांच. फिर आपस में किये वादे के बारे में . कल मुझे उससे मिलना था .
वो मुलाकात क्या कुछ अधूरी सी होगी ,
पास होकर भी क्या दिलों में दूरी सी होगी
होंठों में हंसी , आंखों में नमी सी होगी,
बिछड़ने का गम ज़्यादा, कम मिलने की खुशी होगी
नियत समय के लगभग आधे घंटे पहले , नेहरू पार्क के उस कोने पर पहुंचा तो वह पहले से ही पहुंच चुकी थी . एक दूसरे को देखकर ज़ोर से मुस्कुराये . आज भी उसने गुलाबी व सफेद ड्रेस पहना था , हमारी पहली मुलाक़ात की तरह पर अलग तरह का . इस समय बाल भी खुले रखे थे जो हवा में उड़ रहे थे . वह बेहद खूबसूरत दिख रही थी . मेरे पहुंचते ही उसने गर्मजोशी से अपना हाथ बढ़ाया . मैंने हाथ आगे बढ़ाते हुए उसे फिर छेड़ा , आज मिठाई तो गुलाबी और सफेद है . बेहद आकर्षक और बेहद रसभरी . तुम इस बार शरमाई नहीं बल्कि मुस्कुराते हुए शरारती लहज़े में पूछा , इरादा क्या है ?
(अगले हफ्ते आगे का किस्सा )
इंजी. मधुर चितलांग्या , संपादक ,
दैनिक पूरब टाइम्स